यह जिद ही तो है… क्यों चांद पर पहुंचने के लिए पागल रहता है इंसान

नई दिल्ली: आज से 22 साल पहले 1991 में एक फिल्म आई थी ‘दिल है कि मानता नहीं’। आमिर खान और पूजा भट्ट पर फिल्माया गया टाइटल सॉन्ग आज भी लोगों की जुबां पर है। तो फिर हमारी इस खबर से इस गाने का क्या कनेक्शन। कनेक्शन है जनाब। साल 2019 में जब हमारा चंद्रयान-2 मिशन असफल हुआ था तब इसरो के तब के चीफ के सिवन के साथ पूरा देश रोया था। उसके बाद यह दिल ही तो था जो मान नहीं रहा था। 2023 में चांद पर पहुंचने की जिद ही थी जो इतिहास रच गई। पिछली विफलता पर निराश होने की जगह इसपर काम हुआ और इसे और एडवांस किया गया। अब देखिए नतीजे आपके सामने है। इसरो चीफ एम सोमनाथ की अगुवाई में भारत ने वो कर दिखाया है जो कोई भी देश नहीं कर पाया। चांद पर विक्रम लैंडर के कदम रखते ही हमने वो पा लिया जिसकी सख्त जरूरत थी, जिसके बाद दुनिया को बताना था और न्यूयॉर्क टाइम्स सरीखे न्यूज मीडिया को भी कि देख लो हमें कम आंकने की भूल महंगी पड़ सकती है। इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो पाएंगे कि इंसान की चांद पर जाने की जिद पुरानी है। भारत ही नहीं अमेरिका के अलावा भी देश हैं जिन्होंने चांद पर पहुंचने की इस जिद को पूरा किया है।चांद पर जाने की जिद पुरानी हैप्रोजेक्ट होराइजन याद है? जी हां वही प्रोजेक्ट होराइजन जिसके बारे में चांद पर कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रांग और बज़ एल्ड्रिन ने 20 मार्च 1957 को सोच लिया था। नील आर्मस्ट्रांग और बज़ एल्ड्रिन ने दशक बाद 20 जुलाई 1969 को चांद पर कदम रखा था। संयुक्त राज्य अमेरिका के पास मौजूद 121 पेज के दस्तावेज(जिसे अब हटा दिया गया है) में चंद्रमा को उपनिवेशित करने के तरीके और कारणों का विवरण दिए गए थे। यूएसएसआर के अंदर भी इस तरह की महत्वकांक्षाएं पल रही थीं और साल 1961 में यूरी गागरिन के रूप में अंतरिक्ष में पहले व्यक्ति बन गए थे। भारत दक्षिण ध्रुव पर है, रूस, अपने लूना-25 की विफलता के बाद, वापसी की तैयारी कर रहा है, साथ ही चीन, जापान, इजरायल और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी भी हैं। 2019 और अब के बीच, केवल चीन और भारत ही सफल हुए हैं। यही नहीं भारत और जापान एक संयुक्त चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण (लूपेक्स) मिशन की योजना बना रहे हैं।विक्रम और प्रज्ञान ने चांद पर किया ऐसा काम, इसरो का दिल भी हो गया खुश60% लैडिंग मिशन विफल भी हुएअमेरिका का आर्टेमिस शायद कई लंबी अवधि के मिशनों में से पहला हो सकता है। इसका उद्देश्य चंद्रमा को अंतरिक्षयात्रा के लिए एक लॉन्चपैड के रूप में उपयोग करना है। लेकिन चंद्रमा मिशन अभी भी कठिन हैं। कम से कम 60% लैंडिंग मिशन विफल हो गए हैं। इसरो के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने कहा, ‘उन्नत तकनीकों के साथ भी, किसी भी देश के लिए चंद्रमा पर उतरना एक कठिन अभ्यास है।’ इसके कारण हैं। चंद्रमा की बदलती स्थिति और भिन्न गुरुत्वाकर्षण जो अंतरिक्ष यान के यात्रा और कक्षा में प्रवेश को प्रभावित करते हैं, वायुमंडल की कमी जो नरम लैंडिंग को मुश्किल बनाती है, और चरम तापमान।चांद पर चहलकदमी कर रहा नन्हा प्रज्ञान, लैंडर विक्रम ने भेजी तस्वीरतो परेशानी क्यों उठाएं? वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा पृथ्वी के प्रारंभिक इतिहास का एक रिकॉर्ड रखता है और चंद्रमा को समझने से हमें सौर मंडल के विकास को समझने में मदद मिलेगी। चंद्रमा सबसे निकटतम खगोलीय पिंड है जो डीप स्पेस मिशनों के लिए जरूरी टेक्नोलॉजी के लिए एक अच्छा परीक्षण स्थल हो सकता है। इसरो ने कहा, ‘चंद्र मिशन हमारे चंद्रमा के बारे में समझ को बढ़ाने, तकनीक के विकास को प्रोत्साहित करने, वैश्विक गठबंधनों को बढ़ावा देने और खोजकर्ताओं और वैज्ञानिकों के एक भविष्य के पीढ़ी को प्रेरित करने का लक्ष्य रखते हैं।’