नई दिल्ली: आज विश्व फोटोग्राफी दिवस है। तस्वीरें इतिहास को झांकने का माध्यम होती हैं। यह तस्वीर भी उनमें से एक है। इस तस्वीर से इतिहास का बड़ा अध्याय जुड़ा है। इसमें भारतीय इतिहास से जुड़े दो बेहद अहम किरदार हैं। बिस्तर पर लेटे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जिन्होंने देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी दिलाई। उनके सिरहाने बैठी हैं छह साल की इंदिरा नेहरू। वही इंदिरा जो बाद में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बनीं और देश की राजनीति की दशा-दिशा तय करने में बड़ी भूमिका निभाई। अब आपके मन में बहुत सवाल उठ रहे होंगे। मसलन, आप जानना चाहते होंगे कि आखिर ये तस्वीर कब की है? बापू लेटे क्यों हैं? इंदिरा वहां क्या कर रही हैं? ‘तस्वीर की कहानी’ की सातवीं कड़ी में आज हम यहां आपको इन सभी सवालों के जवाब देंगे। हम इस तस्वीर से जुड़ी एक-एक परत को आपके सामने खोलकर रख देंगे।शिमला समझौते पर हो रही थी बात कि अचानक शुरू हुई बारिश, इंदिरा गांधी ने अटल के सिर पर रखा था छाताइस तस्वीर की कहानी जानिए…आपको जो तस्वीर दिख रही है वह मामूली नहीं है। यह आजादी के लिए बापू के संघर्ष की कहानी से जुड़ी है। वह साल था 1924। जगह थी दिल्ली। तब महात्मा गांधी ने ‘महाव्रत’ रखा था। इस समय तक बापू ने जितने भी आमरण अनशन किए थे उनमें इसकी अवधि सबसे ज्यादा 21 दिन थी। गांधी के आमरण अनशन का नाम सुनते ही अंग्रेजी हुकूमत के हाथ-पांव फूल जाते थे। वह इन्हें रोकने की हर जुगत करती थी। बापू ने इन्हें ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपना हथियार बना लिया था। हालांकि, दिल्ली में 1924 का आमरण अनशन बापू ने देश में कौमी एकता को मजबूत करने के लिए किया था। पहले असहयोग आंदोलन के बाद बापू ने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए इसकी शुरुआत की थी। इस उपवास का लोगों पर गहरा असर देखने को मिला था। दंगे रुक गए थे। अमन बहाली कायम हो सकी थी।इंदिरा का अहंकार चरम पर था… आडवाणी के हाथ में थी जनसंघ की कमान, अटल की मौजूदगी में वो बैठक21 दिन के उपवास के दौरान इंदिरा पहुंची थीं मिलनेबापू के 21 दिन के इस उपवास की शुरुआत 18 सितंबर को हुई थी। 8 अक्टूबर को उनका यह ‘महाव्रत’ खत्म हुआ था। गीता और कुरान सुनकर उनका यह उपवास समाप्त हुआ था। उपवास के उन्हीं दिनों में इंदिरा बापू से मिलने पहुंची थीं। तब इंदिरा की उम्र 6 साल थी। बापू का हालचाल जानने के लिए वह उनके पास गई थीं। कई दिनों से भूखे-प्यासे बापू बिस्तर पर लेटे थे। इंदिरा उनके सिरहाने में जाकर बैठ गई थीं। महात्मा गांधी ने बड़े प्यार से बच्ची का हाथ पकड़कर उन्हें अपने पास बैठा लिया था। उस मौके पर खिंची यह तस्वीर इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई।इमर्जेंसी के दौर में इंदिरा गांधी ने लाल किले की प्राचीर से ऐसा क्या बोला था जिससे अखबारों में मच गई थी खलबली?जश्न में शामिल होने के बजाय अनशन पर थे बापूगांधी जी ने इसके बाद भी कई आमरण अनशन किए। इनकी अवधि एक दिन से लेकर 21 दिन तक रही। बापू ने 1930 में दांडी मार्च और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन जैसे जनांदोलनों का नेतृत्व किया। उन्होंने अछूतों के उत्थान के लिए भी काम किया। उन्हें नया नाम ‘हरिजन’ दिया। 15 अगस्त 1947 की आधी रात में जब देश आजादी के जश्न में डूबा था तब महात्मा गांधी इसमें शामिल नहीं हुए। वह बंगाल के बेलियाघाट में आमरण अनशन कर रहे थे। आजादी के साथ मिली विभाजन की त्रासदी ने देशभर में दंगे भड़का दिए थे। गांधी जी ने तनाव को कम करने के लिए बेलियाघाट में डेरा डाल दिया था। वह अमन बहाली के लिए उपवास करने लगे थे। उनका उपवास असरदार भी साबित हुआ था। बंगाल में आजादी की खबर सुनते ही आपसी कटुता भुला हिंदू-मुस्लिम सड़कों पर निकल आए थे।