नई दिल्ली: राज्यसभा में गुरुवार को सरकार ने चुनाव आयोग में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य दूसरे निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, सेवा की शर्तों और कार्यकाल के रेगुलेशन के लिए एक बिल पेश किया। बिल में चुनाव आयोग में शीर्ष पदों के लिए चयन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति की ओर से करने का प्रावधान है, जिसमें लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक नोमिनेटेड कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे। प्रस्तावित बिल तब आया है, जब पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयोग में शीर्ष नियुक्ति के लिए बनी कमिटी में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस शामिल होंगे। अब बिल पास होता है, तो इसमें चीफ जस्टिस शामिल नहीं होंगे। विपक्ष ने अचानक पेश हुए इस बिल को संविधान विरोधी बताया है। कांग्रेस ने कहा कि इस बिल के माध्यम से पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह निर्वाचन आयोग को नियंत्रित करना चाहते हैं। दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि इससे चुनाव की निष्पक्षता पर असर पड़ेगा।चुनाव आयोग को पीएम की कठपुतली बनाने की कोशिशः विपक्षविपक्ष ने मुख्य चुनाव आयुक्तों और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित नए विधेयक को लेकर गुरुवार को को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला। उसने कहा कि यह चुनाव निकाय को प्रधानमंत्री के हाथों की कठपुतली बनाने का प्रयास है। आम आदमी पार्टी (आप) ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी भारतीय लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं और नियुक्त होने वाले चुनाव आयुक्त बीजेपी के प्रति वफादार होंगे। वहीं, तृणमूल कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह 2024 के चुनाव में धांधली की दिशा में एक स्पष्ट कदम है। कांग्रेस नेताओं ने सभी लोकतांत्रिक ताकतों से प्रस्तावित कानून का विरोध करने की अपील करते हुए सवाल किया कि क्या बीजू जनता दल (बीजेडी) और वाईएसआर कांग्रेस भी विधेयक का विरोध करने के लिए हाथ मिलाएंगे। बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस द्वारा राज्यसभा में सरकार को महत्वपूर्ण मुद्दों पर समर्थन दिया जाता रहा है। उच्च सदन में बीजेपी के पास बहुमत नहीं है।कांग्रेस महासचिव (संगठन) के.सी. वेणुगोपाल ने सरकार पर निशाना साधा और इसे चुनाव आयोग को प्रधानमंत्री के हाथों की कठपुतली बनाने का प्रयास बताया। वेणुगोपाल ने कहा, सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा फैसले के बारे में क्या कहना है जिसके तहत एक निष्पक्ष समिति की आवश्यकता है? प्रधानमंत्री को पक्षपाती एक्स पर आयुक्त नियुक्त करने की आवश्यकता क्यों महसूस होती है? यह एक असंवैधानिक, मनमाना और अनुचित विधेयक है- हम हर मंच पर इसका विरोध करेंगे।’ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उन्होंने हमेशा कहा है कि मौजूदा केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के ऐसे किसी भी आदेश को पलट देगी जो उसे पसंद नहीं आएगा। उन्होंने कहा कि यह एक खतरनाक स्थिति है और इससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है। तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य साकेत गोखले ने कहा, बीजेपी 2024 के चुनावों के लिए धांधली कर रही है।मौजूदा CEC का टर्म आम चुनाव से ठीक पहले होगा समाप्तमौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पाण्डेय अगले साल 14 फरवरी को 65 साल की उम्र के होने के बाद रिटायर होंगे। वह 2024 के लोकसभा चुनावों की संभावित घोषणा से कुछ दिन पहले अवकाश ग्रहण करेंगे। अगर बिल पास होता है तो सरकार अपने हिसाब से नई नियुक्ति कर सकेगी। नए बिल में चुनाव आयुक्त के लिए न्यूनतम योग्तया भी तय की गई, जिसके तहत उनका सचिव स्तर पर कम से कम दो साल काम करने का लक्ष्य है।एनबीटी लेंस: टकराव का नया रास्ता बनाप्रस्तावित बिल के माध्यम से सियासी टकराव का एक और रास्ता खुल गया। संसद के इसी सत्र में संसद ने दिल्ली आर्डिनेंस से जुड़ा बिल पास किया गया जिसपर विपक्ष का कहना था कि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश जबरन पलल् रही है। अब अगले कुछ दिन इसपर भी राजनीति तेज होगी। हालांकि सरकार का तर्क है कि चाहे दिल्ली से जुड़ा बिल हो या चुनाव आयोग में बदलाव वाला बिल,वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुरूप ही काम कर रही है। सरकार का तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह मानदंड तब तक प्रभावी रहेगा, जब तक की इस मुद्दे पर संसद में कोई कानून नहीं बन जाता। हालांकि अगर कानून पास होता है तो इसकी कानूनी समीक्षा का भी रास्ता खुला रह सकता है।