संपादकीय: राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता बहाल, संसद में बढ़ी विपक्ष की ताकत – rahul gandhi returns in lok sabha opposition now stronger in parliament ahead of no-confidence motion

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मानहानि मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद सोमवार को उनकी संसद सदस्यता भी बहाल कर दी गई। चूंकि संसद के मौजूदा मॉनसून सत्र के अब कुछ ही दिन बचे हुए हैं और मंगलवार से अविश्वास प्रस्ताव पर बहस शुरू होनी है, इसलिए कांग्रेस यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि सोमवार को ही राहुल गांधी की सदस्यता बहाल हो जाए। हालांकि लोकसभा सचिवालय की ओर से न तो देरी का कोई संकेत था और न ही देरी हुई फिर भी इसे कांग्रेस की आशंका कहिए कि उसने देरी के जरा से संकेत पर सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रखी थी। इससे यह भी अंदाजा होता है कि अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राहुल गांधी का संसद में होना और कांग्रेस की ओर से सरकार पर होने वाले हमले की अगुआई करना उसके लिए कितना अहम था। राहुल गांधी इस दौरान कैसी भूमिका निभाते हैं और उसका कितना प्रभाव सदन के अंदर और बाहर बनने वाले माहौल पर होता है यह देखने वाली बात होगी, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि सदस्यता बहाली से आम तौर पर विपक्ष और खास तौर पर कांग्रेस का मनोबल बढ़ा हुआ है।सत्तारूढ़ पक्ष इसकी काट के रूप में बार-बार दोहरा रहा है कि राहुल गांधी की सजा पर बस अस्थायी रोक लगी है, उन्हें निर्दोष नहीं ठहराया गया है। यह सवाल भी बना हुआ है कि विपक्षी खेमे में दिख रहे इस उत्साह को कितना टिकाऊ माना जाना चाहिए। बयान देना या संसद में सब मिलकर सरकार पर हमला बोलना आसान है, विपक्षी एकता का कांटा तो फंसना है सीट बंटवारे पर। यह बात सभी दलों को पता है। ऐसे में राहुल गांधी का रुतबा और कांग्रेस का उत्साह बढ़ना दूसरे दलों के मन में असुरक्षा बढ़ा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो कई कमजोर कड़ियों के छिटकने की शुरुआत हो सकती है।राहुल फिर बने सांसद, कांग्रेस में जोरदार जश्न, लड्डू बांटने लगे खरगेसबसे संवेदनशील मसला कांग्रेस और आप का है, जिनमें साथ आने को लेकर भी दूसरी और तीसरी पांत के नेतृत्व में तीखा विरोध है। ऐसे में यह सवाल भी बना हुआ है कि दिल्ली सेवा बिल के राज्यसभा से पारित हो जाने और फिर अविश्वास प्रस्ताव के निपट जाने के बाद भी क्या आप कांग्रेस की अगुआई वाले गठबंधन में बनी रहेगी? इसी प्रकार NCP का एक धड़ा अलग होने के बाद से उसे लेकर जो धुंध बनी थी, शरद पवार के प्रधानमंत्री के साथ मंच शेयर करने से वह भी कुछ गहरी हुई है।मगर ध्यान रहे, राहुल गांधी की सदस्यता बहाली को सिर्फ नेगेटिव रूप में नहीं लिया जा सकता। इससे मिली बढ़त विपक्षी खेमे की एकता की डोर को और मजबूती भी दे सकती है। सब इस पर निर्भर करता है कि कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व यहां से आगे बढ़ते हुए कितनी सावधानी और कितनी कुशलता बरत पाता है।