संविधान सभा में भारत और इंडिया नाम पर क्या चर्चा हुई थी आंबेडकर का रोल जानिए

भारत ठीक या इंडियाअपने संशोधन के लिए एक नाम चुनने के लिए जब कहा गया तो कामत ने ‘भारत या अंग्रेजी भाषा में India, राज्यों का संघ होगा’ चुना। इसके बाद एक गंभीर बहस हुई जिसमें सेठ गोविंद दास, कमलापति त्रिपाठी, कल्लूर सुब्बा राव, राम सहाय और हर गोविंद पंत ने ‘भारत’ के लिए पूरे उत्साह के साथ बहस की। दास ने कहा कि इंडिया कोई प्राचीन शब्द नहीं है और वेदों में इसका जिक्र नहीं है। इंडिया का इस्तेमाल यूनानियों के भारत आने के बाद किया गया, जबकि भारत का जिक्र वेदों, उपनिषदों, ब्राह्मण ग्रंथों, महाभारत और पुराणों के साथ-साथ चीनी यात्री ह्वेनसांग की रचनाओं में भी मिलता है।दास ने सुझाव दिया, ‘भारत, जिसे इंडिया कहते हैं, विदेश में भी इस नाम से जाना जाता है।’ उन्होंने कहा कि यह नाम पिछड़ा हुआ नहीं है, बल्कि इंडिया के इतिहास और संस्कृति के लिए उपयुक्त है। उन्होंने कहा, ‘अगर हम इन मामलों के संबंध में सही निर्णय नहीं लेते हैं तो देश के लोग स्वशासन के महत्व को नहीं समझेंगे।’ कल्लूर सुब्बा राव ने कहा कि इंडिया नाम सिंधु या इंडस से आया है और हिंदुस्तान नाम पाकिस्तान के लिए ज्यादा उपयुक्त है क्योंकि वहां सिंधु नदी है। इंडिया को भारत के रूप में संदर्भित करते हुए उन्होंने सेठ गोविंद दास और अन्य हिंदी बोलने वालों से हिंदी भाषा का नाम शिक्षा की देवी ‘भारती’ पर रखने के लिए कहा।राम का धनुष और कृष्ण का चक्रराम सहाय ने भारत नाम का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि ग्वालियर, इंदौर और मालवा का यूनियन खुद को मध्य भारत कहता है और हमारे सभी धार्मिक ग्रंथों और सभी हिंदी साहित्य में इस देश को भारत कहा गया है। हमारे नेता भी अपने भाषणों में देश को भारत कहते हैं। तब कमलापति त्रिपाठी ने एक जोशीला भाषण देते हुए कहा कि ‘भारत, जो कि इंडिया है’ अधिक उचित और देश की भावनाओं और प्रतिष्ठा के अनुरूप हो सकता है। उन्होंने दावा किया कि अपनी एक हजार वर्षों की गुलामी के दौरान, देश ने अपनी आत्मा, इतिहास, प्रतिष्ठा और स्वरूप और नाम खो दिया था। उन्होंने कहा कि बापू के क्रांतिकारी आंदोलन ने राष्ट्र को अपने स्वरूप और खोई हुई आत्मा को पहचान दिलाई और यह कि उनकी तपस्या के कारण ही अपना नाम फिर से हासिल कर रहा।त्रिपाठी ने कहा कि केवल इस शब्द के उच्चारण ने सुसंस्कृत जीवन की एक तस्वीर तैयार करता है। सदियों की लंबी गुलामी के बावजूद, यह विश्वास बना रहा कि देवता स्वर्ग में इस देश के नाम को याद करते रहे हैं और भारत की पवित्र भूमि में जन्म लेने की प्रबल इच्छा रखते हैं। उन्होंने दावा किया, ‘हमें याद दिलाया जाता है कि एक तरफ यह संस्कृति भूमध्य सागर तक पहुंची और दूसरी तरफ इसने प्रशांत के तटों को छुआ।’ उन्होंने कहा कि यह ऋग्वेद और उपनिषदों में से एक, कृष्ण और बुद्ध-शंकराचार्य की शिक्षाओं या राम के धनुष और कृष्ण के चक्र की याद दिलाता है।सर, क्या यह जरूरी है…जैसा त्रिपाठी ने अतीत के बारे में कहा था, आंबेडकर ने पूछा, ‘क्या यह सब आवश्यक है, सर…? बहुत काम करना बाकी है’। जिस समय आंबेडकर जल्दी में थे, संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने हरगोविंद पंत के एक और हस्तक्षेप की अनुमति दी। पंत ने भारतवर्ष नाम का सुझाव दिया, जिसका इस्तेमाल हम संकल्प के समय अपने दैनिक धार्मिक रीति-रिवाज में करते रहे हैं। नहाते समय भी हम संस्कृत में कहते हैं, ‘जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्ते भारतदेशे…।’ इसका मतलब है कि मैं भारत खंड के आर्यवर्त में हूं।पंत ने कहा कि कालिदास ने दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र के राज्य को बताने के लिए भारत ही कहा था जबकि इंडिया एक ऐसा नाम है, जो विदेशियों द्वारा दिया गया जो इसकी संपत्ति से आकर्षित हुए थे। इससे चिपके रहने से केवल यह पता चलेगा कि हम इस अपमानजनक शब्द के लिए शर्मिंदा नहीं हैं जो विदेशी शासकों ने हम पर थोपा है। आखिर में संविधान सभा ने 38 हां और 51 ना के साथ हाथ उठाकर मतदान किया और कामत के संशोधन को खारिज कर दिया गया और मूल शब्द बने रहे।