नई दिल्ली: ऑस्ट्रेलियाई नागरिक माइकल रोहन ने 21 अगस्त, 1969 को यरूशलेम की अल-अक्सा मस्जिद में आगजनी का प्रयास किया, जो इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थान है। इस घटना से मुस्लिम देशों में काफी रोष पैदा हो गया। अरब देशों के विदेश मंत्रियों की एक बैठक तत्काल बुलाई गई। वे घटना के तीन दिनों के अंदर 24 अगस्त को ही मिस्र की राजधानी काहिरा में मिले। इस बैठक में संयुक्त अरब गणराज्य (मिस्र और सीरिया) ने विचार दिया कि एक शिखर सम्मेलन बुलाया जाए जिसमें केवल अरब देशों को ही न्योता जाए। हालांकि, सऊदी अरब और मोरक्को के प्रतिनिधियों ने कहा कि सभी इस्लामी देशों को शामिल करने के लिए बैठक का विस्तार करना बेहतर होगा। उस वक्त सऊदी अरब और मोरक्को को ही बैठक के आयोजन की जिम्मेदारी दी गई थी।चाहे वह केवल अरब देशों की हो या किसी बड़े इस्लामी देश की। आगे के विचार-विमर्श के बाद, एक शिखर सम्मेलन की तैयारी के लिए एक समिति का गठन किया गया। इसमें अरब जगत (सऊदी अरब और मोरक्को), एशिया (ईरान और मलेशिया) और अफ्रीका (नाइजर और सोमालिया) के दो-दो प्रतिनिधि शामिल थे। इसी शिखर सम्मेलन से इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी (OIC) की नींव पड़ी। इस संगठन में आज भारत भी होता, ऐन वक्त पर पाकिस्तान ने ऐसा पैंतरा चला कि सभी मुस्लिम देश उसके आगे पानी भरने लगे। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के मोर्चे पर भारत को पाकिस्तान से मिला वह तगड़ा झटका था।भारत से फखरुद्दीन और पाकिस्तान से याह्या का प्रतिनिधिमंडलबहरहाल, पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल याह्या खान जब पहले इस्लामी शिखर सम्मेलन के लिए रबात पहुंचे, तब भारत ने भी अपनी राजनियक परंपरा को बदलकर अपना प्रतिनिधिमंडल वहां भेज दिया। प्रतिनिधमंडल की अगुवाई तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर फखरुद्दीन अली अहमद ने की जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने। सम्मेलन की शुरुआत 22 सितंबर, 1969 को हुई। पहले दिन मोरक्को में भारत के राजदूत गुरबचन सिंह ने इसमें हिस्सा लिया क्योंकि तब तक भारत का प्रतिनिधिमंडल वहीं नहीं पहुंचा था। उधर पाकिस्तान ने दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश बताकर खुद के लिए भी सम्मेलन में जगह बना ली। तत्कालीन राष्ट्रपति याह्या खान के नेतृत्व में पाकिस्तान का प्रतिनिधिमंडल 23 सितंबर को रबात पहुंच सका। पहले दिन की मीटिंग मोरक्को में पाकिस्तान के राजनयिक ने अटेंड की।India vs Pakistan: भारतीय टीम आई तो जलाकर खाक कर दूंगा… 1965 की हार और बौखलाए गए थे जुल्फिकार अली भुट्टोपाकिस्तान में बवाल और याह्या की धमकीउधर, याह्या के पाकिस्तान से निकलते ही वहां जुल्फिकार अली भुट्टो ने विवाद खड़ा कर दिया कि आखिर जिस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधिमंडल है, उसमें पाकिस्तान कैसे शिरकत कर सकता है। कहा जाता है कि रबात पहुंचे याह्या पाकिस्तान में उठे विवाद के दबाव में आ गए। उन्होंने सऊदी अरब के किंग फैसल और जॉर्डन के किंग हुसैन से भारत की भागीदारी पर बात की। दोनों ने याह्या से कहा कि मुसलमानों की बड़ी आबादी के मद्देजनर भारत को वैश्विक इस्लामी समूह का हिस्सा बनना उचित है। याह्या को लगा कि ऐसे बात नहीं बनेगी। उन्होंने बैठक में शिरकत करने से इनकार कर दिया जब तक कि भारत को इससे दूर नहीं कर दिया जाए।