बिलकिस केस जघन्य, लेकिन दुर्लभतम नहीं… केंद्र और गुजरात की इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछ लिया कड़ा सवाल – supreme court asks why selective remission as center and gujrat governments says bilkis bano gangrape case is not rarest of rare

अमित आनंद चौधरी, नई दिल्ली: बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों ने कोई ऐसा अपराध नहीं किया है जिसे दुर्लभतम (Rarest of rare) श्रेणी में रखा जा सकता है। इसी दलील के साथ केंद्र और गुजरात सरकार ने उन दोषियों की तय वक्त से पहले रिहाई के फैसले को सही ठहराया तो सुप्रीम कोर्ट ने बहस का मुद्दा ही बदल दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने अब सवाल कर दिया कि ऐसे ही अपराधों के लिए कई दूसरे कैदी जेलों में क्यों सड़ रहे हैं? गुजरात दंगों के वक्त गर्भवती बिलकिस बानो हैवानियत की शिकार हुई थीं। उनके गुनहगारों को गुजरात सरकार ने सजा के दौरान सही व्यवहार के आधार पर समय से पहले ही रिहा कर दिया। इसके खिलाफ बिलकिस सुप्रीम कोर्ट पहुंची हैं।जघन्य लेकिन दुर्लभतम अपराध नहीं: ASGइस मामले में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) एसवी राजू केंद्र और गुजरात सरकारों की तरफ से दलील रख रहे हैं। उन्होंने बिलकिस समेत अन्य याचिकाकर्ताओं के तर्कों का खंडन करते हुए कहा कि दोषियों के अपराध दुर्लभतम श्रेणी में नहीं थे। उन्होंने जस्टिस बीवी नागरत्ना और उज्जवल भुयान की बेंच के सामने अपनी दलीलें रखते हुए कहा कि दोषियों को मौत की सजा नहीं देकर आजीवन कारावास दिया गया था। एक ट्रेन में सवार कारसेवकों को गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर जिंदा जलाने की घटना के बाद प्रदेश में सांप्रदायिक दंगे फैल गए। वर्ष 2002 के उस विभत्स वाकये के वक्त पांच महीने की गर्भवती बिलकिस बानो दंगाइयों की भीड़ के हत्थे चढ़ गईं। दंगाइयों ने उनका सामूहिक बलात्कार किया जबकि उनकी तीन साल की बेटी समेत परिवार के कुल सात सदस्य मारे गए।Bilkis Bano Case: पांच महीने का गर्भ, गैंगरेप और तीन साल की बिटिया समेत घर के सात लोगों का मर्डर, सरकार की दलील ये जघन्यतम अपराध नहींदोषियों को सुधरने का मिले मौकाएडिशन सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि निश्चित रूप से अपराध जघन्य है, लेकिन इसे दोषियों के माथे पर चिपकाए नहीं रखा जा सकता है बल्कि उन्हें समाज में फिर से शामिल किए जाने की अनुमति मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘कानून सभी को दंडित करने और फांसी देने के लिए नहीं कहता है बल्कि यह कहता है कि लोगों को सुधार का मौका दिया जाए।’ बेंच ने इस दलील से सहमति जताई। हालांकि, जजों ने क्षमा दान नीति को चुनिंदा मामलों में लूगा करने पर सवाल खड़ा किया और सुधार के लिए समान अवसर दिए जाने पर जोर दिया। उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा, ‘क्षमादान नीति को चुनिंदा मामलों में क्यों लागू किया जा रहा है? सभी कैदियों को सुधार और समाज में फिर से घुलने-मिलने का अवसर दिया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा कुछ कैदियों के साथ ही होता है। सवाल यह है कि क्या क्षमादान नीति जेलों में बंद उन सभी कैदियों के लिए लागू की जा रही है जो इसके पात्र हैं? यह नीति सामूहिक रूप से लागू नहीं होनी चाहिए, बल्कि पात्र कैदियों को और आजीवन कारावास की सजा में 14 साल जेल काट चुके कैदियों को ही इसका फायदा दिया जाना चाहिए।’