123 prime properties given to waqf board,मनमोहन सरकार ने चुनाव में वक्फ को दे दी थी दिल्ली की 123 संपत्तियां, मोदी सरकार ने ले ली वापस – then manmohan government had given 123 properties of delhi to waqf during lok sabha elections and now modi government took them back

नई दिल्ली : 2014 लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने से ठीक एक दिन पहले कांग्रेस पार्टी की अगुवाई वाली तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया। वह फैसला दिल्ली की 123 प्राइम प्रॉपर्टीज को लेकर थी। मनमोहन सरकार ने 5 मार्च 2014 को इन प्रॉपर्टीज को दिल्ली वक्फ बोर्ड के हवाले करने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी थी। इसे मुस्लिम तुष्टीकरण के एक और प्रयास के तौर पर देखा गया। लेकिन 2014 के चुनाव में यूपीए को सत्ता से हटना पड़ा। नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने मतदाताओं को रिझा लिया और तब से केंद्र में मोदी सरकार का कब्जा है। अब उसने अपनी पूर्ववर्ती मनमोहन सरकार के फैसले को पलट दिया। केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि दिल्ली वक्फ बोर्ड को सौंपी गई 123 प्रॉपर्टियों को फिर से सरकार के कब्जे में लिया जाएगा। इस संबंध में सरकार ने नोटिस भी जारी कर दिया। मजे की बात है कि नोटिस तब निकला है जब अगले वर्ष ही लोकसभा चुनाव होने वाले हैं।मोदी सरकार ने फरवरी 2015 में दिल्ली वक्फ बोर्ड को सरकारी संपत्तियों को उपहार में देने के यूपीए सरकार के फैसले की जांच करने का फैसला किया। सरकार ने ऐसा तब किया जब विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया। हिंदू संगठन ने तर्क दिया कि इन बेहद कीमती संपत्तियों को भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 48 के तहत न तो रखा जा सकता है और न इन्हें रिलीज किया जा सकता है। तत्कालीन शहरी विकास मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने तब कहा, ‘मुझे सलमान खुर्शीद के खिलाफ शिकायतें मिली हैं… उन्होंने वोट बैंक की राजनीति के लिए इन संपत्तियों के ट्रांसफर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।’मोदी सरकार ने वर्ष 2016 में दिल्ली उच्च न्यायिक सेवा से रिटायर्ड अधिकारी जेआर आर्यन की एक जांच समिति बना दी। इसे छह महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपने को कहा गया था। जून 2017 में यह बताया गया कि समिति ने सिफारिश की है कि 123 संपत्तियों के भाग्य पर अंतिम निर्णय दिल्ली वक्फ आयुक्त द्वारा ही लिया जाना चाहिए। एक अधिकारी ने बताया कि जेआर आर्यन समिति इस सवाल का जवाब देने में विफल रही कि क्या संपत्ति वास्तव में वक्फ की थी। समिति को छह महीने का विस्तार भी मिला, फिर भी यह कोई ठोस रिपोर्ट पेश नहीं कर सकी। इसके बाद अगस्त 2018 में केंद्र ने दो सदस्यीय समिति का गठन किया। इसने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया कि आर्यन समिति की रिपोर्ट अस्पष्ट थी, इसलिए दो सदस्यीय समिति का गठन किया गया था।यहां देखें 123 प्रॉपर्टीज की लिस्टदिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने 2021 के नवंबर में विवादित संपत्तियों के संबंध में जनता की राय के लिए एक नोटिस जारी किया था। 2022 के मार्च में दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली वक्फ बोर्ड को राहत देने से इनकार कर दिया, जिसने केंद्र की तरफ से अपनी 123 कथित संपत्तियों को हटाने के खिलाफ याचिका दायर की थी। दो सदस्यीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली वक्फ बोर्ड को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया गया था लेकिन उसने निर्धारित समय के भीतर ऐसा नहीं किया। नतीजतन, बोर्ड को 123 संपत्तियों से संबंधित सभी मामलों से मुक्त कर दिया गया।