मैं आरंभ से आरंभ करना चाहता हूं… उस दिन अटल को सुनकर खिलखिलाते रहे PM नरसिम्हा राव

नई दिल्‍ली: यह किस्‍सा नरसिम्हा राव सरकार के कार्यकाल का है। इस सरकार ने कुछ दिन पहले ही शपथ ली थी। उन द‍िनों राजनीतिक अस्‍थ‍िरता चरम पर थी। संसद के दोनों सदनों को राष्‍ट्रपति ने संबोधित किया था। इसमें काफी टोका-टोकी हुई थी। अटल बिहारी वाजपेयी विपक्ष के नेता थे। उन्‍होंने इस मुद्दे को उठाया था। वह इस विषय पर जमकर बोले थे। अटल ने चुटीले अंदाज में कहा था कि राष्‍ट्रपति का अभिभाषण कर्मकांड बनकर रह गया है। राष्‍ट्रपतियों को सरकार के लिखे भाषण को मजबूरन पढ़ना पड़ता है। राज्‍यपालों की भी स्थिति यही है। तब उन्‍होंने तत्‍कालीन राष्‍ट्रपत‍ि के भाषण का एक परिच्‍छेद का जिक्र किया था। यह भाषण के अंत में था। यह अन्‍य पैरों से काफी लंबा था। इसका संदर्भ भी अलग ही था। अटल ने जब इसका जिक्र किया तो तत्‍कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्‍हा राव उनकी बात सुनकर खिलखिला दिए। उस दिन संसद में अटल के भाषण पर क्‍या पक्ष क्‍या विपक्ष सब ठहाके लगा रहे थे।अटल ने अपनी स्‍पीच की शुरुआत करते हुए बोला था – ‘मैं आरंभ से आरंभ करना चाहता हूं। राष्‍ट्रपति ने 24 फरवरी को संसद के दोनों सदनों के संयुक्‍त अधिवेशन को संबोधित किया। वह प्रति वर्ष ऐसा करते हैं। लिखा हुआ भाषण पढ़ते हैं। इस मामले में उनकी स्थिति ब्रिटेन की महारानी की तरह है। लेकिन, ब्रिटेन की महारानी को संसद के सदस्‍यों का पूरा सम्‍मान तो मिलता है। यहां तो राष्‍ट्रपति के अभिभाषण में टोका-टोकी होती है। कभी-कभी बहिष्‍कार होता है। कभी स्थिति इससे भी ज्‍यादा बिगड़ सकती है।’अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि वह 1957 से राष्‍ट्रपतियों का अभिभाषण सुन रहे हैं। उस दिन वह बैठे-बैठे सेंट्रल हॉल में सोच रहे थे कि क्‍या राष्‍ट्रपति का अभिभाषण जरूरी है? क्‍या यह कर्मकांड बनकर नहीं रह गया है? क्‍या उस अवसर की रक्षा करने में हम समर्थ होते हैं? क्‍या राष्‍ट्रपति के अभिभाषण को टोका-टोकी का विषय बनाना चाहिए।मैं 1957 से राष्‍ट्रपतियों का अभिभाषण सुन रहा हूं। उस दिन मैं बैठे-बैठे सेंट्रल हॉल में सोच रहा था कि क्‍या राष्‍ट्रपति का अभिभाषण जरूरी है? क्‍या यह कर्मकांड बनकर नहीं रह गया है? क्‍या उस अवसर की रक्षा करने में हम समर्थ होते हैं? क्‍या राष्‍ट्रपति के अभिभाषण को टोका-टोकी का विषय बनाना चाहिए।अटल ब‍िहारी वाजपेयीमजेदार अंदाज में राष्‍ट्रपति की मुश्‍क‍िल का अटल ने क‍िया था ज‍िक्रवाजपेयी ने फिर कहा, ‘ठीक है हमारा राष्‍ट्रपति अमेरिका के राष्‍ट्रपति की तरह पूरे राष्‍ट्र को संबोधित नहीं करता है। वहां उसकी संवैधानिक स्थिति अलग है। लेकिन, यहां हमारा राष्‍ट्रपति किस मुश्किल में पड़ जाता है। इस पर हम थोड़ा विचार करें। पहले उन्‍होंने विश्‍वनाथ प्रताप सिंह की सरकार का भाषण पढ़ा। बाद में चंद्रशेखर सरकार की सरकार का। अब उन्‍होंने नरसिम्‍हा राव सरकार का लिखा भाषण पढ़ा। पता नहीं आज कुछ हो जाए, मैं जानता हूं होगा नहीं। अब राष्‍ट्रपति को फिर एक भाषण पढ़ने के लिए तैयार करना। मैं समझता हूं इस पर विचार होना चाहिए।’