भूस्खलन से बढ़ी टेंशन, हिल स्टेशनों की क्षमता समझने को सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

नई दिल्ली: लंबी छुट्टियां या वीकेंड मनाने के लिए लोगों की पहली पसंद उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और अन्य हिमालयी राज्य बन रहे हैं। काम से जरा सी फुर्सत मिलते ही लोग सुकून की सांस लेने इन पहाड़ी राज्यों की ओर रुख कर रहे हैं। इस वजह से वहां वाहनों की कतार और भीड़-भाड़ बढ़ रही है। अब इसपर सुप्रीम कोर्ट सीरियस हुआ है। सर्वोच्च अदालत ने इसके लिए एक पैनल बनाने का फैसला किया है। इस पैनल में पर्यावरण, जल विज्ञान,इकोलॉजी और जलवायु अध्ययन के विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा। यह पैनल भूस्खलन और आपदाओं से त्रस्त भीड़भाड़ वाले पहाड़ी स्टेशनों की वहन क्षमता का आकलन करेगी।यह बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है- सीजेआईसीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक जनहित याचिका (PIL) का जिक्र करते हुए कहा, ‘यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है।’ याचिकाकर्ता अशोक कुमार राघव के वकील आकाश वशिष्ठ ने कहा कि जब तक पहाड़ी राज्यों में पर्यटन स्थलों की वहन क्षमता का आकलन नहीं किया जाता और मास्टर प्लान को बदला नहीं जाता, तब तक पर्यावरण और पारिस्थितिक आपदाएं इन शहरों की स्थिरता को खतरे में डालती रहेंगी। उन्होंने कहा कि विशेषज्ञ संस्थानों की ओर से एक व्यापक अध्ययन किए जाने की जरूरत है, क्योंकि हिमालय क्षेत्र में प्रतिदिन तबाही देखी जा रही है। बेंच ने कहा, तीन-चार संस्थान अपने प्रतिनिधि नामित कर सकते हैं और हम उनसे हिमालय क्षेत्र के जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता का एक पूर्ण और व्यापक अध्ययन करने को कह सकते हैं।शीर्ष अदालत ने केंद्र और याचिकाकर्ता को समिति के दायरे के बारे में सुझाव देने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम पैनल के काम को हिमालयी राज्यों तक सीमित रखेंगे। हमें मसौदा सुझाव दें और हम इसे सोमवार को उठाएंगे। कोर्ट ने आगे कहा कि हम राज्यों को केंद्र के टेम्पलेट का जवाब देने के लिए इंतजार नहीं कर सकते। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अश्वश्रय भट्टी ने अदालत को बताया कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण के कई निर्देशों के आधार पर, केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के लिए पहाड़ी स्टेशनों के लिए एक टेम्पलेट तैयार किया है और उनके जवाब मांगे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि भूमि राज्यों के संवैधानिक अधिकार क्षेत्र में आती है।दो तरफा नीति अपनाएगा सुप्रीम कोर्टशीर्ष अदालत ने कहा कि वह दो-तरफा रणनीति अपनाएगी। एक तरफ, केंद्र सरकार सभी राज्यों से अपने टेम्पलेट के लिए 8 सप्ताह में जवाब मांग सकती है, जो कि पहाड़ी स्टेशनों के सतत विकास और शहरीकरण के लिए है। दूसरी तरफ, यह हिमालयी राज्यों की वहन क्षमता का निर्धारण करने के लिए एक विशेषज्ञ निकाय का गठन करेगी। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘हम सभी राज्यों को केंद्र के टेम्पलेट का जवाब देने के लिए इंतजार नहीं कर सकते। जब केंद्र को राज्यों से जवाब मिल जाएगा, तो वह इसे इकट्ठा कर सकता है और अदालत को अपने सुझाव दे सकता है। साथ ही, विशेषज्ञ निकाय हिमालयी राज्यों की वहन क्षमता का आकलन कर सकता है।’ अदालत ने मामले को 28 अगस्त को आदेश पारित करने के लिए पोस्ट कर दिया।याचिकाकर्ता का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोधयाचिकाकर्ता ने केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया था। अनुरोध में कहा गया कि वह सभी 12 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में सभी पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों, पहाड़ी स्टेशनों, ऊंचाई वाले क्षेत्रों, अधिक देखे जाने वाले क्षेत्रों और पर्यटन स्थलों की वहन क्षमता को पर्यटकों के प्रवाह और उसके प्रभाव, वाहनों के यातायात, भूजल और सतह के जल की कमी, हवा, पानी, पेड़ों, जंगलों और जैव विविधता के साथ-साथ जल प्रबंधन और स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता के संदर्भ में निर्धारित करे।