नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि अगर कोई पत्नी बिना किसी वैध कारण के अपने पति के परिवार के सदस्यों से दूर रहने पर लगातार जोर देती है, तो इसे क्रूरता माना जाएगा। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की दो सदस्यीय पीठ ने एक तलाक मामले की सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की। उन्होंने पत्नी के भी पति से अलग होने की मंशा जाहिर करने के बाद इस शादी को खत्म करते हुए कहा कि महिला अपने अलग निवास रखने के इरादे को जस्टिफाइ नहीं कर पाई। हालांकि कोर्ट के बाहर हुए समझौते के तहत दोनों पक्ष अलग रहने पर सहमत हो गए थे। लेकिन बाद में महिला अपने मायके में रहने चली गई। कोर्ट ने कहा कि पत्नी का पति पक्ष के परिवारवालों से लगातार अलग रहने का दबाव बनाने का आग्रह सही नहीं था, जिसका कोई कारण भी नहीं था। इस तरह के मामले को क्रूरता की श्रेणी में रखा जा सकता है।कोर्ट ने 2016 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले नरेंद्र बनाम के मीणा का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि ‘भारत में एक हिंदू बेटे के लिए पत्नी के कहने पर शादी करने के बाद माता-पिता से अलग होना एक सामान्य प्रथा नहीं है। भारत में आम तौर पर लोग पश्चिमी विचार को स्वीकार नहीं करते हैं, जहां शादी करने या वयस्क होने पर बेटा परिवार से अलग हो जाता है। सामान्य परिस्थितियों में शादी के बाद पत्नी से पति के परिवार का हिस्सा होने की उम्मीद की जाती है। वह परिवार और पति का अभिन्न अंग बन जाती है और आम तौर पर बिना किसी उचित मजबूत कारण के उसे कभी भी इस बात पर जोर नहीं देना चाहिए कि उसके पति को परिवार से अलग हो जाना चाहिए और उसके साथ अलग रहना चाहिए।हाईकोर्ट पति की तलाक की याचिका को खारिज करने वाले पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रहा था। पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी ने उसके साथ क्रूरता की और उसे छोड़ दिया। दंपती ने नवंबर 2000 में शादी की थी और शादी से उनके दो बच्चे हुए। 2003 में, पत्नी ने पति का घर छोड़ दिया लेकिन कुछ समय बाद लौट आई। हालांकि, उसने जुलाई 2007 में फिर से पति का घर छोड़ दिया।पारिवारिक अदालत ने अपने आदेश में कहा कि इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं मिला कि पत्नी ने बिना किसी वैध कारण के अपने पति का साथ छोड़ दिया था। पारिवारिक अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पति अपनी पत्नी के साथ रिश्ते को खत्म करने के कारणों का हवाला नहीं दे पाए हैं। हालांकि, हाईकोर्ट ने पाया कि पत्नी का परिवार के अन्य सदस्यों से अलग रहने का आग्रह सनकी था, और इसमें कोई उचित कारण नहीं पाया गया। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि 2007 के बाद से, पत्नी ने अपनी वैवाहिक जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से नहीं निभाया था, और पति को वैवाहिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया था।जजों ने हाईकोर्ट के सामने पत्नी के बयान पर भी ध्यान दिया कि उसका अपने पति के साथ रहने का कोई इरादा नहीं था क्योंकि उसने तलाक देने पर कोई आपत्ति नहीं जताई।कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला के बयान से ऐसा लगता है कि वह अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती है और उसे तलाक से कोई आपत्ति भी नहीं है। इस तरह के हालात न केवल ये बताते हैं कि याचिकाकर्ता के खिलाफ क्रूरता की गई है बल्कि पत्नी का भी इरादा शादी के रिश्ते को बनाए रखने का नहीं है।