सऊदी अरब, जॉर्डन और मोरक्को ने याह्या खान के दबाव में आकर भारत को इस्लामिक कॉन्फ्रेंस से हटाने का निर्णय ले लिया। पूर्व विदेश सचिव जेएन दीक्षित ने लिखा है, ‘भारत ने अपने राजदूत गुरबचन सिंह को वार्ता का नेतृत्व करने दिया, न कि किसी भारतीय मुस्लिम नेता को। वास्तव में, फखरुद्दीन अली अहमद के नेतृत्व में भारत से ओआईसी में आने वाला प्रतिनिधिमंडल रोम से आगे नहीं जा सका।’पाकिस्तान के दबाव में आए मुस्लिम देशउन दो महत्वपूर्ण दिनों में रबात में क्या हुआ? अरशद सामी एक पीएएफ अधिकारी थे, जिन्होंने 1965 के युद्ध में भारत के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने पाकिस्तान के कई शुरुआती फैसलों के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी क्योंकि वो तीन पाकिस्तानी राष्ट्रपतियों- अयूब खान, याह्या खान और जुल्फिकार अली भुट्टो के सहयोगी थे। सामी का कहना है कि रात में मिलने आए तीन पाकिस्तानी पत्रकारों ने याह्या का मन बदल दिया। अगले दिन, याह्या ने बीमारी का नाटक करने का फैसला किया और ओआईसी के पूर्ण सत्र में भाग लिए बिना रबात से बाहर निकलने की धमकी दी। यह राजनयिक संकट की स्थिति थी। दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम देश को सम्मेलन से बाहर जाने देना ओआईसी के लिए घातक साबित हो सकता था।India Bangladesh News: बांग्लादेश की अवामी लीग को बीजेपी का न्योता, आज भारत आएंगे शेख हसीना की पार्टी के 5 नेतामुस्लिम देशों ने ऐसा रंग बदला कि…तब किंग हुसैन ने याह्या से कहा, ‘महोदय, मैं यहां किंग फैसल, किंग हसन और अपनी तरफ से माफी मांगना चाहता हूं। हमने अनजाने में यह दुर्भाग्यपूर्ण विवाद खड़ा कर दिया। वास्तव में, मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं कि हमें मोरक्को में भारत के चालाक राजदूत ने फंसा लिया। जब हमने आज सुबह के समाचार पत्रों में प्रकाशित पाकिस्तान पर हमारे फैसले के गहन विश्लेषण और दूरगामी प्रभावों पर गौर किया तो हमारी आंखें खुल गईं। इसलिए, हमारी वजह से हुई आपको परेशानी के लिए हमें खेद है। अब अपनी गलती सुधारने के लिए किंग हसन ने इस्लामी सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में भारतीयों को दिया गया न्योता वापस लेने और भारतीय प्रतिनिधिमंडल को मोरक्को में प्रवेश करने से रोकने का फैसला किया है।’किंग हुसैन ने कहा, ‘हम जिनेवा कन्वेंशन में सुनिश्चित सीमाओं का उल्लंघन करने और सम्मेलन के सदस्यों को गुमराह करके इसमें हस्तक्षेप करने के लिए भारतीय राजदूत (गुरबचन सिंह) को अवांछित व्यक्ति घोषित करेंगे। महोदय, हम आशा करते हैं कि इस कदम से आपको अपने कठोर निर्णय को बदल लेना चाहिए। इसे देखते हुए और इस तथ्य को देखते हुए कि पूरी दुनिया इस प्रथम इस्लामी शिखर सम्मेलन पर ध्यान केंद्रित कर रही है, मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि कृपया पाकिस्तान लौटने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करें।’ 25 फरवरी, 2008 को हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया (ToI) में प्रकाशित अपने लेख में मशहूर पत्रकार इंद्राणी बागची कहती हैं, ‘यह इतिहास का एक तरह का रिंगसाइड व्यू है जो हमेशा अपना रंग बदलता रहता है।’