प्रणब मुखर्जी को मिलनी थी पीएम की कुर्सी, राजीव का प्रधानमंत्री बनना चौंकाने वाला था, मणिशंकर की नई किताब में खुलासा

नई दिल्‍ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर को उम्मीद थी कि 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणब मुखर्जी अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर कार्यभार संभालेंगे। राजीव गांधी का प्रधानमंत्री बनना उनके लिए चौंकाने वाला था। अय्यर इस विचार से डरे हुए थे कि जो कुछ दिन पहले तक पायलट थे, वह सत्ता की बागडोर संभालेंगे। वरिष्‍ठ कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने अपने संस्मरणों पर लिखी किताब में यह बात कही है। अय्यर ने इस पूरे घटनाक्रम को करीब से देखा है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगों को काबू करने में नहीं लिए गए कुछ फैसलों पर भी उन्‍होंने सवाल उठाए हैं। हालांकि, अपनी नई किताब ‘मेमोयर्स ऑफ ए मेवरिक: द फर्स्ट फिफ्टी इयर्स (1941-1991)’ में उन्‍होंने कुछ गलतफहमियों को दूर करने की भी कोशिश की है। इस किताब का सोमवार को अनावरण हुआ।राजीव के साथ काम करने के बाद अय्यर की उनके बारे में राय बदल गई थी। अय्यर को राजीव ही राजनीति में लाए थे। राजीव काल का विस्तृत लेखाजोखा एक अन्य वॉल्‍यूम का हिस्सा होगा। इसे अय्यर जल्द ही प्रकाशित करेंगे।इमर्जेंसी के दौर में इंदिरा गांधी ने लाल किले की प्राचीर से ऐसा क्‍या बोला था जिससे अखबारों में मच गई थी खलबली?आईएफएस अधिकारी थे अय्यरजब इंदिरा की हत्‍या हुई थी तब अय्यर सूचना और प्रसारण मंत्रालय से बतौर आईएफएस अधिकारी जुड़े हुए थे। किताब में उन्‍होंने याद किया है कि जब इंदिरा की हत्‍या के बाद दंगे भड़क गए थे तब राजीव ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। उन्‍होंने तब टीवी के जरिये बहुत झिझकते हुए शांति की अपील की थी। उनकी जानकारी के मुताबिक, इस अपील को सात टेक के बाद फिल्‍माया गया था।हालांकि, अय्यर ने लिखा है कि प्रधानमंत्री की दूसरी अपील के बावजूद दंगे जारी रहे। अय्यर याद करते हैं कि उस दिन वह बस इतना कर सकते थे कि ऐसी ‘अक्षम सरकार’ के खिलाफ वोट करने का मन बना लें। मणिशंकर अय्यर ने आईएफएस से इस्तीफा देने बाद राजीव के पीएमओ में सेवा दी। फिर वह कांग्रेस में शामिल हो गए।राजीव के उस बयान का बताया सचअय्यर ने राजीव गांधी के एक बयान पर गलतफहमी भी दूर करने की कोशिश की है। कहा जाता है कि यह बयान उन्‍होंने इंदिरा की हत्‍या के दिन दिया था। उन्‍होंने कहा था- ‘जब एक बड़ा पेड़ गिरता है धरती थोड़ी हिलती है’। 31 अक्टूबर और 2 नवंबर 1984 को राजीव के दो प्रसारणों का हवाला देते हुए अय्यर कहते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया था।बापू 21 दिन के ‘महाव्रत’ पर थे और छह साल की इंदिरा मिलने पहुंच गई थीं16 दिन बाद 19 नवंबर, 1984 को राजीव ने बोट क्लब में एक संबोधन के दौरान यह बयान दिया था। अय्यर ने आगे कहा कि यह बयान संदर्भ से बाहर और अनुपातहीन तरीके से पेश किया गया। उस एक वाक्य ने लोगों की याद से वह सब कुछ मिटा दिया जो राजीव गांधी ने नरसंहार को रोकने के लिए कहा और किया था।कई साल बाद तत्कालीन कानून मंत्री शिव शंकर ने उन्हें पुष्टि की थी कि राजीव सरकार की निष्क्रियता से तंग आ चुके थे। 2 नवंबर, 1984 को सुबह 2.30 बजे उन्होंने सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में जाने के लिए सुरक्षा चिंताओं को दरकिनार कर दिया था।अय्यर ने किताब में लिखा है कि तब गृहमंत्री पीवी नरसिम्‍हा राव हुआ करते थे। वही दिल्‍ली के उपराज्‍यपाल थे। राजीव ने चीजों को नरसिम्हा राव पर छोड़ने के बजाय अपने हाथों में ले लिया था। किताब में अय्यर ने आईएफएस अधिकारी के रूप में पाकिस्तान में उनके दिनों के बारे में भी बताया है।