कांग्रेस ने हाल ही में नई कार्यसमिति का गठन किया है। मल्लिकार्जुन खरगे के अध्यक्ष बनने के 10 महीने बाद पार्टी ने नई टीम बनाई है। ये कार्यसमिति का गठन उस वक्त हुआ है जब लोकसभा चुनाव करीब आ रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आखिर अपनी नई कार्यसमिति गठित कर ली। इसके साथ ही जो यह शिकायत की जा रही थी कि पार्टी ने नया अध्यक्ष तो चुना, लेकिन उसे अपनी टीम नहीं दे पा रही, वह दूर हो गई। नई कार्यसमिति का यह गठन ऐसे समय किया गया है, जब आम चुनाव करीब आ चुके हैं। इससे पहले कई राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होने हैं, जो राजनीतिक तौर पर अहम माने जा रहे हैं। इस संदर्भ में नई कार्यसमिति पर गौर किया जाए तो साफ हो जाता है कि बतौर पार्टी अध्यक्ष खरगे ने तीन अहम संदेश इसके जरिए दिए हैं। पहली बात यह कि अध्यक्ष के निर्वाचन से पहले पार्टी में जो मतभेद और अस्थिरता का आलम था, वह दूर हो चुका है। पार्टी अब अपने नए अध्यक्ष की अगुआई में एकजुट है। यह स्पष्ट होता है इस तथ्य से कि कथित जी-23 यानी असंतुष्ट नेताओं में शामिल सभी प्रमुख नेता कार्यसमिति में शामिल कर लिए गए हैं। हालांकि यह जी-23 कभी औपचारिक रूप नहीं ले पाया था, लेकिन फिर भी इनमें से कई नेताओं ने नेतृत्व के सामने अपनी मांगें रखी थीं। पार्टी अध्यक्ष का चुनाव होने के बाद इन नेताओं ने स्पष्ट कर दिया था कि उनके उठाए मुद्दों को पार्टी ने सही ढंग से संबोधित किया और अब उन्हें कोई शिकायत नहीं है।फिर भी यह बात कई लोगों के मन में रही होगी कि चूंकि ये नेता खुलकर तत्कालीन पार्टी नेतृत्व के खिलाफ स्टैंड लेते दिखे थे, इसलिए हो सकता है उन्हें दरकिनार कर दिया जाए। खरगे ने इन नेताओं को कार्यसमिति में स्थान देते हुए ऐसी आशंकाओं को गलत करार दिया। दूसरी बात पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की भावना को प्रतिष्ठित करने की है। अध्यक्ष पद के प्रत्याशी के तौर पर शशि थरूर ने पार्टी के खिलाफ तो कुछ नहीं कहा था, लेकिन यह इंप्रेशन जरूर दिया था कि वह स्वतंत्र फैसले करेंगे। ध्यान रहे, खरगे को गांधी परिवार समर्थित प्रत्याशी माना जा रहा था। ऐसे में उनकी बातों से साफ था कि वह पार्टी को खास परिवार के साये से बाहर लाएंगे जबकि खरगे शायद ऐसा न कर पाएं। जाहिर है, संकीर्ण नजरिया कह रहा था कि चुनाव हार जाने के बाद शशि थरूर पार्टी में हाशिये पर पहुंचा दिए जाएंगे। लेकिन खरगे ने कार्यसमिति में शामिल कर उन्हें वह सम्मान दिया, जिसके थरूर हकदार थे। तीसरा बड़ा संकेत सचिन पायलट को इसमें शामिल करके दिया गया है। भले अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री पद पर बने रह गए हों, लेकिन खरगे का संकेत स्पष्ट है कि सचिन पायलट की अहमियत कम नहीं हुई है, आगे की योजनाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा वह बने रहेंगे। इसके अलावा युवा नेतृत्व को मौका देने और विभिन्न क्षेत्रों और तबकों को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश भी है, जो स्वाभाविक है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि खरगे ने टीम बनाने में थोड़ी देर जरूर की, लेकिन काम ठोक-बजाकर किया।एनबीटी डेस्क के बारे मेंNavbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म… पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐपलेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें