नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में आज प्लेसेज ऑफ वरशिप ऐक्ट (Places of Worship Act 1991) के कुछ नियमों के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई होनी है। याचिका में इस ऐक्ट के उस प्रावधान को चुनौती दी गई है जिसमें कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 के पहले जो धर्मस्थल जैसे हैं वैसे ही रहेंगे। याचिका में सर्वोच्च अदालत से इन प्रावधान में बदलाव की मांग की गई है। सुनवाई से पहले याचिका दाखिल करने वाले याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने कहा कि काशी के मामले में और मथुरा के मामले में तो वहां की कोर्ट ने कह दिया कि प्लेसेज ऑफ वरशिप ऐक्ट यहां पर लागू नहीं होगा। लेकिन भारत में और भी ऐसे कई महत्वपूर्ण स्थान हैं, जिनका वर्णन हमारे वेद पुराण में है। गीता रामायण में है, महाभारत में है। उपाध्याय ने ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण स्थानों का हवाला भी दिया। उन्होंने कहा कि जौनपुर में अटाला है, अहदाबाद में भद्रकाली है, मध्य प्रदेश में भोसाला है, ऐसे केरल में स्थान हैं, कई सारे ऐसे स्थान हैं। जिनका विवाद केवल इसलिए आगे नहीं बढ़ रहा है क्योंकि ये कानून कहता है कि 1947 में जिन धार्मिक स्थानों की जो स्थिति रहेगी वही रहेगी।उपाध्याय ने कहा कि इस कानून से तो यही समझ में आता है कि ये कानून मुगलों के गैरकानूनी कामों को कानूनी बनाता है। ये कानून हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख को कोर्ट जाने से रोकता है। जबकि राइट टु जस्टिस हमारा मौलिक अधिकार है। हमारा कोर्ट जाना और कोर्ट से विवाद का समाधान करवाना और कोर्ट से न्याय लेना हमारा मौलिक अधिकार है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में कुल 6 याचिकाकर्ताओं की याचिका पर सुनवाई होनी है। अश्विनी उपाध्याय के अलावा पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी (Subramanian Swamy) ने भी इस कानून के खिलाफ पिटीशन डाल रखी है।