article 370 hearing concludes top moments kapil sibal argument supreme court

नई दिल्ली: अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली है। चीफ जस्टिस की अगुवाई में 5 जजों की संविधान पीठ ने 16 दिनों तक दोनों पक्ष की दलीलों को सुना और फैसला सुरक्षित रख लिया। जम्मू-कश्मीर के लिए आर्टिकल 370 को खत्म किए जाने के फैसले के 4 साल बाद सुप्रीम कोर्ट में 23 याचिकाओं पर 2 अगस्त से सुनवाई शुरू हुई। इस दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कई दलीलें दीं। कपिल सिब्बल ने कहा कि 370 को छेड़ा नहीं जा सकता। 370 हटाने के फैसले को चुनौती देते हुए कपिल सिब्बल ने कहा राजनीतिक लाभ के लिए संविधान में हेरफेर नहीं किया जा सकता। 16 दिनों की सुनवाई में कपिल सिब्बल की ओर से कोर्ट रूम में पेश दलीलें-संविधान पीठ में कौन कौनप्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़न्यायमूर्ति संजय किशन कौलन्यायमूर्ति संजीव खन्नान्यायमूर्ति बीआर गवईन्यायमूर्ति सूर्यकांत370 पर केंद्र और अन्य की टीमअटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणिसॉलिसिटर जनरल तुषार मेहताहरीश साल्वेराकेश द्विवेदीवी गिरि और अन्यमेरे याचिकाकर्ताओं ने भारत की संप्रभुता को चुनौती नहीं दी है और शुरुआत में उन्होंने कहा था कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। याचिकाकर्ता ने अगर पहले कुछ कहा है, किन परिस्थितियों में उन्‍होंने यह कहा है, क्या यह रिकॉर्ड किया गया है। आप उनसे हलफनामा मांगें। मेरा इससे कोई लेना-देना नहीं है। अकबर लोन संसद के सदस्य हैं और उन्होंने भारत के संविधान की शपथ ली है। वह भारत का नागरिक हैं। वह अन्यथा कैसे कह सकते हैं? अगर किसी ने गलत कहा है तो मैं इसकी निंदा करता हूं… केंद्र कानूनी प्रस्तुतियों को पटरी से उतार रहा है… अगर मैं दोबारा गिनाना शुरू कर दूं, तो क्या हुआ होगा। इससे अनावश्यक रूप से केवल मीडिया कवरेज को बढ़ावा मिलेगा। हम एक शुद्ध संवैधानिक मुद्दे पर बहस कर रहे हैं। जब यह कथित तौर पर हुआ, तब भाजपा के एक अध्यक्ष (विधानसभा के) वहां मौजूद थे… आप क्यों चाहते हैं कि मैं इसमें जाऊं? यह रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं है, इसे वापस ले लिया गया है और रिकॉर्ड से हटा दिया गया है।(नैशनल कॉन्फ्रेंस नेता अकबर लोन के बचाव में कपिल सिब्बल)भारत की संप्रभुता को कभी चुनौती नहीं दी गई है। लोन और अन्य याचिकाकार्ताओं ने केंद्र के उस निर्णय को चुनौती दी है, जिसके तहत वह जम्मू कश्मीर को भारत का अखंड हिस्सा बताता रहा है। हम इस मामले को संविधान की भावनात्मक बहुसंख्यकवादी व्याख्या में तब्दील नहीं कर सकते। यदि हम इतिहास पर नजर डालें, तो यह देखने को मिलेगा कि जम्मू-कश्मीर पूरी तरह से भारत से जुड़ा नहीं है। पूर्ववर्ती राज्य का एक अलग विस्तृत संविधान और प्रशासनिक संरचना थी। कभी भी विलय समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए नहीं कहा गया।कपिल सिब्बल, वरिष्ठ वकील2. संविधान की ‘भावनात्मक बहुसंख्यकवादी व्याख्या’ नहीं हो सकती। इस मामले में समीक्षा की जरूरत है। व्याख्या ‘पाठ पढ़ें, संदर्भ समझें और अनुच्छेद 370 की व्याख्या करें’ पर आधारित है। जम्मू-कश्मीर के सभी निवासी भारत के नागरिक हैं। वे भी अन्य लोगों की तरह ही भारत का हिस्सा हैं। यदि ऐतिहासिक रूप से संविधान का एक अनुच्छेद है, जो उन्हें अधिकार देता है, तो वे कानून के मामले में इसकी रक्षा करने के हकदार हैं। भारत में किसी भी अन्य रियासत की तरह जम्मू-कश्मीर का संविधान 1950 के बाद तैयार नहीं किया गया था। जम्मू-कश्मीर एकमात्र राज्य था, जिसके पास 1939 में अपना संविधान था और इसलिए, उसे विशेष उपचार मिलना चाहिए। कपिल सिब्बलआर्टिकल 370 के खिलाफ याचिका अलगाववाद का अजेंडा नहीं, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की 5 बड़ी बातेंयह तर्क तथ्यात्मक रूप से अच्छी तरह से स्थापित नहीं है और 62 राज्य ऐसे थे जिनके अपने संविधान थे – चाहे उन्हें संविधान के रूप में नामित किया गया हो या आंतरिक शासन के साधन के रूप में। 