धनंजय महापात्र, नई दिल्ली: नौकरशाहों को बेवजह कोर्ट में बुला लेना और कभी कुछ तो कभी कुछ बहाने से उन्हें खरी-खोंटी सुना देना, जजों के रौब झाड़ने के इस शगल से सरकार चिंतित है। यही वजह है कि सरकार जजों के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) लेकर आई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वो खुद एसओपी बनाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह नौकरशाहों को संवैधानिक अदालतों के सामने व्यक्तिगत रूप से मौजूद रहने के लिए बेतुके बुलावे को रोकने और बिना ब्लेजर पहने अदालतों में उपस्थित होने वाले अधिकारियों को अपमानित करने से जजों को हतोत्साहित करने के लिए मानक दिशानिर्देश तैयार करेगा।सुप्रीम कोर्ट को किस बात पर है आपत्ति, जानिएप्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की एक पीठ ने ड्राफ्ट एसओपी के प्रावधान से असहमति जताई, जिसमें कहा गया था कि अदालत की अवमानना के दोषी पाए गए अधिकारी को दंड पर तब तक रोक लगे जब तक कि वह आदेश के खिलाफ अपीलीय अदालत में याचिका नहीं डालता है। एसओपी के भाग III में यह भी कहा गया है कि जजों को आदर्श रूप से अपने स्वयं के आदेशों के उल्लंघन के लिए अवमानना मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए। पीठ ने कहा कि इन हिस्सों को नहीं माना जा सकता है।जजों की लिस्ट पर नोटिफिकेशन की डेडलाइन तय हो… सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम पर सरकार से मांगी मददजब सीजेआई ने पूछा कि एसओपी को न्यायिक समीक्षा की प्रक्रिया के दायरे में आने से कैसे बचाया जा सकता है, तो केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह भाग III में निहित सभी सुझावों को वापस ले लेंगे। पीठ ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के वित्त सचिव को अवमानना के मामले में जेल भेज दिया। इस मामले में राज्य के मुख्य सचिव को भी तलब किया गया था। वहीं पटना हाईकोर्ट ने एक आईएएस अधिकारी को बिना ब्लेजर पहने अदालत में पेश होने के लिए कड़ी फटकार लगाई थी। इन हालिया घटनाओं ने केंद्र सरकार को जजों के लिए एसओपी बनाने को मजबूर किया है।जजों के इस रवैये पर सरकार की दलील से SC भी सहमतसुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अधिकारियों को बुलाने के लिए कुछ गाइडलाइंस तैयार करेगा। शीर्ष अदालत इस दलील पर सहमत दिखा कि किसी मामले के निपटारे तक हर में नौकरशाहों को अदालत में शारीरिक रूप से उपस्थित रहने की आवश्यकता नहीं है। सीजेआई ने कहा, ‘जिन मामलों में नौकरशाहों को बुलाया जाता है, उन्हें दो भागों में बांटा जाना चाहिए- वे मामले जो अदालत में विचाराधीन हैं और अन्य जिनमें फैसला सुनाया जा चुका है। अदालत में लंबित मामलों में अधिकारियों को अनावश्यक रूप से अदालत में उपस्थित रहने का आदेश देने का कोई कारण नहीं है।’बिलकिस केस जघन्य, लेकिन दुर्लभतम नहीं… केंद्र और गुजरात की इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछ लिया कड़ा सवालबेवजह बुलावे और डांट-फटकार पर रोक लगाने का मकसदउच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘सभी अदालतों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा उपलब्ध है और अधिकारी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पेश हो सकते हैं। इसके अलावा, ज्यादातर मामलों में अधिकारी को हलफनामा दाखिल करने के लिए कहना ही पर्याप्त होगा।’ जब कोर्ट ने कहा कि वह अधिकारियों के लिए ड्रेस कोड के बारे में भी दिशा-निर्देश जारी करेगी, तो सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि भारत की जलवायु सर्दियों के अलावा कोट पहनने के लिए उपयुक्त नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति जींस और टी-शर्ट पहनकर आता है, तो जजों को बुरा नहीं मानना चाहिए।