शिमला को लगी अपने ही लोगों की नजर, विकृत विकास से विनाश का सामना कर रहा है धरती का एक और स्वर्ग – why shimla is on the verge of destruction know the all the cause of natural calamity like landslide

नई दिल्ली: शिमला। हिमाचल प्रदेश की राजधानी। धरती पर स्वर्ग के गुच्छों का एक शहर। वो शिमला आज अस्तित्व के संकट का सामना कर रहा है। यह पहाड़ी शहर जो हम पर हुकूमत करने वाले अंग्रेज बाबुओं के लिए लोकप्रिय ग्रीष्मकालीन रिसॉर्ट हुआ करता था, अब अनियंत्रित निर्माण, अपर्याप्त जल निकासी व्यवस्था और बेपनाह बारिश के कारण डूब रहा है। समस्या दशकों से बनी हुई है। 2000 के दशक की शुरुआत में दरारें दिखाई देने लगीं। वह विशाल इलाका संकट में है जो क्राइस्ट चर्च और स्टेट लाइब्रेरी जैसे स्थलों का घर है। ब्रिटिश युगीन 10 लाख गैलन पानी की टंकी पर बनाया गया रिज जर्जर हो गया है जिसके असर से शिमला पर बढ़ते दबाव का संकेत मिल रहा है। 2017 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) ने शिमला के मुख्य और हरित क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियों पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी थी। हालांकि, राज्य सरकार ने प्रतिबंध को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उच्चतम न्यायालय ने मई 2023 में कुछ को छोड़कर सारे प्रतिबंध हटा दिए।शिमला में उड़ रहीं नियमों की धज्जियांप्रतिबंधों के बावजूद शिमला में निर्माण बेधड़क जारी है। पिछले कुछ वर्षों में शहर में कई ऊंची इमारतें बनी हैं, जिनमें से कई बिल्डिंग बाइलॉज की धज्जियां उड़ा रही हैं। अनियमित निर्माण शिमला के पर्यावरण पर भारी पड़ रहा है। पहाड़ों और जंगलों की कटाई की जा रही है और प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों (Natural Drainage System) को तहस-नहस किया जा रहा है। यह शहर को भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अधिक संवेदनशील बना रहा है। शिमला में हालिया भूस्खलनों की एक श्रृंखला चेतावनी मात्र है। यह शहर इसी तरह नियमों की धज्जियां उड़ाकर नहीं बढ़ सकता। राज्य सरकार को शिमला के पर्यावरण और विरासत की रक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।हाल ही में शिमला में हुए भूस्खलनों से व्यापक तबाही और जानमाल का नुकसान हुआ है। सरकार ने बारिश को इसका कारण बताया है, लेकिन कई स्थानीय लोग मानते हैं कि धड़ाधड़ हो रहे निर्माण ने इस शहर को भूस्खलन के लिए और अधिक संवेदनशील बना दिया है। एक बड़ी समस्या यह है कि शिमला का नगर निकाय तब तक जल निकासी का कनेक्शन नहीं देता है जब तक कि कोई संरचना नियमित नहीं हो जाती है। इसका मतलब है कि लोग अक्सर पहाड़ों पर गंदा पानी डालते हैं, जिससे भूस्खलन को निमंत्रण मिलता हैं। इसके अलावा, स्मार्ट सिटी परियोजना में हर कोने पर खाई खोदने और भारी लोहे के पुल और सीढ़ियां खड़े करने से पहाड़ों पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ रहा है।शिमला का दर्द: 300 मौतें,10 हजार घरों में दरार, पहाड़ों की रानी को बचाएगा कौन?