जयंत पर सस्पेंसराज्यसभा में दिल्ली ऑर्डिनेंस बिल पर हुई वोटिंग के दौरान RLD चीफ जयंत चौधरी मौजूद नहीं थे। उनके अलावा निर्दलीय सांसद कपिल सिब्बल भी गैरहाजिर रहे। हालांकि अगर वे दोनों होते, तब भी नतीजे पर कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन अगले दिन संसद के अंदर इस पर कई तरह की चर्चाएं हुईं। विपक्ष के ही एक सीनियर सांसद ने हल्के अंदाज में कहा कि इस बारे में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से भी पूछा जाना चाहिए, क्योंकि दोनों सांसद उनके समर्थन से ही जीतकर राज्यसभा में आए हैं। संयोगवश उनके विधायकों ने लखनऊ में सीएम योगी आदित्यनाथ से भी मुलाकात की। खैर, बाद में एक सीनियर विपक्षी सांसद ने कहा कि पूरे दिन जयंत उनके संपर्क में थे। उनके घर में उनकी पत्नी बीमार थीं। लेकिन जयंत घर से दूसरे विपक्षी दलों से संपर्क में थे।जहां तक कपिल सिब्बल की बात है तो वह उस दिन DMK सुप्रीमो और तमिलनाडु के सीएम स्टालिन से जुड़े एक केस में हाईकोर्ट में उनकी ओर से पैरवी करने गए थे। इस बारे में भी विपक्षी नेताओं को जानकारी पहले से थी। कुल मिलाकर विपक्षी सांसदों, खासकर इंडिया गठबंधन के नेता वोटिंग के बाद संतुष्ट नजर आए। उनके नेताओं ने कहा कि नंबर कभी उनके पक्ष में नहीं थे, लेकिन उन्हें जितने वोटों की उम्मीद थी, वे सारे मिले और यह एक संतोषप्रद बात रही।ट्विटर से आगेइन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी NDA के सांसदों से बारी-बारी मिल रहे हैं। इन मुलाकातों में वह सबको 2024 आम चुनाव के लिए जीत का ‘मंत्र’ दे रहे हैं और यह भी बता रहे हैं कि जनता के बीच खुद को किस तरह और किस मुद्दे पर पेश करें। इस दौरान वह सांसदों से उनके क्षेत्र के बारे में फीडबैक भी ले रहे हैं। ऐसी ही एक मीटिंग में पीएम मोदी ने सांसदों से कहा कि संवाद के लिए अब वे सिर्फ ट्विटर पर ही आश्रित न रहें। उनके सामने एक नेता थे, जो ट्विटर का ही अधिक इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने नेताओं को ट्विटर से आगे बढ़ने की हिदायत दी।PM ने कहा कि एक पूरी पीढ़ी अब यूट्यूब और इंस्टाग्राम जैसे प्लैटफॉर्म पर अधिक संवाद कर रही है। उन्होंने नेताओं को समय के हिसाब से जरूरतों को समझने की हिदायत दी। पीएम मोदी ने खास तौर पर नई पीढ़ी से कनेक्ट करने के लिए इंस्टाग्राम की मिसाल दी। उनका कहना था कि नई उमर के लोग अब इंस्टा पर ज्यादा सक्रिय रहते हैं। पीएम मोदी हमेशा सोशल मीडिया के माध्यम से संवाद को मजबूत करने की वकालत करते रहे हैं।बढ़ता कुनबा, बढ़ती बेचैनीमहाराष्ट्र में NDA का कुनबा जितनी तेजी से बढ़ता जा रहा है, उसके सदस्यों के बीच बेचैनी भी उतनी ही तेजी से बढ़ रही है। NCP से अजित पवार गुट के BJP के साथ आने के बाद अब एकनाथ शिंदे गुट पूरी तरह सतर्क है और अपने सियासी स्पेस से किसी तरह का समझौता करने के मूड में नहीं है। मुख्यमंत्री शिंदे की पार्टी 2024 आम चुनाव के लिए सीट समझौते पर चीजें जल्द से जल्द साफ कर लेना चाहती है। इसी पार्टी के एक सीनियर नेता ने बताया कि उनके साथ 13 सांसद हैं, तो उनकी गिनती कम से कम यहां से तो शुरू ही होती है। इसके बाद वह उन सीटों पर भी दावा करेंगे, जहां 2019 में शिवसेना लड़ी थी।अजित पवार गुट भी अपने लिए सीटों की पहचान कर चुका है। इस मामले में किसी तरह का समझौता करने के मूड में वह भी नहीं दिख रहा है। दूसरी ओर BJP ने साफ संकेत दे दिया है कि 2019 में वह राज्य की 48 सीटों में से 25 सीटों पर लड़ी थी। वह भी इस मामले में कोई रियायत देने को शायद ही तैयार हो। अब देखने वाली बात होगी कि तेजी से बढ़ते इस कुनबे में सबकी इच्छाएं पूरी हो पाती हैं या फिर असंतुष्ट कोई और रास्ता अख्तियार करते हैं।दूर हुई दुविधादिल्ली ऑर्डिनेंस से जुड़े बिल पर हुई वोटिंग के दौरान राज्यसभा में डेप्युटी स्पीकर हरिवंश के सामने दुविधा की स्थिति पैदा हो गई थी। वह JDU से सांसद हैं। उनकी पार्टी ने इस बिल के खिलाफ वोट डालने के लिए व्हिप जारी किया था। वहीं दूसरी ओर BJP से उनकी नजदीकी भी जगजाहिर है। अपनी पार्टी के सांसद की BJP से इस तरह की बढ़ती नजदीकियों को लेकर JDU के अंदर बीच-बीच में कई तरह के सवाल भी उठते रहे हैं।दरअसल, JDU के अंदर एक वर्ग इस बात का पक्षधर है कि जब पार्टी BJP से अलग हो चुकी है तो हरिवंश को भी डेप्युटी स्पीकर का पद छोड़ देना चाहिए। लेकिन पार्टी के अंदर उनका यह कहकर बचाव किया गया कि ऐसी कोई परंपरा तो है नहीं और विपक्ष में रहते हुए भी डेप्युटी स्पीकर की जिम्मेदारी संभाली जा सकती है। इधर, हरिवंश पशोपेश में पड़े थे कि वह इस व्हिप का क्या करें। अचानक कुछ ऐसा हो गया, जिससे उनकी दुविधा दूर हो गई। हुआ यूं कि जैसे ही दिल्ली ऑर्डिनेंस बिल पास कराने के लिए वोटिंग की बारी आई, सभापति जगदीप धनकड़ अपनी सीट से उठकर चले गए और सदन चलाने की जिम्मेदारी डेप्युटी स्पीकर हरिवंश पर आ गई। इससे वह वोटिंग प्रक्रिया में भाग लेने की दुविधा से बच गए। वैसे, हरिवंश की पिछले दिनों बिहार के सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात भी हुई थी। इसके बाद कई तरह की सियासी चर्चाएं भी चलीं, लेकिन उससे आगे कुछ नहीं हुआ।