नए कानून में क्या होगा- प्रस्तावित कानून के सेक्शन 150 में अब भी देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता के खिलाफ काम करने वाले अलगाववादियों, सशस्त्र विद्रोह और विध्वंसक गतिविधियों के लिए सख्त दंड का प्रावधान किया गया है।- प्रस्ताव में सरकार की आलोचना और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों का देश के खिलाफ विध्वंसक, अलगाववादी और सशस्त्र विद्रोह वाली गतिविधियों से अंतर स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है।- एक अधिकारी ने TOI को बताया कि नए कानून को ‘देशद्रोह’ (Treason) के तौर पर जाना जाएगा, राजद्रोह नहीं जो ब्रिटिश क्राउन से संबंधित है।- अभी सिडिशन कानून के तहत अपराध में तीन साल तक की जेल से लेकर आजीवन कारावास का प्रावधान है। इसमें जुर्माना भी लगाया जा सकता है।- नए प्रस्तावित कानून में दोषियों को उम्रकैद या सात साल तक की जेल और जुर्माना लगाया जा सकता है।- विधेयक के अनुसार, जो कोई भी स्टेट के खिलाफ युद्ध छेड़ने या युद्ध छेड़ने के इरादे से व्यक्तियों को एकत्र करता है, हथियार या गोला-बारूद इकट्ठा करता है या युद्ध छेड़ने की तैयारी करता है, उसे न्यूनतम 10 साल और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा होगी और उसे जुर्माना भी देना होगा।- बड़ी बात: राजद्रोह कानून खत्म हो रहा और अब सरकार के खिलाफ नफरत, विरोध पर सजा नहीं होगी लेकिन देश के खिलाफ कुछ भी करने पर दंड मिलेगा।कब कौन सी सजा, पूरी बात समझिएनए प्रावधानों में कहा गया है कि राष्ट्र के खिलाफ कोई भी कृत्य चाहे मौखिक या लिखित या संकेतों के माध्यम से या इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा किया जाए, तो उसके लिए आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) विधेयक 2023 के अनुसार जो कोई भी व्यक्ति जानबूझकर अपने शब्दों, संकेतों, इलेक्ट्रॉनिक संचार या वित्तीय साधनों का इस्तेमाल करके उकसाने या लोगों को उत्तेजित करने का प्रयास करता है या भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालता है; या ऐसे किसी भी कार्य में शामिल होता है या उसे करता है तो उसे न्यूनतम सात साल और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। राजद्रोह गतिविधियों के लिए अभी के कानून के अनुसार, अपराध में शामिल किसी भी व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा दी जाती है।सेक्शन 124ए को खत्म करने का प्रस्ताव रखते हुए गृह मंत्री ने लोकसभा में कहा कि राजद्रोह कानून की लोकतंत्र में कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि सभी को बोलने का अधिकार और स्वतंत्रता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत के लॉ कमिशन ने कुछ महीने पहले ही सेक्शन 124ए को न सिर्फ जारी रखने की बात कही थी बल्कि सिडिशन के तहत न्यूनतम जेल की सजा को तीन साल से बढ़ाकर सात साल करने की सिफारिश की थी। पिछले साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने सिडिशन के तहत ट्रायल रोक दिया था और कहा था कि 124ए के तहत नई एफआईआर न की जाए।NCRB के डेटा के अनुसार, 2014 से 2021 के बीच 428 सिडिशन केस और इसके तहत 634 गिरफ्तारियां की गई थीं। हालांकि सिडिशन के मामलों में दोषसिद्धि 2019 में 3.3 प्रतिशत और 2020 में 33.3 प्रतिशत थी।