शहर को बचाना है तो तुरंत उठाने होंगे कदमहिमाचल प्रदेश स्थित पर्यावरण अनुसंधान समूह हिमधारा की मानशी अशर ने अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि हालिया विनाश एक ऐसी आपदा थी जिसे हमने खुद ही बुलावा भेजा था। उन्होंने कहा कि अधिकारियों की नाक के नीचे भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में बहुमंजिला इमारतें बनाई गई हैं। पूर्व उपमहापौर टिकेंद्र सिंह पंवार का कहना है कि हाई कोर्ट और नगर नियोजन विभाग के निदेशालय को आंशिक रूप से शिमला से बाहर स्थानांतरित किया जाना चाहिए क्योंकि वहां रोज लोगों की भारी भीड़ जुटती है। उन्होंने कहा कि इससे शहर पर जनसंख्या दबाव को कम करने में मदद मिलेगी।वहीं, पर्यावरण कार्यकर्ता डिंपल ओबरॉय वहाली का कहना है कि शिमला विकास योजना (SDP) के पर्यावरण संरक्षण के प्रावधान केवल दिखावा हैं। उन्होंने कहा कि एसडीपी हरित क्षेत्रों में निर्माण की अनुमति देता है, भले ही यह कहता है कि वह हरे क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई की अनुमति नहीं देगा। उन्होंने यह भी कहा कि एसडीपी का प्रस्ताव हरित क्षेत्रों में निर्माण के लिए एक ही आकार के क्षेत्र में पेड़ लगाने का है, जो व्यावहारिक नहीं है।⇒ हाल के वर्षों में शिमला की आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे शहर के संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है।⇒ आसपास के क्षेत्र में बांधों और सीमेंट संयंत्रों के निर्माण ने भी इस समस्या में योगदान दिया है।⇒ सरकार ने स्थिति से निपटने के लिए कई उपाय की घोषणा की है, लेकिन यह देखना होगा कि क्या ये प्रभावी होंगे।Shimla Landslide: शिमला में घर छोड़ने पर मजबूर कर रहा तबाही का मंजर, पेड़ों और पहाड़‍ियों से डरने लगे हैं लोगमानशी अशर ने चेतावनी दी है कि अगर हम जल्द ही बड़े और कड़े कदम नहीं उठाते हैं तो अगली बार नुकसान और भी ज्यादा होगा। उन्होंने कहा कि शिमला पर बहुत शोध और बातचीत हो चुकी है, और अब कुछ करने का समय है। कुल मिलाकर, शिमला में हाल ही में हुआ भयानक भूस्खलन एक चेतावनी है। शहर को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए बेहद प्रभावी कदम उठाने होंगे। इनमें बिल्डिंग बॉइलॉज को लागू करना, हरित क्षेत्रों में निर्माण को नियंत्रित करना और अधिक पेड़ लगाना शामिल हैं।शिमला को बचाने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार को तुरंत उठाने होंगे ये कदम⇒ बिल्डिंग बाइलॉज और क्षेत्रीय नियमों को सख्ती से लागू करे।⇒ हरित क्षेत्रों में निर्माण पर रोक लगाए।⇒ टिकाऊ विकास विकल्पों को बढ़ावा दे, जैसे कि ग्रीन बिल्डिंग प्रैक्टिस।⇒ शिमला के ड्रैनेज सिस्टम में सुधार के लिए तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करे।⇒ अधिक पेड़ लगाए और प्राकृतिक वनस्पति को बहाल करे।घरों में दरारें.. धंसी हुईं सड़कें.. आखिर हिमाचल की खूबसूरती को ये किसकी नजर लगी?दुनिया ने देखा वो भयावह मंजरशिमला एक सुंदर और ऐतिहासिक शहर है जिसमें आगंतुकों के लिए बहुत कुछ है। भविष्य की पीढ़ियों के लिए इस अनूठी जगह की रक्षा करना महत्वपूर्ण है। ध्यान रहे कि हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में 24 अगस्त की सुबह भारी बारिश के कारण हुए भूस्खलन से कई मंजिला इमारतें ढह गईं। राज्य की राजधानी शिमला से लगभग 200 किलोमीटर दूर 14 और 17 अगस्त के बीच भयावह घटनाएं हुईं। इस दौरान शिमला से 27 लोगों की मौत की सूचना मिली, जिनमें से एक परिवार के सात लोग शिव बावड़ी मंदिर में बादल फटने की घटना में मारे गए थे। इस दौरान नौ इमारतें और कालका-शिमला रेलवे ट्रैक का एक हिस्सा भी ढह गया था।