क्षमादान के अधिकार किसका?एएसजी ने कहा कि बिलकिस केस के दोषियों की रिहाई का फैसला सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर लिया गया था, जिसने मई 2022 में कहा था कि केंद्र के पास नहीं, गुजरात सरकार के पास उनके क्षमादान के अनुरोधों पर निर्णय लेने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि अदालत का पिछले साल का आदेश उस पर बाध्यकारी था और भले ही बेंच इससे सहमत नहीं हो, लेकिन इसका प्रभाव अब नहीं बदला जा सकता है। गुजरात सरकार ने 2014 में अपनी नीति में संशोधन किया था जिसके तहत उन मामलों को दोषियों को क्षमादान देने की शक्ति केंद्र के पास होगी जिनकी जांच केंद्रीय एजेंसियों ने की हो और उन्हीं की चार्जशीट पर सजा भी हुई हो। सुप्रीम कोर्ट ने इसके खिलाफ फैसला सुनाया और कहा कि शक्ति उस राज्य के पास रहेगी जहां अपराध हुआ था।14 साल की सजा के बाद रिहाई की राहत बाकी कैदियों को क्यों नहीं मिली? सुप्रीम कोर्ट का गुजरात सरकार से सीधा सवालबिलकिस के दोषियों को क्षमादान पर फंसा यह पेचबिलकिस केस का महाराष्ट्र में ट्रायल हुआ था, इसलिए एक और सवाल यह उठा कि 11 दोषियों के लिए क्षमादान का फैसला किस राज्य को लेना चाहिए। यह मामला गुजरात हाईकोर्ट में पहुंचा, जिसने कहा कि महाराष्ट्र को अधिकार क्षेत्र होगा क्योंकि जांच वहीं हुई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि गुजरात मामले का फैसला करेगा क्योंकि अपराध वहीं हुआ था। सीबीआई और ट्रायल कोर्ट के नजरिए को ध्यान में नहीं रखने का आग्रह करते हुए एएसजी ने कहा कि महाराष्ट्र में ट्रायल कोर्ट (ट्रायल को वहां स्थानांतरित कर दिया गया था) और मुंबई में बैठे सीबीआई अधिकारी जमीनी स्थिति से अवगत नहीं थे। उन्होंने कहा, ‘यह गोधरा में ट्रायल जज और स्थानीय पुलिस की राय है जिसे अधिक तवज्जो दी जानी चाहिए।’ ध्यान रहे कि सीबीआई ने दोषियों के लिए क्षमादान का विरोध किया था।सुप्रीम कोर्ट ने कहा- क्षमादान में हो रहा भेदभावशीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश की विभिन्न जेलों में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 2,200 से ज्यादा कैदियों के 14 साल पूरा होने के बाद भी जेल में ही रहने का उदाहरण देकर पहले भी कह चुका है कि क्षमा दान नीति का भेदभावूर्ण इस्तेमाल हो रहा है। याचिकाकर्ताओं ने दोषियों को छूट देने के राज्य के फैसले को चुनौती देते हुए कहा कि ऐसा बिना किसी कारण के और स्पेशल सीबीआई जज और जांचकर्ता सीबीआई एसपी के लिखित विरोध के बावजूद किया गया था।किसी एक व्यक्ति की हत्या का सवाल नहीं… ऐसे बेल नहीं दे सकते, गोधरा में ट्रेन जलाने के दोषियों को झटकाबिलकिस के दोषियों को मिली छूट का भरपूर विरोधध्यान रहे कि पिछले साल 15 अगस्त को बिलकिस बानो गैंगरेप केस के सभी 11 दोषियों को क्षमादान देकर जेल से रिहा कर दिया गया। इसके तुरंत बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं ने शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की। बानो ने खुद भी नवंबर में शीर्ष अदालत का रुख किया था। सीपीएम नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा और टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा उन याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं जिन्होंने छूट के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था।