राहुल गांधी सजा पर रोक का विपक्षी एकता और लोकसभा चुनाव पर असर

नई दिल्ली : राहुल गांधी को मोदी सरनेम वाले आपराधिक मानहानि केस में मिली दो साल की सजा पर सुप्रीम कोर्ट से लगी रोक के बाद, विपक्षी राजनीति में संभावनाओं के कई द्वार खुल गए हैं। राहुल ने जान-बूझकर, बड़ी चालाकी से बेंगलुरु की विपक्षी एकता बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे समेत अन्य विपक्षी नेताओं को सामने रखा और खुद पीछे रहे। लेकिन वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी का कहना है कि अब जब राहुल की सांसदी बहाल हो जाएगी तब उनका विपक्षी एकता अभियान के केंद्र में आने की संभावना पैदा हो गई है। उन्होंने अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक लेख में कहा कि राहुल गांधी को जब 2 साल जेल की सजा सुनाई गई तो बिना देर उनकी संसद सदस्यता समाप्त कर दी गई। अब सजा पर रोक लगने के बाद उनकी सदस्यता अगर उसी तेजी से बहाल नहीं की गई तो जनता के बीच राहुल गांधी के प्रति सहानुभूति बढ़ सकती है। बीजेपी निश्चित रूप से इस पर मंथन कर रही होगी।राहुल पर ऐक्शन से विपक्ष में मचा था हड़कंपनीरजा चौधरी लिखती हैं, ‘विरोधियों के खिलाफ ईडी और सीबीआई के इस्तेमाल से विपक्षी दलों को एकजुट होने की जरूरत महसूस हो रही थी कि राहुल गांधी को अयोग्य ठहरा दिए जाने के बाद उनमें हड़कंप मच गया। उन्होंने इसे बड़े खतरे की घंटी की तरह लिया। उन्हें लगा कि आज राहुल गांधी नप गए तो कल किसी और की भी बारी आ सकती है।’ वो कहती हैं कि अपने नेताओं के खिलाफ ईडी-सीबीआई के इस्तेमाल से विपक्षी दल जनता से सहानुभूति बटोरने में नाकामयाब रहे थे, लेकिन जब राहुल गांधी पर कार्रवाई हुई तो बहुत से लोगों को लगा कि राहुल गांधी को सरकार की कड़ी आलोचना करने की सजा मिली है।मोदी सरनेम विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राहुल ही नहीं, कांग्रेस की लॉटरी लगी हैराहुल को राहत, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणीसुप्रीम कोर्ट ने भी सूरत ट्रायल कोर्ट और गुजरात हाई कोर्ट को यह कहकर फटकार लगाई है कि दोनों ने अपने-अपने आदेश में यह नहीं बताया कि आखिर राहुल गांधी को मानहानि केस में दो साल की अधिकतम सजा ही क्यों दी गई। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी के बयान को भी गलत माना और कहा कि एक पब्लिक फीगर होने के नाते उन्हें ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए। इधर, आम जनता का एक हिस्सा राहुल गांधी के उस बयान को ‘भाषा का लफड़ा’ के तौर पर देखते हैं जिसमें उन्हें सूरत की अदालत ने दो साल की सजा सुनाई। मसलन, राहुल गांधी ने मई महीने में अमेरिका की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री को ‘नमूना’ कहा था। इन्हीं बयानों को जोड़कर सुप्रीम कोर्ट में राहुल की याचिका के विरोध में दलीलें दे रहे वकील महेश जेठमलानी ने कहा भी कि राहुल गांधी आदतन अपराधी हैं, जो बार-बार गुनाह करते हैं।सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को राहत के साथ कड़वा डोज भी दिया, पढ़िए 3 लाइन की नसीहत में क्या कहालोकसभा चुनाव में फिर राहुल बनाम मोदी?बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सूरत की जिला अदालत में 21 अगस्त से जब मानहानि केस की सुनवाई फिर शुरू होगी तब राहुल गांधी की छवि बदल चुकी होगी। पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने निश्चित रूप से राहुल गांधी का कद बढ़ा दिया है, लेकिन क्या यह विपक्षी एकजुटता के लिए सही है? उनका कहना है कि यह विपक्ष के लिए दोधारी तलवार साबित हो सकता है। राहुल की अयोग्यता खत्म होने का मतलब है कि वो अगले वर्ष होने वाला लोकसभा चुनाव लड़ेंगे और तब यह चुनाव भी ‘राहुल बनाम मोदी’ की लड़ाई का हो जाएगा। पिछले दो बार के लोकसभा चुनाव में यही हुआ और हर बार फैसला बीजेपी के पक्ष में जाता रहा।