होंगे कामयाब – increasing cases of suicide in kota

राजस्थान के एजुकेशन हब माने जाने वाले कोटा में सुसाइड करने वाले बच्चों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। इस साल कोटा में सुसाइड करने वाले बच्चों की संख्या 23 हो गई है। तैयारी करने वाले बच्चों का ऐसा सुसाइड करना बेहद गंभीर मसला है। कोटा में रविवार को दो और छात्रों ने खुदकुशी कर ली। इसके साथ इस साल कोटा में आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या 23 हो गई है, जो बहुत ही गंभीर मसला है। कोटा ही नहीं, पूरे देश में खुदकुशी करने वाले छात्रों की संख्या बढ़ रही है। साल 2020 में 12500 से अधिक, तो 2021 में 13,000 छात्रों ने आत्महत्या की। ये आंकड़े नैशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के हैं। ऐसा नहीं है कि महामारी बनती इस समस्या के कारण हमें नहीं पता। सब जानते हैं कि किस तरह से पैरंट्स अपने सपने बच्चों पर थोपते हैं। उन्हें IIT, NIT या मेडिकल में ही बच्चों का सुनहरा भविष्य दिखता है, जिसे साकार करने के लिए कई अभिभावक कर्ज भी लेते हैं। मां-बाप के सपनों से दबा स्टूडेंट जब कोचिंग संस्थानों में पहुंचता है तो उस पर तैयारी और टेस्ट का प्रेशर डाल यह कहकर भी डराया जाता है कि JEE या NEET दुनिया की सबसे मुश्किल परीक्षाएं हैं। कोचिंग संस्थानों पर ऐसे आरोप भी लगते रहे हैं कि वे प्रशासन की ओर से बनाए गए नियमों पर पूरी तरह अमल नहीं करते। कोटा के संस्थानों पर भी ऐसे इल्जाम लगे हैं। दरअसल, बच्चों को मनोवैज्ञानिक दबाव से बाहर निकालने के लिए कोटा प्रशासन ने तकरीबन साल भर पहले एक गाइडलाइन जारी की थी, जिसे एक भी कोचिंग संस्थान ने पूरी तरह फॉलो नहीं किया है।पुणे स्थित कंसल्टेंसी फर्म इनफिनियम ग्लोबल रिसर्च का अनुमान है कि इस साल के आखिर तक कोचिंग इंडस्ट्री का कारोबार 58,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा होगा। यानी कोचिंग संस्थान चाहें तो बच्चों की मेंटल हेल्थ सुधारने के लिए पहल कर सकते हैं। वे ऐसे छात्रों की मॉनिटरिंग भी कर सकते हैं, जिनका टेस्ट स्कोर कम हो और जो अक्सर क्लास से गायब रहते हों। ऐसा भी नहीं है कि कोटा के कोचिंग संस्थानों की ओर से इस तरह की पहल नहीं हुई है, लेकिन स्पष्ट है कि ये नाकाफी साबित हो रहे हैं। दूसरी तरफ भरोसेमंद शैक्षणिक संस्थानों का भी मसला है। देश में कुल 23 IIT और लगभग इतने ही मेडिकल कॉलेज हैं। इन्हीं के लिए सब तैयारी करते हैं। सबका इन्हीं पर भरोसा है, लेकिन सबको तो इनमें एडमिशन मिल नहीं सकता। जितने स्टूडेंट्स इसमें दाखिले के लिए परीक्षा देते हैं, हर साल उनमें से औसतन 2 फीसदी ही पास होते हैं। ऐसे में सरकार को या तो खुद या प्राइवेट सेक्टर की मदद से और भी भरोसेमंद संस्थान बनाने होंगे। नौकरी देने वाले प्राइवेट सेक्टर को भी छोटे इंजीनियरिंग कॉलेजों में हायरिंग के लिए जाना होगा क्योंकि वहां भी टैलंटेड स्टूडेंट्स हैं। मगर इन सबसे पहले पैरंट्स को अपने बच्चों की काबिलियत पहचाननी होगी और उसी के अनुरूप आगे बढ़ने में उसकी मदद करनी होगी। कोटा में आज जो हो रहा है, उसे रोकने के लिए पैरंट्स, कोचिंग संस्थान और सरकारी मशीनरी सबको मिलकर काम करना होगा।एनबीटी डेस्क के बारे मेंNavbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म… पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐपलेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें