बेस्ट रैंक पाने के लिए कोचिंग मजबूरी, डिमांड के हिसाब से सीट कम, दवाब बन रही पढ़ाई

नई दिल्ली: IIT दिल्ली के बीटेक थर्ड ईयर स्टूडेंट रुचिर बंसल ने जब इंजिनियरिंग की तैयारी शुरू की थी, तो उनका एक ही फोकस था ‘IIT’। वह कहते हैं, इस तैयारी में सब कुछ था- कभी टेंशन, कभी कॉन्फिडेंस। मुझे लगता है कि IIT में सीट लेने के लिए कोचिंग जरूरी है, क्योंकि जिस लेवल का पेपर आता है, उसके लिए सिर्फ 12वीं की क्लास की पढ़ाई काफी नहीं है। आप JEE के हिसाब से तैयार होते हैं। कॉम्पिटिशन इतना ज्यादा है कि स्टूडेंट के लिए बोर्ड और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के बीच बैलेंस बनाना मुश्किल हो जाता है। हां, स्टूडेंट तनाव में इसलिए है कि परिवार, सोसायटी के सामने उसे खड़ा होना है। इस प्रेशर से डील करने के लिए कोई एक रूल नहीं हो सकता है। इसी वजह से तनाव, डिप्रेशन होता है।धैर्य को बनाए रखना मुश्किलएम्स से MBBS कर रहे पीयूष झा ने इस साल NEET में थर्ड रैंक हासिल की थी। पीयूष कहते हैं, मैंने सेल्फ स्टडी की थी। मगर कॉम्पिटिशन की इस रेस में आपको एक्सिलेंस चाहिए और इसके लिए करनी होती है प्रैक्टिस और प्रैक्टिस। यही कोचिंग सेंटरों में होता है। वे आपको गाइड करते हैं, आपके कॉन्सेप्ट क्लियर करते हैं और आपके मन में तसल्ली रहती है कि आप से सिलेबस, सैंपल पेपर- कुछ छूट नहीं रहा। सस्ते ऑनलाइन कोचिंग ऑप्शन उन स्टूडेंट्स के लिए हैं, जो महंगी कोचिंग से दूर हैं। मैं पहले प्रयास में अच्छा नहीं कर पाया, दूसरे में ठीक-ठाक रैंक आई और तीसरे में एम्स में सीट ली। धैर्य तो चाहिए ही और इसे बनाए रखना मुश्किल होता है।देश के दो टॉप इंस्टिट्यूट के इन दोनों स्टूडेंट्स का मानना है कि कॉम्पिटिशन की ‘मैड रेस’ में पढ़ाई प्रेशर इसलिए बन रही है कि क्वॉलिटी सीटें कम हैं और इसके हकदार कई गुना ज्यादा। कुछ वर्षों में स्टूडेंट्स की खुदकुशी के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इस साल देश के कोचिंग हब कोटा में 22 स्टूडेंट्स ने खुदकुशी की है। ये मामले एजुकेशन सिस्टम पर सवाल उठाते हैं।सीट, फंडिंग बढ़ाना ज़रूरीIIT दिल्ली के पूर्व डायरेक्टर और बिट्स पिलानी कैंपसेज के ग्रुप वाइस चांसलर प्रो वी. रामगोपाल राव कहते हैं, सारा खेल डिमांड और सप्लाई का है। क्वॉलिटी सीटें बहुत कम हैं और डिमांड बहुत ज्यादा है। प्रतियोगी परीक्षाएं सिलेक्शन से ज्यादा ऐलिमिनेशन के एग्जाम बन गए हैं। देश के 23 IIT में करीब 17000 सीटें हैं, जबकि IIT में पढ़ने के लिए लाखों स्टूडेंट्स तीन-चार साल से तैयारी कर रहे होते हैं। हल यही है कि सीटें बढ़ाई जाएं। जब इतना कॉम्पिटिशन होगा, तो एग्जाम टफ होगा और स्टूडेंट्स को कोचिंग की जरूरत पड़ेगी। प्रतियोगी परीक्षाओं में बढ़िया करना है तो प्रैक्टिस, क्वेश्चन सॉल्व करने के लिए स्ट्रैटजी, स्पीड सबकुछ चाहिए। इसी की तैयारी इन कोचिंग सेंटर्स में होती है। प्रो राव कहते हैं, दिक्कत फंडिंग की है। जैसे IIT में स्टूडेंट्स बहुत कम फीस में पढ़ते हैं, ज्यादा को पढ़ाने के लिए ज्यादा फंड चाहिए, संस्थानों के विस्तार, एजुकेशन फंड बढ़ाने की जरूरत है।पेपर सेंटिंग के लिए ट्रेनिंगकरियर के इस नए दौर में भी इंजिनियरिंग, मेडिकल जैसी पढ़ाई के लिए क्रेज है और पैरंट्स-स्टूडेंट्स की यह नब्ज कोचिंग सेंटरों ने पकड़ी है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐप्टिट्यूड के हिसाब से करियर ना चुनना भी बड़ी दिक्कत है। NCERT के पूर्व डायरेक्टर जे. एस. राजपूत कहते हैं, कॉम्पिटिशन एग्जामिनेशन के पेपर डिजाइन इस तरह से होने चाहिए ताकि स्टूडेंट्स की ऐप्टिट्यूड और क्रिटिकल थिंकिंग चेक हो। इसके लिए पेपर सेट करने वालों की ट्रेनिंग जरूरी है। अभी तकनीकी तरीके से क्वॉलिफाई करने पर जोर है, जिस पर कोचिंग सेंटर्स फोकस करते हैं। साथ ही, कोचिंग के ट्रेंड को कम करने के लिए सरकारी स्कूलों में सही संख्या में अच्छे टीचर्स लाने जरूरी हैं।