देश के कई शहरों में अवारा कुत्ते आम लोगों के लिए खतरनाक बनते जा रहे हैं। आए दिन कुत्तों के हमला करने की खबरें सामने आती रहती हैं। हालांकि एक तबका ऐसा है जो आवारा कुत्तों के खिलाफ कार्रवाई का विरोध करता है। पुणे की एक सोसाइटी से जुड़े आवारा कुत्तों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को बहाल रखा है। यानी आवारा कुत्तों को उस इलाके से हटाने की सोसाइटी की कोशिशों को सुप्रीम कोर्ट से संरक्षण नहीं मिला। इसी साल 7 फरवरी को सात साल के एक बच्चे पर सोसाइटी में घूमने वाले एक कुत्ते ने अटैक कर दिया था, जिसके बाद इस मामले ने तूल पकड़ा। सोसाइटी ने उस इलाके में घूमने वाले 20 कुत्तों को पकड़ कर पिंजरे में डलवा दिया, जिसका कुछ डॉग लवर्स ने विरोध किया। मामला न सुलझने पर दोनों पक्ष कोर्ट पहुंचे। हाउसिंग सोसाइटियों में कुत्ते विवाद और टकराव का एक बड़ा कारण बनते जा रहे हैं। पिछले दिनों इंदौर में कुत्ते के मसले पर ही फायरिंग की घटना हो गई, जिसमें दो लोगों की जान चली गई। दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में इसी साल मार्च महीने में आवारा कुत्तों के हमले में 7 और 9 साल के दो बच्चों की जान चली गई। केरल के कन्नूर जिले में कुत्तों के हमलों की बेतहाशा बढ़ती घटनाओं से जुड़ा एक मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। इस मुद्दे की गंभीरता का अंदाजा इस बात से हो सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, भारत में हर साल रैबीज के चलते करीब 20,000 लोगों की जान जाती है। यह दुनिया में रैबीज से होने वाली कुल मौतों का एक तिहाई है।कुत्तों के हमले की बढ़ती घटनाओं के चलते जहां लोग असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ इन्हीं सोसाइटियों में रहने वालों का एक तबका ऐसा है जो घरों में पाले जाने वाले डॉगीज ही नहीं घरों से बाहर के आवारा कुत्तों के भी बचाव में खड़ा नजर आता है। इसमें कुछ गलत भी नहीं है। इसमें दो राय नहीं कि चाहे हाउसिंग सोसाइटी हों या सोसाइटी के बाहर गलियों मोहल्लों में रहने वाली आबादी, हर नागरिक की सुरक्षा का सवाल अहम है। कुत्तों या अन्य पशुओं से उनकी रक्षा हर हाल में सुनिश्चित की जानी चाहिए। लेकिन ऐसा करते हुए अन्य नागरिकों के अधिकारों और पहले से देश में लागू नियम-कानूनों की अनदेखी करने की छूट नहीं दी जा सकती। एक अन्य मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच भी मान्य कर चुकी है कि आवारा कुत्तों को भोजन का अधिकार है और नागरिकों को भी ये हक है कि वे अपने इलाके में पलने वाले आवारा कुत्तों को खाना खिलाएं। हां, इन्हें किस तरह भोजन मुहैया कराया जाए इस बारे में भी दिल्ली हाईकोर्ट की गाइडलाइन है। कुत्तों के साथ क्रूरता किए बगैर उन्हें केयर दिए जाने, उनका वैक्सिनेशन करने और उनके बर्थ कंट्रोल की व्यवस्था करने जैसे तमाम कदमों के प्रावधान पहले से स्थापित नियमों में हैं। जाहिर है, इस मामले में सावधानी के साथ ही संतुलित नजरिए की जरूरत है।एनबीटी डेस्क के बारे मेंNavbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म… पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐपलेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें