संजीव सान्‍याल का इंटरव्‍यू: अखाड़ों ने दिए देश को कई क्रांतिकारी, आजादी में बंगाली टोले का अहम योगदान – pm economic advisor sanjeev sanyal interview on history of indian freedom revolution

इतिहास में बात भारत की आजादी के आंदोलन की हो या वैचारिक-सांस्कृतिक आधुनिकीकरण की, वाराणसी के बंगाली टोले और इससे निकले लोगों के बगैर अधूरी ही है। संजीव सान्याल प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार तो हैं, इतिहास पर भी मजबूत पकड़ रखते हैं और बड़ी बात यह है कि खुद भी बंगाली टोले से निकले हैं। आजादी के आंदोलन के दौरान बंगाली टोले के योगदान पर उनसे राहुल पाण्डेय ने बात की। पेश हैं अहम अंश:आप श्यामाचरण लाहिड़ी के घर से हैं, जिन्होंने क्रिया योग का प्रचार-प्रसार किया। उसी घर से शचींद्रनाथ सान्याल भी निकले, जिन्होंने क्रांतिकारी आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई। एक ही परिवार और दो विपरीत धाराएं, इसे कैसे समझें?याद रखिए कि 19वीं सदी की सांस्कृतिक और बौद्धिक परिस्थितियां क्या थीं। अंग्रेज हमारे देश पर राज कर रहे थे। 1857 में बहुत बड़ा विद्रोह हुआ, जिसे पूरी तरह कुचल दिया गया। ऐसे में भारतीयों को लगा कि अब हम लोगों को आधुनिकीकरण करने की जरूरत है। लेकिन जो पुरानी प्रथाएं हैं, सभ्यता है, उसे हम छोड़ भी नहीं सकते। हम चाहते हैं कि इसी को आधुनिक करें। इस संदर्भ में श्यामाचरण लाहिड़ी को देखेंगे तो पाएंगे कि वह योग के आधुनिकीकरण की कोशिश कर रहे थे। योग हजारों साल पुराना है, तब यह गुरु-शिष्य परंपरा के आधार पर सीमित था। इसमें इनोवेशन यह हुआ कि श्यामाचरण लाहिड़ी ने इसे सबको सिखाना शुरू किया। ठीक उसी समय सान्याल-लाहिड़ी परिवार, जो एक ही परिवार है, उसने वाराणसी के बंगाली टोला में एक इंग्लिश मीडियम स्कूल बनाया, जिसका नाम था बंगाली टोला इंटर कॉलेज। यह आज भी चल रहा है।एक तरफ क्रिया योग का आधुनिकीकरण, दूसरी ओर इंग्लिश स्कूल। फिर से दो विपरीत धाराएं!इसलिए कि उन्हें दिख रहा था कि अंग्रेजों के पास दुनिया भर का विज्ञान है। हमें उनकी भाषा को सीखने की जरूरत थी, ताकि हम लोग उनसे आइडिया निकालें। तब इंग्लिश सीखने के लिए सबको ईसाई मिशनरी के पास जाना पड़ता था। उन्होंने तय किया कि हम अंग्रेजी सीखेंगे और उनकी चीजों को समझेंगे और इस आधार पर आधुनिकीकरण कर पाएंगे। उसी समय अंग्रेज संस्कृत, पाली सीख रहे थे, हमारी किताबों को ट्रांसलेट कर रहे थे। वे हमारे ज्ञान को निगल रहे थे तो हमारा आइडिया था कि हम लोग उसी चीज को उलटी तरह से करें। क्रिया-प्रतिक्रिया का यह सिलसिला चल रहा था। इसी आधुनिकीकरण से सशस्त्र क्रांतिकारी भी निकले। क्यों? क्योंकि अंग्रेजों ने हमें बार-बार हराया था। उन्होंने हमें दिखाया कि हम लोग पुराने सिस्टम से अपने आप को आजाद नहीं कर सकते। इसलिए दोनों चीजों को उस परिस्थिति के संदर्भ में समझना पड़ेगा। इसीलिए बनारस की उसी गली में क्रिया योग का आधुनिकीकरण हो रहा था तो सशस्त्र क्रांतिकारी का काम भी।