Allahabad High Court On Right To Religious Freedom,हक की बात: कल्कि धाम मंदिर पर हाई कोर्ट के फैसले ने खींच दी है धार्मिक स्वतंत्रता की बड़ी लकीर, जानें पूरा मामला – right to construct temple on private property is protected under article 25 and 26 orders allahabad high court

नई दिल्ली : अगर आप अपनी निजी जमीन पर कोई धर्मस्थल बना रहे हैं और बगल में दूसरे समुदाय का धर्मस्थल है तो क्या प्रशासन उसे बनाने पर रोक लगा सकता है? लॉ ऐंड ऑर्डर की समस्या पैदा होने की आशंका जताकर क्या धर्मस्थल के निर्माण को रोका जा सकता है? अगर जिला प्रशासन या स्थायी प्रशासन इस तरह का आदेश देता है तो क्या संवैधानिक रूप से सही है? क्या अपनी निजी जमीन पर धर्मस्थल बनाना किसी अन्य की धार्मिक संवेदनशीलता को आहत करने वाला माना जा सकता है? इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है जिसमें इन सारे सवालों का जवाब है। ‘हक की बात’ (Haq Ki Baat) के इस अंक में बात हाई कोर्ट के उसी फैसले की जिसमें अदालत ने कहा है कि अगर कोई अपनी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर धर्मस्थल का निर्माण कराता है तो ये उसका मूल अधिकार है जो संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षित यानी प्रोटेक्टेड है। इससे दूसरों की धार्मिक संवेदनाएं आहत नहीं हो सकतीं। हाई कोर्ट के इस फैसले ने धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों को लेकर बड़ी लकीर खींच दी है।इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि प्राइवेट प्रॉपर्टी पर मंदिर का निर्माण कराने का अधिकार आर्टिकल 25 और 26 के तहत संरक्षित हैं। जस्टिस सलील कुमार राय और जस्टिस सुरेंद्र सिंह की बेंच ने कहा कि सिर्फ इस आधार पर कि जिस जगह पर मंदिर का बनना प्रस्तावित है, उसके बगल में मस्जिद है तो सांप्रदायिक शांति या पब्लिक ऑर्डर डिस्टर्ब ही होगा, ये मानकर नहीं चल सकतें। बेंच ने अपने आदेश में कहा, ‘किसी व्यक्ति द्वारा अपनी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर सिर्फ मंदिर बना लेने से किसी दूसरे समुदाय की धार्मिक संवेदनाओं को ठेस नहीं पहुंच सकती।’याचिकाकर्ता का अपनी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर मंदिर बनाने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षित है। ऐसा कोई सबूत नहीं है कि निर्माण से पब्लिक ऑर्डर डिस्टर्ब होगी या ये नैतिकता के खिलाफ होगा या सार्वजनिक व्यवस्था के लिए नुकसानदेह होगा। रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जो बताता हो कि मंदिर बनाने की मंशा किसी दूसरे धार्मिक समुदाय का अपमान करना है। अन्य धर्म से ताल्लुक रखने वाले महज कुछ लोगों की आपत्ति अनुच्छेद 25 और 26 के तहत गारंटी के रूप में मिले अधिकार पर बंदिश लगाने का आधार नहीं हो सकती।इलाहाबाद हाई कोर्टक्या है पूरा मामलाइलाहाबाद हाई कोर्ट ने आचार्य प्रमोद कृष्णम की उस याचिका पर फैसला दिया जिसमें उन्होंने संभल के डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट के 2016 और 2017 में दिए फैसले को चुनौती दी थी। डीएम ने उन्हें अपनी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर मंदिर बनाने से रोक दिया था। आचार्य प्रमोद कृष्णम के कल्की ट्रस्ट ने संभल शहर से 20 किलोमीटर दूर अचोरा कंबो-असमोली गांव में जमीन खरीदी है। आचार्य वहां कल्कि धाम मंदिर बनाना चाहते थे। 7 नवंबर 2016 को मंदिर का नींव रखा जाना था। लेकिन उससे एक दिन पहले ही मुस्लिम किसान यूनियन नाम के एक संगठन की राष्ट्रीय अध्यक्ष इनामुर रहमान खान की आपत्ति के बाद संभल के डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट ने 6 नवंबर 2016 को मंदिर के निर्माण पर रोक लगा दी। इसके बाद प्रमद कृष्णम ने डीएम से अपने 2016 के आदेश को वापस लेने के लिए अप्लिकेशन डाला लेकिन अक्टूबर 30 अक्टूबर 2017 को डीएम ने उस अप्लिकेशन को खारिज कर दिया। मंदिर निर्माण शुरू होने से पहले ही रुक गया जिसके बाद आचार्य प्रमोद कृष्णम ने डीएम के 2016 और 2017 के आदेश को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख किया।