बाइडन, जिनपिंग… जी-20 के लिए भारत आने वाले हैं दुनिया के 25 शक्तिशाली नेता, जानें कौन-कौन आ रहा दिल्‍लीअटल ने राज्‍यों की स्थिति का भी जिक्र किया था। उसे और भी बदतर बताया था। वह बोले थे, ‘प्रदेशों में स्थिति और भी खराब है। राज्‍यपाल जब विधानमंडल के अधिवेशनों में भाषण के लिए आते हैं तो हाथापाई को तैयार होकर रहते हैं। उन्‍हें सदन में घुसने से रोका जाता है। बोलने से रोका जाता है। उनके ऊपर कागज फेंके जाते हैं। दस्‍तावेज उछाले जाते हैं। राज्‍यपाल भाषण का पहला और अंतिम पन्‍ना पढ़ते हैं और वापस चले जाते हैं। यह स्थिति ठीक नहीं है। क्‍या जरूरत है उन्‍हें इस स्थिति में डालने की। यह एक गंभीर मामला है।’वाजपेयी के भाषण पर ख‍िलख‍िलाते रहे नरस‍िम्‍हा राववाजपेयी ने तब पुरानी परंपराओं को स्‍थापित करने के साथ नई परंपराएं जोड़ने का आह्वान किया था। उन्‍होंने कहा था कि लोकतंत्र को उपहास का विषय नहीं बनाया जा सकता है। वह बोले थे, ‘मैं चाहूंगा कि इस संबंध में पुरानी परंपरा स्‍थापित कर दें। जरूरत पड़े तो नई परंपराएं डालने का मौका है। लोकतंत्र को हम उपहास का विषय नहीं बनाएं। नई पीढ़ी के सामने गलत आदर्श न रखें। अगर हम किसी अवसर की मर्यादा की रक्षा नहीं कर सकते हैं तो उस अवसर को टाल दें। आप इस संबंध में सर्वदलीय बैठक बुला सकते हैं। आचार संहिता बना सकते हैं।’पुतिन के बाद अब चीन के राष्‍ट्रपति जिनपिंग भी भारत के जी-20 सम्‍मेलन से बना सकते हैं दूरी, जानें वजहफिर अटल जी ने राष्‍ट्रपति के भाषण में लिखी बातों का जिक्र किया था। इसे बेवजह लंबा बताया था। उन्‍होंने कहा था, ‘यह (राष्‍ट्रपति का) भाषण जरूरत से ज्‍यादा लंबा है। छोटी-छोटी बातों को राष्‍ट्रपति के मुंह में रखने की क्‍या जरूरत है? इसमें 30 परिच्‍छेद हैं। मुझे लगता है कि 30वां परिच्‍छेद बाद में जल्‍दी में जोड़ा गया है। यह एक बहुत लंबा पैरा है। यह शिक्षा से जुड़ा है। हो सकता है कि शिक्षा मंत्री कहीं व्‍यस्‍त हों, कुकड़ेश्‍वर से चित्रकूट की यात्रा कर रहे हों। उन्‍हें समय नहीं मिला हो। यह पैरा पढ़ने में अच्‍छा नहीं लगता है। पूरे भाषण में ठीक से बैठता भी नहीं है।’जब अटल यह सब बोल रहे थे तो तत्‍कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्‍हा राव खिलखिला रहे थे। उनके साथ संसद के दूसरे सदस्‍य भी ठहाके लगा रहे थे।अटल ने तत्‍कालीन सरकार को भी निशाने पर लिया था। वह बोले थे कि जब यह सरकार बनी तो घोषणा की गई थी कि देश को आम सहमति के आधार पर चलाना चाहिए। यह सरकार अल्‍पमत वाली थी। लगा था कि यह सबको साथ लेकर चलेगी। कुछ दिन ऐसा हुआ। लेकिन, बाद में आम सहमति बनाने की कोशिश नहीं की गई।