देश देख रहा है, एक अकेला कितनों पर भारी पड़ रहा है। नारे बोलने के लिए भी लोग बदलने पड़ रहे हैं। मैं अकेला घंटे भर से बोल रहा हूं, रुका नहीं। उनके अंदर हौसला नहीं है, वो बचने का रास्ता ढूंढ रहे हैं। आप समझ गए होंगे। बोल नरेंद्र मोदी के हैं और स्थान संसद का निचला सदन यानी लोकसभा। तारीख नौ फरवरी 2023। मौका था राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का। जब पीएम मोदी बोल रहे थे तो खुद अपना सीना ठोक रहे थे। उन्होंने विरोधियों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि अपने-अपने राज्यों में जाकर समझाएं कि ये गलत रास्ते पर न चले जाएं, पड़ोसी देशों का हाल देखें, अनाप-शनाप कर्जे लेकर क्या हाल कर दिया है। उनका इशारा छत्तीसगढ़ और राजस्थान की कांग्रेसी सरकारों पर रहा होगा जहां ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की घोषणा की गई है। मोदी शायद पंजाब की तरफ भी इशारा कर रहे होंगे जहां आम आदमी पार्टी ने फ्री बिजली, फ्री पानी जैसे वादों पर चुनाव जीत लिया। हिमाचल प्रदेश से भाजपा बाहर हो गई। मोदी ने जिस ताव से सीना ठोका उसका असर नहीं हो सका। जब कर्नाटक के नतीजे आए तो दक्षिण के द्वार से भाजपा साफ हो गई। बना बनाया रास्ता ब्लॉक हो गया। तब से अब भारतीय जनता पार्टी की रणनीति 360 डिग्री घूम चुकी है। अब नरेंद्र मोदी खुद बता रहे हैं कि एक अकेला चुनाव नहीं जिता सकता। इकॉनमी के लिए वोकल फॉर लोकल का नारा देने के बाद भाजपा के लिए पीएम मोदी फोकस ऑन लोकल का नारा लगा रहे हैं। दमन में पंचायत प्रमुखों से बात करते हुए मोदी ने गांव के मुद्दों को उठाने की अपील की। और जब एनडीए के सांसदों से मिले तो यही मूल मंत्र दिया कि जाइए लोकल मुद्दों को उठाइए। राम मंदिर और धारा 370 जैसे मुद्दे सहायता करेंगे चुनाव नहीं जितवाएंगे। ऐसा भाजपा समझ चुकी है।मोदी की चमक हुई फीकी2014 की जीत के बाद मोदी एक ब्रांड बन गए। इलेक्शन जीतने के लिए पूरी पार्टी लीडरशिप और कार्यकर्ता ब्रांड मोदी पर डिपेंड हो गया। मोदी-मोदी के गगनभेदी नारे इसकी तस्दीक भी करते थे। फिर क्या,चाहे दिल्ली का चुनाव हो या हैदराबाद का निकाय चुनाव, हर चुनाव भाजपा मोदी के चेहरे पर लड़ने उतरी। शुरुआत ठीक हुई। नतीजे अच्छे आए लेकिन जल्दी ही मोदी मैजिक उतर गया। स्थानीय चुनाव ब्रांड मोदी के सहारे जीतना मुश्किल है, अब पार्टी और मोदी खुद ये समझ चुके हैं। ब्रांड मोदी ईमानदारी का पर्याय हो सकता है लेकिन लोकल लेवल पर भाजपा के कथित भ्रष्टाचार को नहीं ढक सकता। कर्नाटक में यही तो हुआ। बीएस येदियुरप्पा सीएम के बदले पे-सीएम ब्रांड कर दिए गए। कांग्रेस ने ऐसा किया। मोदी मैजिक फेल हो गया। कर्नाटक नतीजों के ठीक बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने नसीहत दे दी थी कि मोदी के करिश्मा और हिंदुत्व के बूते हर चुनाव नहीं जीत सकते। कर्नाटक तो मोदी के आने के बाद पहला ऐसा राज्य बना जहां भाजपा को भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा। ब्रांड मोदी पर निर्भरता किसका प्रयोग था कहना मुश्किल है। कुछ संकेत मोदी के उस भाषण से निकाल सकते हैं जिसमें वो खुद को सब पर भारी बता रहे। खैर, देर आए दुरूस्त आए। कुछ बातें तो समझ में आ ही गईं हैं।1. अब आप अमित शाह या नरेंद्र मोदी को कांग्रेस मुक्त भारत का नारा लगाते नहीं देखते होंगे।2. चार राज्यों में कांग्रेस अपने बूते सत्ता में है – कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश। बिहार, झारखंड और तमिलनाडु में कांग्रेस गठबंधन सरकार में शामिल है।3. भाजपा नौ राज्यों में अपने बूते सत्ता में है – उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, गोवा, असम, त्रिपुरा, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश। छह अन्य राज्यों में भाजपा गठबंधन सरकार में शामिल है – महाराष्ट्र, हरियाणा, सिक्किम, मेघालय, नगालैंड और पुडुचेरी4. देश की लगभग 30 परसेंट आबादी पर कांग्रेस या उसके गठबंधन वाली सरकार का शासन है। लगभग 45 प्रतिशत आबादी पर भाजपा या उसके सहयोगी दलों का शासन है। लेकिन ये जानना जरूरी है कि मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भाजपा ने हारने के बाद दल बदल के आधार पर सरकार बनाई।