संभल डीएम ने इन बातों को बताया था मंदिर निर्माण के रोक का आधार30 अक्टूबर 2017 के अपने आदेश में संभल के डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट ने वो ग्राउंड्स भी गिनाए थे जिनके बिना पर मंदिर निर्माण पर रोक लगाई गई। ये थे-संभल सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाका है और प्रस्तावित मंदिर का एक धार्मिक समूह विरोध कर रहा है जिससे इलाके में लॉ ऐंड ऑर्डर की स्थिति खराब हो सकती है। इसलिए याचिकाकर्ता संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक आजादी के आधिकार का दावा नहीं कर सकते।जिस जमीन पर मंदिर बनाया जाना है वह सरकारी जमीन (ग्रामसभा की जमीन) के नजदीक है। मंदिर में दर्शन करने आने वाले लोग सरकारी जमीन का अतिक्रमण कर लेंगे क्योंकि उन्हें अपनी गाड़ियों को पार्क करने के लिए जगह की जरूरत होगी।जिस जगह पर मंदिर बनाया जाना प्रस्तावित है, उससे 144 मीटर के ही दायरे में मस्जिद है। दूसरे समुदाय के कई प्रतिनिधि मंदिर बनाए जाने का विरोध कर रहे हैं।ऐतिहासिक कल्कि मंदिर पहले से ही गांव से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।मंदिर के नक्शे को किसी भी रेग्युलेटरी अथॉरिटी और जिला पंचायत, संभल नगर पालिका से मंजूरी नहीं मिली है।डीएम के इस आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता की तरफ से हाई कोर्ट में दलील दी गई कि आदेश पूरी तरह पूर्वानुमानों पर आधारित है।हाई कोर्ट ने अपने फैसले में और क्या कहासंबंधित पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि जिस प्लॉट पर मंदिर का बनाया जाना प्रस्तावित है, उसपर याचिकाकर्ता के स्वामित्व को लेकर कोई विवाद नहीं है। उस पर मंदिर बनाने से किसी अन्य व्यक्ति या समुदाय की धार्मिक या व्यक्तिगत संवेदना का अपमान नहीं होता।हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जो दिखाता हो कि मंदिर निर्माण का मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा तबका विरोध कर रहा है। अगर ऐसा होता भी तो किसी व्यक्ति का अपनी निजी जमीन पर सिर्फ मंदिर बना लेना किसी अन्य समुदाय की धार्मिक संवेदनाओं को ठेस नहीं पहुंचा सकता।इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में टिप्पणी की, ‘याचिकाकर्ता का अपनी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर मंदिर बनाने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षित है। ऐसा कोई सबूत नहीं है कि निर्माण से पब्लिक ऑर्डर डिस्टर्ब होगी या ये नैतिकता के खिलाफ होगा या सार्वजनिक व्यवस्था के लिए नुकसानदेह होगा। रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जो बताता हो कि मंदिर बनाने की मंशा किसी दूसरे धार्मिक समुदाय का अपमान करना है। अन्य धर्म से ताल्लुक रखने वाले महज कुछ लोगों की आपत्ति अनुच्छेद 25 और 26 के तहत गारंटी के रूप में मिले अधिकार पर बंदिश लगाने का आधार नहीं हो सकती।’इतना ही नहीं, हाई कोर्ट ने कहा क अगर मंदिर निर्माण से सांप्रदायिक तनान होता भी है तो उसे नियंत्रित करना जिला प्रशासन का काम है। प्रशासन का ये दायित्व है कि वह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करे। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को मंदिर का नक्शा जिला पंचायत में पेश करने को कहा। कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा कि जिला पंचायत डीएम के 2016 और 2017 में दिए आदेश से प्रभावित हुए बिना कानून और नियमों के हिसाब से प्रस्तावित नक्शे पर फैसला ले।