चालू सत्र में संसद पहुंच जाएंगे राहुल गांधी या फंसेगा कोई पेच? जानिए सुपीम कोर्ट के फैसले पर क्या बोले एक्सपर्टकांग्रेसी खुश, गठबंधन साथियों में उहापोह!यही कारण है कि राहुल को मिली राहत से कांग्रेसी खेमा बहुत खुश है लेकिन अन्य विपक्षी दलों में असुरक्षा का बोध जगने लगा है। जब विपक्षी दलों ने एकजुट होने का प्रयास शुरू किया तो राहुल गांधी ने खुद को बैक सीट पर कर लिया। इससे मल्लिकार्जुन खरगे, नीतीश कुमार समेत अन्य विपक्षी चेहरों को आगे आने का मौका मिला और एकजुटता की कवायद को शक-सुबहे की नजर से देख रहे विपक्षी दलों में संदेश गया कि कांग्रेस पार्टी इस बार त्याग करने के मूड में है। यह कांग्रेस की तरफ से बड़ा संकेत था क्योंकि विपक्षी दलों में कई ने खुलकर कहा था कि कांग्रेस को विपक्षी एकता बनानी है तो उसे बड़े भाई वाले की प्रवृत्ति से बाज आना होगा।मोदी सरनेम मानहानि केस में राहुल को सुप्रीम कोर्ट से राहत दिलाने वाले वकील कौन हैं? जानिए उनके बारे में सबकुछक्या अब बैक सीट से फ्रंटफुट पर आएंगे राहुल?लेकिन सवाल है कि क्या राहुल गांधी अपनी मां सोनिया गांधी की भूमिका में आने को तैयार हैं? क्या वो खुद को कांग्रेस पार्टी में जान फूंकने और चुनाव मैदान में विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A के सहयोगी दलों का साथ देने तक सीमित रखेंगे? क्या वो 2024 लोकसभा चुनाव में खुद को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार प्रॉजेक्ट करने से बचेंगे? वर्ष 2004 में सोनिया गांधी ने भाजपा सरकार को सत्ता से बेदखल करने के बाद राहुल गांधी के विरोध के कारण प्रधानमंत्री का पद लेने से इनकार कर दिया था। इस त्याग ने सोनिया गांधी की गठबंधन दलों के बीच पैठ बढ़ा दी थी।राहुल गांधी आम जनता के बीच जाने के कार्यक्रमों के साथ निखर रहे हैं। भारत जोड़ो यात्रा से लेकर दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स, आजादपुर मंडी के आढ़तियों, करोल बाग के बाइक मैकेनिकों और सोनीपत के किसानों तक, राहुल गांधी ने आम जनता से संवाद की कोशिशें तेज की हैं। उनके लिए यही ठीक है क्योंकि वो पार्टी संगठन की रणनीतियों में फिट नहीं बैठते हैं। राहुल के बहुत से सहयोगियों ने उनपर आरोप लगाया है कि वो आसानी से मिलते-जुलते नहीं हैं। इसे राहुल गांधी की अकड़ के रूप में देखा गया।राहुल गांधी की सजा पर सुप्रीम रोक से किसे हुआ फायदा, किसे नुकसान? सोशल मीडिया पर लगी विचारों की झड़ीबीजेपी की रणनीति पर रहेगी नजरराहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत का विपक्ष को कुछ वक्त तक निश्चित रूप से फायदा मिलता दिखेगा। लेकिन नजरें इस बात पर भी रहेंगी कि सितंबर महीने में जी-20 समिट खत्म होने के बाद बीजेपी किस रणनीति पर आगे बढ़ती है। तब यह भी पता चलेगा कि राहुल गांधी पर कड़ी कार्रवाई, आम जनता को चुभने वाली महंगाई, महिला पहलवानों के यौन शोषण, मणिपुर हिंसा आदि का मुद्दा जोर पकड़ पाएगा या नहीं। राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाल होने से उनके और उनकी पार्टी कांग्रेस को खुशखबरी तो जरूर मिली है लेकिन चुनावों में विरोधी बीजेपी को भी मदद मिल सकती है। बीजेपी अभी राहुल गांधी के विक्टिमहुड कार्ड से बैकफुट पर दिख रही है, लेकिन जैसे ही यह मामला ठंडा पड़ेगा, वो राहुल के चेहरे को ही आगे रखकर चुनावी बिसात बिछाने से नहीं चूकेगी।