नई दिल्ली: अनुच्छेद-370 पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि क्या संसद जम्मू कश्मीर पुनर्गठन एक्ट लाकर राज्य को दो भाग में विभाजित कर दो यूनियन टेरिटेरी बना सकता है जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ हो। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने सीनियर एडवोकेट राजीव धवन के सामने यह सवाल उठाया। धवन जम्मू कश्मीर पीपुल्स कॉफ्रेंस की ओर से पेश हो रहे हैं। इस दौरान राजीव धवन ने कहा कि संसद कानून बना सकता है लेकिन अनुच्छेद-3 और 4 में जो लिमिटेशन है उसके दायरे में ही बनाया जा सकता है। धवन ने कहा कि इसके तहत अनिवार्य शर्त यह है कि नए राज्य या इलाके में बदलाव करने के लिए प्रेसिडेंट मामले को राज्य विधानसभा में रेफर करेंगे। साथही कहा कि राज्य का पुनर्गठन तब नहीं हो सकता है जब राज्य में अनुच्छेद-356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगा हुआ हो।अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है कि शक्ति का होना और उसके कथित दुरुपयोग दो अलग बाते हैं। याचिकाकर्ता की ओर से राजीव धवन ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच के सामने दलील दी कि अनुच्छेद-370 राज्य को आंतरिक संप्रभुता देता है और अगर प्रेसिडेंट रूल्स से उसे खत्म किया जाता है तो इसका उद्देश्य खत्म हो जाएगा।’संसद राज्य विधानसभा का विकल्प नहीं हो सकता’धवन ने कहा कि जब राज्य विधानसभा अस्तित्व में नहीं था तब प्रेसिडेंट अनुच्छेद-3, 4 व 370 को राष्ट्रपति शासन के दौरान निरस्त नहीं कर सकते थे। अनुच्छेद- 3 में नए राज्य के गठन की प्रक्रिया है और प्रेसिडेंट को पावर है। लेकिन प्रेसिडेंट रूल के समय अनुच्छेद-3 का इस्तेमाल नहीं हो सकता है क्योंकि यह राज्य विधानसभा से जुड़ा मामला है। धवन ने दलील दी कि संसद राज्य विधानसभा का विकल्प नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि शक्ता का होना और कथित पावर का दुरुपयोग अलग बाते हैं इसमें कोई कंफ्यूजन नहीं है।भारत की संप्रभुता स्वीकार ली फिर कश्मीर में ऑटोनामी का दावा कैसे? आर्टिकल 370 पर SC का सवाल’पावर का इस्तेमाल और दुरुपयोग दो अलग बातें’सुप्रीम कोर्ट में राजीव धवन ने दलील दी कि राज्य के अंतरिम संप्रभुता राजा ने अपने पास रखी थी। महाराज अपने आप में संपूर्ण थे। अनुच्छेद-370 संवैधानिक विकल्प था। अनुच्छेद-356 के तहत प्रेसिडेंट रूल लगाकर उसे खत्म नहीं किया जा सकता है। संविधान संशोधन कर जेके का अनिवार्य बुनियाद को नहीं लिया जा सकता है। अनुच्छेद-356 कहता है कि वह अनिवार्य प्रावधान को खत्म नहीं कर सकता है। इस तरह राज्य में लोकतंत्र ध्वस्त हो गया। जस्टिस खन्ना ने कहा कि मौजूदा पावर, पावर का इस्तेमाल और उसके कथित दुरुपयोग अलग बातें हैं उसमें कंफ्यूजन नहीं है। धवन ने कहा कि पावर है इसमें संदेह नहीं है लेकिन पावर का इस्तेमाल मौलिक बात है। संविधान कहता है कि जम्मू कश्मीर के लिए इस तरह से बिल नहीं लाया जा सकता है। चीफ जस्टिस ने सवाल किया कि क्या संसद अनुच्छेद -356 के दौरान स्टेट लिस्ट में कानून नहीं बना सकता है? इस पर धवन ने कहा कि बना सकता है लेकिन लिमिटेशन है। धवन ने कहा कि अनुच्छेद-370 सेफगार्ड है और यह फेडरलिज्म का पार्ट है। यह बेसिक स्ट्रक्चर का हिस्सा है। इसे बदला नहीं जा सकता है। दिल्ली सरकार बनाम केंद्र के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने फेडरलिज्म की बात कही थी।आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर को संप्रभुता नहीं देता, विलय के साथ ही बिना शर्त सारा अधिकार भारत को: सुप्रीम कोर्ट’भारत के भविष्य पर होगाा असर’याचिकाकर्ता के वकील दुष्यंत दवे ने दलील दी कि भारतीय संविधान के बेसिक फीचर में लोकतंत्र, फेडरलिज्म है। उन्होंने कहा कि देशहित में ऐसा कदम उठाया लेकिन क्या देशहित यह पता नहीं है। ऐसा हुआ तो कोई पॉलिटिकल पार्टी राज्य में चुनाव हार जाए और फिर राज्य को यूटी में बदल दे। ये गंभीर विषय है। इसका भारत के भविष्य पर असर होगा। सुनवाई जारी है। गुरुवार को भी सुनवाई जारी रहेगी।