राजेश पायलट ने चंद्रास्वामी को नहीं बख्शा, केसरी और सोनिया गांधी के खिलाफ भी अड़े थे

जयपुर : कांग्रेस के नेता रहे राजेश पायलट फिर सुर्खियों में हैं। मिजोरम की राजधानी आइजॉल में एयरफोर्स की बमबारी के विवाद में उनका नाम उछला। सदन में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिजोरम में एयरफोर्स की बमबारी की कहानी बताई थी। बीजेपी आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने कांग्रेस नेता राजेश पायलट और सुरेश कलमाड़ी का नाम लेकर इस विवाद को गहरा दिया। अमित मालवीय ने ट्वीट कर दावा किया था मार्च 1966 में मिजोरम पर बमबारी करने वालों में राजेश पायलट भी शामिल थे। राजेश पायलट के बेटे कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने अमित मालवीय को करारा जवाब दिया। उन्होंने बीजेपी नेता के ट्वीट का जवाब देते हुए लिखा कि उनके पिता ने 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में बमबारी की थी, मिजोरम में नहीं। सचिन ने बताया कि अक्टूबर 1966 में उनके पिता को इंडियन एयरफोर्स में कमीशन मिला था, जबकि मिजोरम की घटना मार्च की थी। उन्होंने लिखा कि राजनेता के तौर पर राजेश पायलट ने मिजोरम में युद्ध विराम और शांति समझौते में अपनी भूमिका निभाई थी।राजनीति में आए तो बदल लिया नामराजेश पायलट कांग्रेस के उन नेताओं में शुमार थे, जो गांधी परिवार विशेषकर राजीव गांधी के करीबी माने जाते थे। 1979 में जैसलमेर में तैनाती के दौरान जब वह अपने दोस्त राजीव गांधी से मिले तो राजनीति में आने का फैसला किया। उन्होंने स्क्वॉडन लीडर के पोस्ट से इस्तीफा दे दिया और अपना नाम राजेश्वर प्रसाद सिंह विधूरी को भी बदल दिया। उन्होंने राजेश पायलट के नाम के साथ राजनीति में एंट्री की। एयरफोर्स में उनका कैरियर 13 साल का रहा। 1966 में कमीशन मिलने के बाद राजेश पायलट जनरल ड्यूटी (पायलट) बने। पांच साल बाद फ्लाइट लेफ्टिनेंट बने और 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध में शामिल हुए। राजेश पायलट ने डी हैविलैंड कनाडा डीएचसी-4 फाइटर प्लेन से पाकिस्तान में बमबारी की थी। 1977 में उन्हें फिर प्रमोट किया गया और वह स्क्वॉड्रन लीडर बने।चंद्रास्वामी के खिलाफ जांच बैठाकर मचा दी थी खलबलीराजीव गांधी की सलाह पर राजेश पायलट ने 1980 में पहला चुनाव भरतपुर से लड़ा। तब उन्होंने भरतपुर की पूर्व महारानी को हरा दिया। इस जीत के साथ ही राजेश पायलट गुज्जर नेता के तौर पर स्थापित हो गए। 1984 में पायलट दौसा से चुनाव में उतरे और फिर हमेशा इस सीट से ही चुनाव लड़ते रहे। वह नरसिंह राव की सरकार में संचार मंत्री और आंतरिक सुरक्षा के मंत्री भी रहे। चंद्रास्वामी के खिलाफ जांच का आदेश देकर उन्होंने राजनीति में खलबली मचा दी थी। राव सरकार के दौरान चंद्रास्वामी का जलवा था। बड़े-बड़े नेता उसके सामने सिर झुकाते थे। माना जाता है कि खुद नरसिंह राव से करीबी होने के कारण चंद्रास्वामी का दखल सरकार में भी था। बाद में इस जांच के कारण ही चंद्रास्वामी की गिरफ्तारी भी हुई।सीताराम केसरी और सोनिया गांधी को भी दी थी चुनौती1996 में नरसिंह राव के अध्यक्ष पद के हटने के बाद कांग्रेस में घमासान मचा था। गांधी परिवार का हस्तक्षेप कम था और चुनाव में हार के बाद पार्टी गुटों में बंटी थी। 1997 में सीताराम केसरी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद पर दावा ठोंक दिया। उन्हें राजेश पायलट ने चुनौती दी। हालांकि तब पायलट सफल नहीं हो पाए। इसके बाद भी उन्होंने केसरी के खिलाफ मोर्चा खोलकर रखा। जब सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनीं तब भी पायलट अपनी बेबाक राय देने के लिए चर्चा में रहे। शरद पवार और पीए संगमा के पार्टी छोड़ने के बाद कांग्रेस नेतृत्व से उनकी दूरियां बढ़ती गई। 2000 में जितेंद्र प्रसाद ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सोनिया गांधी के खिलाफ नामांकन किया। राजेश पायलट ने जितेंद्र प्रसाद का साथ देकर अपना तेवर दिखा दिया। मगर राजनीतिक तनातनी के बीच 11 जून 2000 को अनहोनी हुई। सड़क हादसे में राजेश पायलट की मौत हो गई।