नई दिल्ली: हमें पता है कि भारत को आजादी 14 अगस्त, 1947 की ठीक आधी रात में मिली थी। घड़ी के कांटों ने जैसे ही रात के 12 बजाए, भारत की आजादी की घोषणा हो गई। हालांकि, हम अपना स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाते हैं। प्रश्न है कि अगर 14 अगस्ती की रात 12 बजे आजादी का ऐलान हुआ तो फिर हम हर वर्ष इसी इसी दिन, इसी वक्त स्वतंत्रता का समारोह क्यों नहीं मनाते हैं? सवाल है कि जब एक देश की नई तकदीर लिखे जाने जैसा बड़ा काम हुआ तो फिर यह आधी रात में क्यों, दिन में क्यों नहीं? ऐसी क्या मजबूरी थी कि रात 12 बजे ही ब्रिटिश राज के हाथों से शासन की बागडोर भारतीयों को सौंप दी गई?भारत को स्वतंत्रता मिलने के आखिरी कुछ महीनों की कहानियां लिखने वाले दो विदेशी इतिहासकारों ने इन सवालों के जवाब दिए हैं। डॉमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिंस की पुस्तक फ्रीडम एट मिडनाइट, हिंदी में आधी रात को आजादी के नाम से प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक में बताया गया है कि आखिर 14 अगस्त की आधी रात को ही भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित क्यों किया गया।ज्योतिषियों ने दिया था ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति का हवालापुस्तक ‘आधी रात को आजादी’ के लेखक कहते हैं कि इसकी वजह ज्योतिषियों की राय थी। ज्योतिषियों का मानना था कि किसी राष्ट्र को स्वतंत्रता दिए जाने जैसा पवित्र कार्य के लिए 15 अगस्त का दिन शुभ नहीं है। उन्होंने बताया कि ग्रह-नक्षत्र की स्थितियों के लिहाज से 15 अगस्त को इतना महत्वपूर्ण काम नहीं किया जा सकता है। उन्होंने ही बताया कि अगर 15 अगस्त की तारीख ही तय है तो इसका विकल्प निकाला जा सकता है। पुस्तक में कहा गया है, ‘भारतीय ज्योतिषियों के आग्रह के सामने भी वायसराय लॉर्ड लुइस माउंटबेटन को झुकना पड़ा।’कहानी यूपी के एक ऐसे गांव की जहां देश प्रेम में कई लोगों ने दी जान, लेकिन इतिहास में नहीं नामलेखक कहते हैं, ‘किसी भी राष्ट्र के आधुनिक इतिहास का प्रारम्भ 15 अगस्त को करना कदापि उचित नहीं रहेगा। इस चेतावनी को बार-बार दोहरा रहे ज्योतिषियों ने आखिर जो एक बीच का रास्ता सुझा दिया था, उनके अनुसार 14 अगस्त के दिन सितारों की स्थिति 15 अगस्त की तुलना में काफी बेहतर थी। लिहाजा, 14 अगस्त 1947 की ठीक आधी रात को यदि भारत और पाकिस्तान नाम के दोनों राष्ट्रों को आजाद किया जाए, तो यह हर दृष्टि से बेहतर साबित होगा। ज्योतिषियों के सुझाए इस विकल्प से वायसराय ने राहत की सांस ली और तुरंत यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।’अंग्रेज सिपाहियोंं को घुटनों पर बैठाया था, लूट ली थीं रायफलें… क्रांतिकारियों ने हिला दी थी रूह!माउंटबेटन ने हमेशा के लिए ले ली यह सीखवायसराय लॉर्ड माउंटबेटन स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल भी बने। उन्हें इस घटना से एक बात का अहसास हो गया कि हर बडे़ कार्य से पहले ज्योतिषियों की राय जरूर ली जाए। फिर उन्हें पता चला कि उनके स्टाफ मेंबर में कोई ऐसा है ही नहीं जिसे ज्योतिष विद्या का तनिक भान भी हो। फिर उन्होंने अपने प्रेस अताशे को इसकी जिम्मेदारी दे दी। आधी रात को आजादी में दोनों लेखक आगे कहते हैं, ‘वायसराय ने मन्द मुस्कान के साथ, यह भी नोट किया था कि ज्योतिष विद्या पर उन्हें सही सलाह देने के लिए स्टाफ में उचित प्रबंध नहीं है। उन्होंने अपने सुयोग्य, नौजवान प्रेस सलाहकार एलन कैम्पबेल जॉनसन को अन्य जिम्मेदारियों के साथ यह जिम्मेदारी भी सौंपी कि महत्वपूर्म मुद्दों पर हमेशा ज्योतिषियों से मशविरा कर लिया जाए।’सामने घायल पति, अंग्रेज बरसा रहे थे गोलियां, फिर भी नहीं झुकने दिया तिरंगा, बहादुर तारा रानी श्रीवास्तव की कहानीतभी से तिरोहित होने लगे महात्मा गांधी के विचारपुस्तक में इससे आगे की जो पंक्तियां हैं, उससे पता चलता है कि कैसे भारत आजाद होते-होते महात्मा गांधी के आदर्शों से उनके शिष्य ही मुक्त होने लगे थे। लेखक कहते हैं, ‘आजादी ज्यों-ज्यों नजदीक आ रही थी, महात्मा गांधी की छत्रछाया में पले सभी नेताओं को महसूस होने लगा कि महात्मा जी की बातें अवैज्ञानिक और देहाती हैं। वे भारत को भविष्योन्मुखी बनाने की अपेक्षा अतीत पर सम्मोहन की स्थिति में डाल रही हैं। वे नेतागण चरखे को भारतीय देहात का जागरण चिह्न न मानकर, उसे ‘गांधी जी का खिलौना’ कहने लगे थे। गांधी जी के एतराज की उपेक्षा करके उन्होंने भारत के राष्ट्रीय झण्डे के मध्य से चरखे को हटा दिया था। सम्राट अशोक के युगल सिहों के बीच फंसे धर्म चक्र को राष्ट्रीय झण्डे के बीच जगह दी थी, ताकि अशोक जिस शक्ति और आधिपत्य का स्वामी था, उसकी संकेत किरणें राष्ट्रीय झण्डे से फूट सकें।’GK: 14, 16 या 20 नहीं, आखिर 15 अगस्त को ही क्यों चुना गया आजादी का दिन, जानिए असली वजहआगे कहा गया है, ‘गांधी शक्ति और आधिपत्य के प्रचारक नहीं थे। उनके अनुसार, ये दोनों तत्व मनुष्य को हिंसा और पतन की ओर ले जाते हैं। वह तो आत्म जागरण और त्याग के प्रचारक थे। उन्होंने साफ कहा कि राष्ट्रीय झण्डा देखने में चाहे कितना ही कलात्मक क्यों न लगता हो; उसमें हिंसा का जो सन्देश छिपा है, उसके आगे मैं नतमस्तक कैसे होऊंगा? उन्हीं के द्वारा पोषित नेताओं और उनके बीच मतभेदों की अभी तो वह शुरुआत ही थी।’