केंद्र की मोदी सरकार ने रसोई गैस सिलिंडर के दाम कम करने का एलान किया है। अगले कुछ महीने में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके ठीक बाद आम चुनाव भी होंगे। चुनाव से पहले लोगों को राहत देने का यह कदम चुनावी लाभ पाने का दांव माना जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार अभी राहत के कई और उपाय कर सकती है। इसमें किसान सम्मान निधि को बढ़ाने के अलावा दूसरी घोषणाएं हो सकती हैं। केंद्र सरकार और BJP आम लोगों को हो रही आर्थिक दिक्कतों को दूर करने के लिए नई स्कीम भी ला सकती है, जिसमें सस्ते कर्ज सहित सुविधाओं के दूसरे तरीके हो सकते हैं। 17 सितंबर से विश्वकर्मा योजना लागू करने का एलान पहले ही किया जा चुका है।उधर, विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. भी लोगों के आर्थिक और रोजगार से जुड़े मुद्दों को अपना सियासी हथियार बनाने का पर्याप्त संकेत दे चुका है। मुंबई में गठबंधन की होने वाली मीटिंग में इस पर और मंथन होने की संभावना है। ऐसे में अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या पिछले कुछ सालों से देश की राजनीति में भावनात्मक मुद्दों पर उठा उबाल अब ढलान पर है? क्या लोगों की दैनिक जिंदगी से जुड़े मसले फिर से हावी होने लगे हैं। ऐसा निष्कर्ष निकालना अभी जल्दबाजी कही जा सकती है, पर इतना तो जरूर है कि इस मुद्दे ने लोगों में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी है। इससे सियासत की दशा-दिशा भी प्रभावित होती दिखने लगी है।पहला दांव विपक्ष काविपक्ष कुछ सालों से नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली BJP से सियासी मैदान में निपटने के लिए मुद्दों की तलाश कर रहा है। दरअसल, 2014 के बाद देश की राजनीति में BJP का जो अभूतपूर्व उभार हुआ, इसके पीछे खास रणनीति थी। राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मिलने से बने भावनात्मक मुद्दे और इसके बीच गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के मिश्रण ने चुनावी मैदान में BJP को अजेय सा बना दिया। विपक्ष BJP की इस घेराबंदी को भेदने का नुस्खा अब तक तलाश नहीं पाया था। इसके पीछे वजह यह रहती थी कि BJP विपक्ष की सारी घेराबंदी भावनात्मक मुद्दों के इर्द-गिर्द ही करती थी। विपक्ष को बाद में इसका एहसास हुआ और वह अब खुद से अजेंडा सेट करने लगा है। शुरुआत में विपक्ष को इसमें कुछ सफलता मिलने के संकेत भी मिले।विपक्षी दलों ने हिंदुत्व या राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों से पूरी तरह किनारा किया और महंगाई-बेरोजगारी और इससे जुड़े वादों तक अपनी राजनीति सीमित कर ली। इसके पीछे वह आंकड़ों का भी हवाला देता हैं। पिछले दिनों आए तमाम ओपिनियन पोल में महंगाई और बेरोजगारी बड़ा मुद्दा बनकर सामने आया है। लेकिन इसमें सबसे बड़ी चुनौती यह सामने आ रही थी कि भले ही लोगों को महंगाई तकलीफ दे रही है, लेकिन इन्हीं लोगों को उम्मीद यह भी थी कि मौजूदा BJP सरकार चीजों को ठीक कर सकती है। अभी तक विपक्ष इस दिशा में खास उम्मीद भी नहीं जगा पाया है। मतलब साफ है, अगर विपक्ष को इन मुद्दों पर चुनौती देनी है, तो सिर्फ शिकायत करने से बात नहीं बनेगी। उसे विकल्प और विजन के साथ सामने आना होगा। इसका अहसास होने के बाद विपक्ष सस्ता सिलिंडर, महिलाओं को पगार, पुरानी पेंशन योजना की वापसी, बेरोजगार युवाओं को भत्ता, सस्ती बिजली, महिलाओं को बसों में मुफ्त यात्रा जैसी योजनाओं के साथ सामने आया। विपक्ष को अब इस अस्त्र से BJP के किले को भेदने की उम्मीद है।इधर, जब विपक्ष ने BJP का किला भेदने के लिए महंगाई-बेरोजगारी पर ही टिके रहने की मंशा दिखाई, तो पहले पार्टी ने रेवड़ी संस्कृति पर बहस छेड़ी। लेकिन इसका जमीन पर असर कम ही हुआ। खुद BJP को कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में सत्ता खोने के बाद एहसास हुआ कि समय रहते विपक्ष के अजेंडे को काउंटर करना होगा। दरअसल, अब तक BJP के चुनावी गणित में 20 फीसदी लाभार्थी और 20 फीसदी हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का कोर वोट बनाने का लक्ष्य बनता रहा है। इस 40 फीसदी वोट को टारगेट करते हुए बीजेपी 2024 में भी ऐसे ही बड़े जनादेश से लगातार तीसरी बार वापसी की उम्मीद कर रही है। BJP को लगता है कि विपक्ष बीस फीसदी लाभार्थी और बीस वोटरों को टारगेट कर रहा है। अगर उनमें आंशिक हिस्सा भी प्रभावित होता है तो आम चुनाव में अपने दम पर सरकार बनाने के मिशन को चोट पहुंच सकती है। इसलिए BJP अभी से डैमेज कंट्रोल मोड में आ गई है।2019 और 2024 का फर्कBJP को इस बात की भी चिंता है कि 2019 और 2024 के आम चुनावों में बुनियादी फर्क है। मोदी सरकार के अपने पहले टर्म में आर्थिक मसलों, खासकर महंगाई के मोर्चे पर अधिक सवालों का सामना नहीं करना पड़ा था। हालांकि नोटबंदी से इकॉनमी जरूर प्रभावित हुई, लेकिन लोगों ने तब इसे पीएम मोदी का बोल्ड प्रयोग मानकर उन्हें पूरे अंक दिए थे। फिर महंगाई पूरे पांच साल नियंत्रित भी रही थी। विपक्ष आर्थिक अजेंडे को सियासत के केंद्र में लाने में विफल रहा था। इन सालों में कभी सर्जिकल स्ट्राइक, कभी एयर स्ट्राइक, कभी राफेल और कभी राम मंदिर जैसे मुद्दे ही सियासत के केंद्र में थे। उधर, BJP अपने लाभार्थी वर्ग को सहेज कर रखने में सफल थी। एक बार 2019 आम चुनाव से पहले आर्थिक मसले, खासकर किसानों का मुद्दा उठा तो आम चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार ने किसान सम्मान निधि का एलान कर दिया। इसके तहत सभी किसानों के खाते में हर साल 6000 रुपये दिए गए। अब केंद्र सरकार 2024 से पहले इसमें भी राशि बढ़ा सकती है। BJP का गणित है कि भले वह लाभार्थी वर्ग में नया वोट न जोड़ पाए, लेकिन पुराने वोटर को साथ रखने में सफल रहे, तो 2024 में भी पूर्ण बहुमत वाली जीत की हैट्रिक लग जाएगी। यही कारण है कि अब अगले कुछ महीने BJP इस वर्ग को मनाने और नए सिरे से लुभाने की कोशिश करती दिख सकती है।