1 गोली गायब थी… हमने सिर को नहीं खोला, इंदिरा गांधी का पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर ने सुनाया उस दिन का किस्सा – ankhon dekhi indira gandhi post mortem details dr td dogra interview

हमने थिएटर में ही पोस्टमॉर्टम कियामैं तो फॉरेंसिक से था, मेरा काम अलग था। जब डेथ डिक्लेयर हो गई तब मेरा काम शुरू हो गया। मैंने पोस्टमॉर्टम किया। दो टिपिकल चीजें थीं। पहला रिक्वेस्ट था कि इन्हें मॉर्चरी में न ले जाया जाए। वैसे, ऐसा कोई कानून नहीं है कि पोस्टमॉर्टम मॉर्चरी में ही करना है। बहुत बार हम साइट पर भी जाकर कर देते हैं। हां सुविधा के लिए मॉर्चरी में जाते हैं। तब हमने तय किया कि नहीं, थिएटर में ही पोस्टमॉर्टम करेंगे। दूसरा अनुरोध यह था कि इन्हें तीन दिन लोगों के दर्शन के लिए रखना है। ऐसे में गुजारिश की गई कि आप इनके स्कल (सिर के हिस्से) को नहीं खोलेंगे। असल में सिर को खोलेंगे तो फेस डिसफिगर हो जाता।अगर आपने उनकी फोटो देखी हो तो उनके चेहरे पर सूजन थी। ब्लड काफी निकला था, शॉक लगा था। बॉडी खराब न लगे इसलिए स्कल न खोलने का अनुरोध लिखित तौर पर किया गया था। मैंने देखा कि सारी चोटें घुटने और ब्रेस्ट के बीच में थीं। क्लिनिकली भी हार्ट या लंग्स इंजरी का कोई सबूत नहीं था। हमने स्कल नहीं खोला। बाकी चेस्ट और एबडॉमिन को खोलकर मौत का कारण बताया। दो चीजें अहम थीं। एक तो उन्हें कितनी गोलियां लगीं। दूसरा, किस चोट से मौत हुई। ये जरूरी होता है कि जिस आदमी को चोटें लगी हैं वो उसे नैचरल कोर्स में डेथ के लिए पर्याप्त हों। सामने से गोली जाकर लिवर को नुकसान करते हुए बैक में स्पाइनल कॉर्ड में लगी थी। यह डेथ की वजह हो सकती है। हमने यही बताया। गोलियां कितनी चलीं, ये हमें पता नहीं था। किसी को पता नहीं था। अस्पताल के चारों ओर लाखों लोग आ गए थे।1 गोली का पता नहीं चलामैंने अपने हिसाब से 31 बुलेट का पता लगाया, जो लगी थीं। एंट्री बुलेट… वैसे तो 50-56 गोलियां चली थीं। करीब 24 बुलेट निकल गई थीं। आज 1-2 नंबर इधर उधर हो सकता है। बाकी 4 बुलेट में से दो तरह की गोलियां थीं, जो बॉडी में फंसी हुई थीं। 6 गोलियां एक तरह की थीं, बाकी 24 दूसरी तरह की थीं। अब आपको दोनों का 1-1 सैंपल चाहिए। हमको एविडेंस अंदर से निकालकर रखना पड़ता है और जब हथियार पकड़ा जाएगा तो उससे मैच कराना पड़ेगा। वो बैलस्टिक जांच से हम मैच करेंगे कि हां, यही बुलेट है जो शरीर से निकाली गई है। बाकी बुलेट स्पाइनल कॉर्ड में इस तरह से फंस गई थी कि उसे निकाल नहीं सकते थे। निकालते तो बुलेट टूट जाती। केवल दो बुलेट ऐसी थीं जिसे हम निकाल सकते थे। एक पिस्टल से चली थी, एक स्टेन गन से चली थी। हमने निकाला और बाकी के लिए लिखा कि उसे निकालेंगे तो बॉडी कोलैप्स हो जाएगी या बुलेट बर्बाद हो जाएगी।मैं जब तक सीन पर नहीं गया… क्योंकि मुझे पता था कि मेरा काम खत्म नहीं हुआ अभी शुरू हुआ है। अब मुझे विटनस बॉक्स में खड़ा होना पड़ेगा। वहां बड़े-बड़े वकीलों के सवालों के जवाब देने होंगे। दूसरे दिन पुलिस का फोन आया कि सफदरजंग रोड पहुंच जाइए इंदिरा जी के घर। खोखे वहीं थे। खोखे और मेरे इंजरी चोट में फर्क आ गया। एक खोखा ज्यादा मिल गया। ये हुआ कि एक गोली कहां गई। मैंने कहा कि तलाश करने दो। मैं छत पर चला गया। एक तसला पड़ा था मिट्टी का। वहां एक नौकर था वो बताने लगा कि मैडम रोज सुबह पक्षियों के लिए उसमें पानी डाला करती थीं। मैंने जाकर देखा तो उसमें बुलेट पड़ी हुई थी। मैं चिल्लाया कि कोचर साहब मेरा काम हो गया। लेकिन गोली ऊपर कैसे पहुंची? हुआ क्या था कि गोली बॉडी से मिस कर गई। वह फ्लाइट कर ऊपर पहुंच गई। थोड़ी दूर जाकर शायद पेड़ की डाली से टकराकर तसले में गिर गई थी।(पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉ. टीडी डोगरा ने जैसा ‘लल्लनटॉप’ को बताया)