सशस्त्र क्रांतिकारी आंदोलन की जो धारा बंगाली टोले से निकली है, उसके बारे में बताइए।काकोरी कांड की योजना हमारे ही यहां बनी। इनमें भी शचींद्रनाथ सान्याल थे, जो बाद में जेल गए। उनके भाई रवींद्रनाथ सान्याल भी थे। दरअसल, 18वीं सदी में राजा चेतसिंह के समय सान्याल परिवार वाराणसी आया। रानी भवानी ने संकल्प किया और वहां एक टोल खुला। टोल यानी वैदिक स्कूल। इसलिए उसका नाम पड़ा बंगाली टोला। उस समय वाराणसी को मुगलों ने पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। 18वीं सदी में मराठा और बाकी हिंदू राजाओं ने इसका पुनर्निर्माण किया। आज वाराणसी के ज्यादातर घाट उसी समय के हैं। अहिल्याबाई होल्कर, रंजीत सिंह सभी ने इसमें योगदान दिया। बंगालियों में रानी भवानी और बाद में रानी रासमणि ने भी बड़ा योगदान किया। इसी संदर्भ में सान्याल परिवार भी वाराणसी में बसा। वैदिक स्कूल के साथ एक अखाड़ा भी बनाया। अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का आइडिया वहीं से निकला। याद रखिए कि इसके पहले बंगाल में सान्याल परिवार अफगान, तुर्क, मुगल विदेशी आक्रमणकारियों के साथ भी युद्ध करता आया है। यह एक परंपरा रही है कि एक तरफ ज्ञान-बौद्धिकता, दूसरी तरफ विद्रोह।आपने अखाड़े का जिक्र किया। क्रांतिकारी आंदोलन में अखाड़ों का काफी जिक्र मिलता है। क्या था ये सिस्टम?पहले ये लोग क्रिया योग इत्यादि का आधुनिकीकरण कर रहे थे और बाद में उन्होंने क्रांतिकारी आंदोलन में योगदान दिया। यह कैसे हुआ? इन लोगों ने पूरे देश में अखाड़े बनाए। आज भी आप वृंदावन जाएंगे, तो वहां एक कात्यायनी मंदिर है। वह बेसिकली एक अखाड़ा है। उस इलाके के जो सशस्त्र क्रांतिकारी थे, उनका वह अड्डा था। आज भी वह मंदिर है, हालांकि अब वहां अखाड़ा नहीं चलता। भारत में अखाड़ों की संस्कृति रही है। इन्हीं अखाड़ों के माध्यम से फिर अनुशीलन समिति बनी।क्रांतिकारियों के संगठन का नाम अनुशीलन समिति कैसे? ऐसा अजीब नाम कहां से आया?अनुशीलन यानी ट्रेनिंग, अनुशासन। यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह अखाड़ों का नेटवर्क था। क्रांतिकारियों का नेटवर्क अखाड़ों का नेटवर्क था। समूचे नॉर्थ इंडिया और महाराष्ट्र में यह नेटवर्क था। इसलिए अखाड़ों के जाल के जरिए बार-बार विद्रोह हो रहे थे। यही परिवार 20वीं सदी के शुरू में अखाड़ों के आधार पर विद्रोह करते हैं और आजादी के बाद ये सेना में चले गए। जैसे श्यामल गोस्वामी, जिन्हें 1962 में महावीर चक्र मिला।कैसे पढ़ें इतिहास? आजकल बहुत से इतिहासकार कहते हैं कि लोगों को इतिहास पढ़ना नहीं आता। क्या शास्त्रीय तरीका है?सबसे जरूरी है कि आप जाकर देखिए कि तथ्य क्या हैं, सबूत क्या हैं। इतिहास की विभिन्न तरीके से व्याख्या की जाती है। इसका मतलब नहीं कि हरेक व्याख्या सच है। प्राइमरी एविडेंस देखना पड़ेगा, तथ्य देखने पड़ेंगे। दुख की बात यह है कि हमारी बहुत सी व्याख्याओं और सबूतों में कोई लिंक नहीं है।