प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साउथ अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में हुए ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में शामिल हुए। अब ब्रिक्स का विस्तार करने का फैसला किया गया है। अब ब्रिक्स देशों में 6 नए देश अर्जेंटीना, इजिप्ट, ईरान, इथियोपिया, सऊदी अरब और यूएई जुड़ जाएंगे। साउथ अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में हुए ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में आखिर इसके विस्तार का फैसला हो गया। फैसले के मुताबिक पांच देशों- ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका- के इस संगठन में अगले साल 1 जनवरी को छह नए सदस्य- अर्जेंटीना, इजिप्ट, ईरान, इथियोपिया, सऊदी अरब और यूएई- जुड़ जाएंगे। वैसे ब्रिक्स के विस्तार पर चर्चा काफी पहले से हो रही है। 2009 में इस संगठन के अस्तित्व में आने के एक साल बाद यानी 2010 में ही इसमें साउथ अफ्रीका को जोड़ लिया गया। उसके बाद से ही नए सदस्यों की एंट्री पर जब-तब चर्चा होती रही है। लेकिन पिछले कुछ समय से यह मुद्दा काफी जोर पकड़ चुका था, जिसकी दो बड़ी वजहें रहीं। एक तो यह कि ग्रुप से जुड़ने की चाहत रखने वाले देशों की संख्या बढ़ती चली गई। 22 देश इस मंच का हिस्सा बनने के लिए बाकायदा आवेदन कर चुके हैं। 40 से ज्यादा देश इसकी इच्छा जता चुके हैं। दूसरी वजह यह रही कि बदले वैश्विक हालात के मद्देनजर चीन इस पर बहुत जोर दे रहा था। इसे देखते हुए यह आशंका जताई जा रही थी कि शायद भारत इस मसले पर ज्यादा पॉजिटिव रुख न दिखाए। चीन के सरकार नियंत्रित मीडिया ने कुछ दिन पहले पश्चिमी देशों पर आरोप भी लगा दिया कि वे नहीं चाहते विस्तार के बाद ब्रिक्स एक मजबूत संगठन बनकर उभरे, इसलिए भारत और चीन में फूट डालने की कोशिश कर रहे हैं।बहरहाल, इन अटकलबाजियों से अलग भारत पहले ही साफ कर चुका था कि वह ब्रिक्स के विस्तार के खिलाफ नहीं है। अन्य मुद्दों की तरह इस मामले में भी उसका रुख किसी खास देश या लॉबी के आग्रह या शंका आशंका से नहीं बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों से निर्देशित हो रहा था। ध्यान रहे, भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समेत तमाम वैश्विक संगठनों और मंचों के विस्तार और उनमें समय के मुताबिक सुधार की वकालत करता रहा है। ब्रिक्स के विस्तार के ताजा फैसले से उस अजेंडे को आगे बढ़ाने में आसानी होगी। हालांकि इसके बावजूद इस फैसले में निहित चुनौतियों की अनदेखी नहीं की जा सकती। एक तरफ यह आशंका है कि इन नए सदस्यों में से कई देशों के साथ अपनी करीबी की बदौलत चीन इस मंच पर अपना दबदबा बढ़ाने का प्रयास कर सकता है तो दूसरी तरफ कुछ हलकों में यह संदेह भी है कि चीन, रूस और ईरान जैसे देशों के प्रभाव में इसे पश्चिमी देशों के खिलाफ एक मंच के रूप में इस्तेमाल न किया जाने लगे। इन आशंकाओं और संदेहों के बीच सभी देशों के हितों में सामंजस्य स्थापित करते हुए बेहतर विश्व सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए इस मंच को निश्चित रूप से ज्यादा परिपक्व और दूरदर्शितापूर्ण नजरिया अपनाना होगा।एनबीटी डेस्क के बारे मेंNavbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म… पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐपलेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें