पब्लिक के किन कामों को प्राथमिकता देनी है, मोदी ने समझायामोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं से कहा, ‘जनसामान्य से जुड़े काम… उनकी कठिनाइयां दूर हों, उनकी आवश्यकताएं पूरी हों… और उनका एक जन आंदोलन के रूप में काम कैसे हो। हमने साल भर में चार-पांच अवसर ऐसे निकालने चाहिए जिसमें सरकार के नेतृत्व में, पंचायत के नेतृत्व में पूरे जिले का जनसामान्य उससे जुड़ जाए।’ मोदी ने वन महोत्सव का उदाहरण देते हुए कहा कि यह आयोजन सरकारी नहीं होना चाहिए। पीएम ने दुर्गा पूजा, नवरात्रि के अवसरों का भी जिक्र किया। विभिन्न विभूतियों की जयंती पर पूरे जिले में सफाई अभियान चलाने का भी आह्वान किया। मोदी ने कहा कि जो भी काम करें, उसे पब्लिक का आंदोलन बना दें।नैशनल नहीं, अब लोकल मुद्दों पर करो फोकसबीजेपी का यह इवेंट दमन और दीव में हो रहा है। पहले दिन, अपने संबोधन में मोदी ने पार्टी वर्कर्स से लोकल मुद्दों पर फोकस करने को कहा। बीजेपी ने मोदी के नाम पर पहले 2014 और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में वोट मांगे। बीजेपी के चुनावी अभियान में स्थानीय मुद्दे गौण हो गए, बस मोदी का चेहरा और नाम आगे रहा।2014 और 2019 में मोदी लहर ने कई ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव जितवा दिया, जो शायद बिना मोदी का नाम इस्तेमाल किए जीत नहीं पाते। ऐसे सांसदों की लिस्ट पार्टी ने तैयार कर रखी है, सबका रिपोर्ट कार्ड मांगा गया है। इनसे पूछा गया है कि उन्होंने स्थानीय स्तर पर क्या-क्या काम कराए।अधिकतर सांसदों को फिर से टिकट इसी आधार पर मिलेगा कि उन्होंने अपने इलाके में कितना काम किया है। पार्टी ने लोकल पर फोकस अचानक ही नहीं किया, पिछले कुछ समय से इसके संकेत मिल रहे थे।2024 चुनाव से पहले क्यों बदलनी पड़ी रणनीतिकहते हैं न कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार का बीजेपी की रणनीति पर गहरा असर पड़ा है। वहां नैशनल लेवल के मुद्दों पर हवा बनाने से स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं दब सके। ऊपर से 2024 में बीजेपी के लिए 10 सालों की एंटी-इनकंबेंसी से जूझना भी बड़ी चुनौती रहेगा।आम चुनाव से पहले बीजेपी को मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव लड़ने हैं। इन राज्यों में लोकसभा की 60 से ज्यादा सीटें हैं। कर्नाटक के नतीजों से सबक लेकर बीजेपी ने यहां स्थानीय मुद्दों पर ही चुनाव लड़ने की सोची है। प्रयोग सफल रहा तो उसे 2024 में आजमाया जाएगा।मोदी कब तक बचाएगा, डर सच हो रहा है!बीजेपी हर चुनाव में नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगती है। लोकल लेवल पर नेता भी मोदी मैजिक के भरोसे निश्चिंत रहते हैं। बीजेपी को इस बात का अहसास हो चला है कि रेलेवेंट मुद्दे उठाकर ही जनता के बीच पैठ बनी रहेगी। सांसद और विधायक तक तो ठीक, लेकिन जिला पंचायत और नगर निगम के चुनावों में मोदी का चेहरा दिखाकर पार्टी कब तक बचती। ऊपर से, कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने साथ आकर नई चुनौती पेश की है।कांग्रेस नेता राहुल गांधी कभी ट्रक ड्राइवरों से बात करते हैं, कभी सब्जी बेचने वाले संग डिनर… वह आम जनता के मुद्दे उठाकर पब्लिक से कनेक्ट कर रहे हैं। बीजेपी को यह समझ आने लगा है कि परसेप्शन की इस लड़ाई में वह पिछड़ रही है। इसलिए कार्यकर्ताओं से कहा गया कि पब्लिक से लोकली कनेक्ट करें। नैशनल लेवल पर क्या करना है, यह हाईकमान देख लेगा।