समिति ने उक्त 123 संपत्तियों के भौतिक निरीक्षण (Physical Inspection) की भी सिफारिश की। इस साल 17 फरवरी को आवास और शहरी मामलों के केंद्रीय मंत्रालय ने दिल्ली में 123 संपत्तियों के बाहर नोटिस चिपका दिए। नोटिस में साफ कहा गया था कि यह संपत्ति अब दिल्ली वक्फ बोर्ड की नहीं है। इस आप नेता और दिल्ली वक्फ बोर्ड के चेयरमैन अमानतुल्लाह खान ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। फिर दिल्ली वक्फ बोर्ड ने आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय को पत्र लिखकर दो सदस्यीय समिति के गठन को चुनौती दे दी।कांग्रेस सरकार ने उचित मुआवजे का अधिकार और भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में पारदर्शिता अधिनियम, 2013 के तहत मिली शक्तियों का प्रयोग करते हुए इन संपत्तियों को भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया से हटाने का फैसला किया था। उसने दिल्ली की इन 123 संपत्तियों को न सिर्फ वक्फ बोर्ड के हवाले कर दिया था बल्कि उसे रेनोवेशन और निर्माण का भी अधिकार दे दिया।हमारे सहयोगी न्यूज चैनल टाइम्स नाउ के मुताबिक, दिल्ली वक्फ बोर्ड ने 27 फरवरी, 2014 को राष्ट्रीय राजधानी में 123 प्रमुख संपत्तियों पर अपना दावा ठोका था। उसने इस संबंध में भारत सरकार को एक अनुपूरक ज्ञापन (Supplementary Note) लिखा था। 5 मार्च, 2014 को लिखे गए इस ज्ञापन पर भारत सरकार के अतिरिक्त सचिव जेपी प्रकाश का दस्तखत था। यह नोट शहरी विकास मंत्रालय के सचिव को संबोधित इस नोट में लिखा था, ‘मंत्रालय को सूचित किया जाता है कि भूमि और विकास कार्यालय (LNDO) और दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) के नियंत्रण में दिल्ली में 123 संपत्तियों का डीनोटिफिकेशन किया गया है और दिल्ली वक्फ बोर्ड को इन संपत्तियों का स्वामित्व वापस करने की अनुमति दी गई है।’टाइम्स नाउ ने 2022 में गृह मंत्रालय की तरफ से जारी एक नोट को भी उजागर किया था, जिसमें कहा गया था, ‘केंद्र सरकार कुछ शर्तों के साथ निम्नलिखित वक्फ प्रॉपर्टीज को LNDO और DDA के नियंत्रण से वापस लेने का निर्णय लिया है।’ कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने वक्फ बोर्ड से ज्ञापन मिलने पर कहा कि 123 संपत्तियां दिल्ली वक्फ बोर्ड की हैं। यह बताना जरूरी है कि दिल्ली के प्राइम लोकेशन पर स्थित ये संपत्तियां ब्रिटिश सरकार से विरासत में मिली थीं और 5 मार्च, 2014 तक उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ था।तब नोडल अधिकारी आलम फारुकी ने कहा कि ये 123 संपत्तियां मस्जिद, दरगाह और कब्रिस्तान की हैं। उन्होंने दावा किया कि UPA का फैसला पलटने से इन संपत्तियों से हो रही कमाई और मुस्लिम समुदाय के विकास बाधित होगी। उन्होंने कहा, ‘वक्फ संपत्तियों से हुई कमाई का मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए उपयोग किया जाता है।’ उन्होंने आगे कहा कि इन 123 संपत्तियों में कुछ ही खाली जमीन है जिनमें अधिकांश पर अतिक्रमण हो गया है। वक्फ बोर्ड को मालिकाना हक मिलने से अतिक्रमण हटाने का अधिकार भी मिल गया है।बहरहाल, मनमोहन सरकार में वक्फ बोर्ड को दी गईं और अब मोदी सरकार में वापस ली जा रहीं 123 में से 61 संपत्तियां भूमि और विकास कार्यालय (LNDO) जबकि बाकी 62 संपत्तियां दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) के स्वामित्व में थीं।