भारत दौरे पर आए संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष साबा कोरोसी ने यहां जिस शिद्दत से सुरक्षा परिषद में सुधार का मुद्दा उठाया, वह गौर करने लायक है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अपने मौजूदा रूप में पंगु हो चुका है। हालांकि सुरक्षा परिषद में सुधार का मुद्दा कोई नया नहीं है। भारत सहित कई अन्य देश पिछले कई वर्षों से इसकी मांग करते आए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एकाधिक अवसरों पर अंतरराष्ट्रीय मंचों से इस बारे में आवाज उठा चुके हैं। कुछ ही दिनों पहले वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कहा था कि संयुक्त राष्ट्र 1945 में बनाया गया एक ‘फ्रोजेन मैकेनिज्म’ बनकर रह गया है। दिक्कत यह रही कि भारत की ओर से उठाई जा रही इस मांग को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता पाने की उसकी आकांक्षा से जोड़कर देखा जाता रहा है। नतीजा यह हुआ कि अलग-अलग मौकों पर विभिन्न देश संयुक्त राष्ट्र की स्थायी सदस्यता दिलाने में भारत को समर्थन का आश्वासन देते रहे, लेकिन वे इस मसले पर गंभीर नहीं हुए। इसीलिए अलग-अलग मंचों से इस मुद्दे के उठने के बावजूद संयुक्त राष्ट्र महासभा में कभी इस आशय का कोई प्रस्ताव पारित नहीं हुआ। मगर यूक्रेन युद्ध ने इस अंतरराष्ट्रीय संस्था की बढ़ती अप्रासंगिकता को एक झटके में उजागर कर दिया। खुद संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष इस बात की पुष्टि करते हुए कहते हैं कि पूरी दुनिया गवाह है, कैसे सुरक्षा परिषद के एक स्थायी सदस्य (रूस) ने अपने पड़ोसी देश पर आक्रमण किया, उसकी क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन किया और सुरक्षा परिषद कोई फैसला नहीं कर सकी। कारण रहा उस सदस्य की वीटो पावर। साफ है कि जो वीटो पावर सुरक्षा परिषद के पांचों सदस्यों को इस मकसद से दी गई थी कि यह संस्था ज्यादा कारगर हो और दुनिया को युद्ध से बचाए, वही अब इस संस्था के पैरों की बेड़ी साबित हो रही है। अब इसमें जरा भी शक नहीं रह गया है कि संयुक्त राष्ट्र के मंच पर और उसके कामकाज में दुनिया की मौजूदा भू-राजनीति की हकीकत नहीं झलकती। लेकिन बाधा अब भी सबसे बड़ी वही है, सदस्य राष्ट्रों में एकमत का अभाव। जानकारों के मुताबिक, अभी संयुक्त राष्ट्र महासभा के 193 सदस्य राष्ट्रों के बीच पांच नेगोशिएटिंग ग्रुप सक्रिय हैं और वे सब एक-दूसरे की काट बने हुए हैं। सुरक्षा परिषद के सदस्यों पर सुधार का अजेंडा आगे बढ़ाने का वास्तविक दबाव तभी बनेगा, जब महासभा की ओर से उन्हें प्रस्ताव भेजा जाएगा। चूंकि यही नहीं हो रहा तो बात आगे नहीं बढ़ रही। बहरहाल, भारत जैसे देश का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का दावा काफी मजबूत है। वह सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के साथ दुनिया की पांचवीं बड़ी इकॉनमी भी है। इसलिए उसे यह सदस्यता मिलनी चाहिए, लेकिन यह तभी हो पाएगा जब इसके लिए रिफॉर्म्स हों। इन सुधारों की बदौलत ही संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता बनी रहेगी।