भाषण का एक अंश पढ़िए47 में बंटवारे के वक्त हमें हक था पाकिस्तान जाने का, आपको नहीं था। हमें हक था। लेकिन हमने तय किया कि ये वतन हमारा है। हमारे पूर्वजों की कब्रें हैं यहां। बुजुर्गों के मजारात हैं यहां। जामा मस्जिद है दिल्ली की, ताजमहल है किले हैं हमारे। बुजुर्गों की यादें हैं और यही आज धरोहर है हमारे भारत की। वही लोग गद्दार हो गए। उन्हीं का नाम लेकर सड़कों पर मारा जाने लगा।हम अपनी मर्जी से रुके थे। हमें किसी ने जबर्दस्ती नहीं रोका था। जो अपनी मर्जी से रुके, उनके लिए आज सदन में कहा गया कि जो वंदे मातरम् नहीं कहेगा उसे भारत में रहने का अधिकार नहीं होगा। बहस वंदे मातरम् की नहीं है। मैं… मेरी बात तो सुन लें आप, हो सकता है कि आपको शर्मिंदगी हो। बात वंदे मातरम् की नहीं है मान्यवर, अगर कानून की बात करूं तो सुप्रीम कोर्ट कहता है कि वंदे मातरम् के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। सबसे बड़ी अदालत है।लेकिन अगर आपने इतिहास पढ़ा हो रेशमी रूमाल तहरीक। हिंदुस्तान को आजाद कराने के लिए कितने उलेमा ने फांसी के तख्ते चूमे थे। कितने लोग मारे गए थे। देश में न जाने कितनी मिट्टी की पहाड़ियां आज भी हैं, जिसमें हमारी लाशें सड़ गई होंगी लेकिन दफन हैं। रेशमी रूमाल तहरीक में अगर आप रेशमी रूमाल की तस्वीर देखेंगे तो उस पर भारत मां की तस्वीर छपी हुई मिलेगी आपको। ये रिश्ते कबके… ये 1942 में जब हिंदू और मुसलमान ने एक बर्तन में खाना खाया था तब अंग्रेजों को लगा था कि वह अब भारत में राज नहीं कर सकेंगे और 1942 से ही उसने अपना बिस्तर बांधना शुरू कर दिया था। 1947 में हिंदुस्तान आजाद हो गया था।