फैमिली लॉ में इन भेदभावों पर खुद से पूछें ये सवाल, फिर समझ जाएंगे क्यों जरूरी है यूसीसी – why ucc is so necessary questions arising from these faults in family laws underlines the importance of saman nagrik samhita

जिस परिवार में जन्म लिया, विवाह के बाद उसी से बिछड़ जाती है महिलाविवाह के लिए जोड़ियां मिलाने का मंच देने वाले एक ऐप ने एक सर्वे किया। इस सर्वे में भाग लेने वाले 92% भारतीयों ने कहा कि महिलाओं के लिए शादी के बाद अपना उपनाम नहीं बदलना सामान्य बात है। आम तौर पर, इसका मतलब है कि एक महिला को केवल इसलिए उसके जन्म के परिवार से अलग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वह विवाहित है। भारत का फैमिली लॉ इससे सहमत नहीं है। जब एक निःसंतान हिंदू महिला की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी सारी संपत्ति (वह संपत्ति छोड़कर जो उसने अपने माता-पिता से प्राप्त की थी) उसके पति को जाती है। यदि वह विधवा है, तो यह उसके पति के उत्तराधिकारियों के पास जाती है। उसके माता-पिता को कुछ नहीं मिलता। लेकिन जब एक निःसंतान हिंदू व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी पत्नी और उसकी संपत्ति का बंटवारा उसकी मां और पत्नी के बीच समान रूप से होता है। अगर पुरुष की मृत्यु से पहले पत्नी की मौत हो चुकी है तो विधुर की मृत्यु के बाद उसकी सारी संपत्ति उसकी मां के नाम हो जाती है। उनकी पत्नी के उत्तराधिकारियों को विरासत में कुछ भी नहीं मिलता है।अब जरा खुद से ये सवाल करें और सोचें कि क्या यह जायज है?• पहला सवाल- ऐसा फैमिली लॉ क्यों होना चाहिए जो शादी के बाद किसी व्यक्ति की जड़ें उस परिवार से ही काट दे जिसमें उसने जन्म लिया?• दूसरा सवाल- किसी पुरुष के उत्तराधिकारियों को उसकी मृत पत्नी से संपत्ति तो मिले, लेकिन पत्नी के उत्तराधिकारियों को उसके मृत पति की संपत्ति नहीं मिले। ऐसा क्यों होना चाहिए?​माता-पिता की विरासत धर्म पर निर्भर करती हैयदि कोई अविवाहित और निःसंतान हिंदू, बौद्ध, सिख या जैन व्यक्ति वसीयत बनाए बिना मर जाता है, तो उसकी मां को उसकी सारी संपत्ति विरासत में मिलती है और उसके पिता को कुछ नहीं मिलता है। लेकिन अगर एक अविवाहित और निःसंतान ईसाई व्यक्ति की वसीयत बनाए बिना मृत्यु हो जाती है, तो उनके पिता को पूरी संपत्ति विरासत में मिलती है।अब फिर खुद से ये सवाल करें और सोचें कि ऐसा क्यों होना चाहिए?• पहला सवाल- क्या किसी व्यक्ति की धार्मिक पहचान के आधार पर यह निर्धारित होना चाहिए कि उसकी संपत्ति मां को मिलेगी या पिता को?• दूसरा सवाल- माता-पिता दोनों को अपने बच्चे की संपत्ति का बराबर हिस्सा क्यों नहीं मिलना चाहिए?​केवल ईसाई सैनिक ही आपातकालीन वसीयत बना सकते हैंअधिकांश लीगल सिस्टम में, जिनकी जिंदगी पर खतरा हो, उन्हें वैध वसीयत बनाने की आवश्यक शर्तों में ढील दी जाती है। लेकिन भारत में इस ‘विशेषाधिकार प्राप्त’ वसीयत का लाभ केवल ईसाई सैनिकों के लिए उपलब्ध है जो किसी अभियान या युद्ध में लगे हुए हैं।अब खुद से ये दो प्रश्न पूछिए और सोचिए कि क्या यह गलत नहीं है• किसी व्यक्ति को आपातकालीन वसीयत बनाने की छूट होगी या नहीं, यह उसके धर्म के आधार पर क्यों तय होना चाहिए?• यह छूट भी सिर्फ सैनिकों को ही क्यों मिले, आम नागरिकों को क्यों नहीं? उदाहरण के लिए, एक पर्वतारोही जिसे चढ़ाई के दौरान घातक चोट लगी हो?