5. देश की 25 प्रतिशत आबादी या नौ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में न भाजपा का शासन है और न ही कांग्रेस का – केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मिजोरम, दिल्ली और पंजाबअसली खेलअब अगर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में जनादेश चुराने के आरोपों को छोड़ भी दें तो असली खेल गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी राज्यों से शुरू होता है। पहले इस खेल को समझना मुश्किल था। लेकिन इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस (I.N.D.I.A) के बनने के बाद कांग्रेस और भाजपा दोनों जिसकी धुरि में हैं वो अलायंस सामने दिखाई दे रहा है। भारत जोड़ो यात्रा के बाद बनी इंडिया में ममता बनर्जी भी हैं, अरविंद केजरीवाल भी और सीताराम येचुरी भी। 2024 के रण तक टिके रहेंगे या नहीं, इस पर मैं कोई दावा नहीं कर रहा लेकिन भाजपा के नए नवेले एनडीए प्यार से तुलना करें तो फॉरमेशन सॉलिड है। मोदी तो खुद को ही सब पर भारी बता रहे थे, ऐसे में एनडीए पर फोकस करना और 38 पार्टियों को जुटाकर फेडरल पॉलिटिक्स में क्षेत्रीय अस्मिता के सामने समर्पण करने की कोशिश ये दिखाता है कि भाजपा की रणनीति 360 डिग्री घूम चुकी है। मोदी कल्ट से मोह भंग हो चुका है।भोपाल और रायपुर से जो खबरें मिल रही हैं उनके मुताबिक चुनाव की तैयारी का कमान दिल्ली वाले संभाल रहे हैं लेकिन लोकल वाले ज्यादा वोकल हैं। इसलिए 2024 का सेमीफाइनल दिलचस्प होने वाला है।आलोक कुमारअमृत काल से कर्तव्य कालखुद मोदी अमृतकाल के बदले कर्तव्य काल पर फोकस करने लगे हैं। बता रहे हैं कि आजादी की सौंवी वर्षगांठ तक हमे कर्तव्य पथ पर चलते हुए देश को विकसित बनाना है। अब राहुल गांधी की यात्रा ने भाजपा को ट्रैक बदलने पर मजबूर किया या राज्यों में सिकुड़ते आंकड़े ने, ये पार्टी जाने। लेकिन अभी तो मैसेज यही है कि हम गठबंधन धर्म निभाने में कांग्रेस से आगे हैं, देखिए नीतीश कुमार को कम सीटें मिलने पर भी सीएम बनाए। अब एनडीए के 38 दलों का दमखम देखिए।एनडीए में शामिल 37 पार्टियों ने 2019 में 30 से कम सीटें जीती।चौंकना बाकी है आपका। एनडीए में 16 दल ऐसे हैं जो पिछले लोकसभा चुनाव में एक सीट भी नहीं जीत पाए।यही नहीं, नौ दल ऐसे हैं जिन्होंने चुनाव में हिस्सा ही नहीं लिया।उधर इंडिया के 26 दलों में डीएमके लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है जिसके पास 24 सांसद हैं। टीएमसी चौथी सबसे बड़ी पार्टी है जिसके पास 23 सांसद हैं।राहुल का खेल आसान नहींइतना होते हुए भी 2024 का महासमर इंडिया के लिए केक वॉक नहीं है। तेजी से बदली रणनीति के तहत टीम मोदी वाईएसआर कांग्रेस के जगनमोहन रेड्डी को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है। टीडीपी तो बस साथ आने ही वाली है। तो कुनबा भाजपा भी बढ़ाएगी ये तय है। साथ ही योगी से मिली सीख ने भी छाप छोड़ी है। भाजपा को एहसास हो चला है कि राज्यों में कमान वहीं के क्षत्रप संभाले तो ज्यादा अच्छा। इसीलिए अटल बिहारी वाजपेयी काल में लौट रही है बीजेपी। कल्याण सिंह, वसुंधरा राजे, बीएस येदियुरप्पा, अनंत कुमार, मदनलाल खुराना, कैलाशपति मिश्र सरीखे क्षत्रपों को अपने-अपने राज्यों में जो आजादी मिली उस मोड में वापस लौटने की कोशिश हो रही है। मध्य प्रदेश चुनाव अभियान की कमान नरेंद्र तोमर को दी गई है। एमपी में 28 सीटिंग विधायकों को दोबारा मौका दिया है तो तो छत्तीसगढ़ की पहली सूची में 11 विधायकों के टिकट काट दिए गए हैं। भूपेश बघेल से लड़ने के लिए भाजपा ने दुर्ग सांसद विजय बघेल को उतारा है। भोपाल और रायपुर से जो खबरें मिल रही हैं उनके मुताबिक चुनाव की तैयारी का कमान दिल्ली वाले संभाल रहे हैं लेकिन लोकल वाले ज्यादा वोकल हैं। इसलिए 2024 का सेमीफाइनल दिलचस्प होने वाला है।