1930 के दशक के अंत में अन्य 286 राज्य अपने संविधान बनाने की प्रक्रिया में थे।सिब्बल को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का जवाबकपिल सिब्बल ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करना ब्रेक्जिट की तरह ही एक राजनीतिक कृत्य था, जहां ब्रिटिश नागरिकों की राय जनमत संग्रह के माध्यम से प्राप्त की गई थी। सिब्बल ने कहा कि जब पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था तब ऐसा नहीं था। संसद ने जम्मू-कश्मीर पर लागू संविधान के प्रावधान को एकतरफा बदलने के लिए अधिनियम को अपनी मंजूरी दे दी। यह मुख्य प्रश्न है कि इस अदालत को यह तय करना होगा कि क्या भारत सरकार ऐसा कर सकती है। सिब्बल ने जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की अनुपस्थिति में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की संसद की शक्ति पर बार-बार सवाल उठाया है। उन्होंने लगातार कहा है कि केवल संविधान सभा को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने या संशोधित करने की सिफारिश करने की शक्ति निहित थी और चूंकि संविधान समिति का कार्यकाल 1957 में समाप्त हो गया था, इसलिए जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संवैधानिक प्रावधान को स्थायी मान लिया गया।भारत एक संवैधानिक लोकतंत्र है, जहां इसके निवासियों की इच्छा केवल स्थापित संस्थानों के माध्यम से ही सुनिश्चित की जा सकती है। ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने को ब्रेक्जिट कहा जाता है। ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से बाहर निकलना राष्ट्रवादी उत्साह में वृद्धि, कठिन आप्रवासन मुद्दों और संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के कारण हुआ।सुप्रीम कोर्टकपिल सिब्बल ने दलील पेश करते हुए कहा कि देशभर के राज्यों का यूनिफॉर्म तरीके से एकीकरण किया गया, लेकिन जम्मू-कश्मीर का मसला अपवाद है। सिब्बल ने कहा कि आप 370 के लिए स्वतंत्र पावर का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। 370 एकीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा है और एकतरफा घोषणा से उसे रद्द नहीं किया जा सकता। अनुच्छेद-370 (1) बी में सहमति जरूरी है। अनुच्छेद-370 (3) को बिना सहमति लिए खत्म कर दिया गया। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। सिब्बल ने कहा कि जब आर्टिकल रद्द किया गया तब राष्ट्रपति शासन था। 356 का इस्तेमाल कर इसे रद्द नहीं किया जाना चाहिए था। मंत्रिपरिषद से भी मशविरा नहीं हुआ। अगर 356 का इस्तेमाल कर संसद अपने पास शक्ति ले ले तो वह कुछ भी कर सकती है। आप कैसे राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील कर सकते हैं। किस कानून के तहत यह किया गया? इसके लिए कहां से पावर आया? इस दौरान एडवोकेट गोपाल सुब्रह्मण्यम ने दलील दी कि शुरुआत में आर्टिकल-370 अस्थायी था लेकिन वह बाद में स्थायी स्वरूप ले लिया। भारतीय संविधान भी जम्मू-कश्मीर के संविधान को मान्यता देता है। प्रेसिडेंट भी संसद के पार्ट हैं। संसद में लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति होते हैं। प्रेसिडेंट मंत्रिमंडल की सलाह से काम करते हैं।Article 370 को खत्म करना क्यों जरूरी हो गया था, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बतायाकोर्ट में पक्ष-विपक्ष की कुछ और दमदार दलीलें: अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज का तर्कः अनुच्छेद 370 संविधान का एकमात्र प्रावधान है जिसमें आत्म-विनाश तंत्र है। अनुच्छेद 370 को जारी रखना बुनियादी ढांचे के सिद्धांत का विरोध करता है। अनुच्छेद 370 के तहत राष्ट्रपति की शक्तियां प्रकृति में ‘पूर्ण’ हैं और ऐसी असाधारण शक्तियों को किसी भी सीमा के साथ नहीं पढ़ा जाना चाहिए। वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी का तर्क: जम्मू-कश्मीर के संविधान में ‘संप्रभु’ शब्द शामिल नहीं है, जो राज्य पर संघ की संप्रभुता को दर्शाता है। अंतिम कानूनी संप्रभुता भारत संघ के पास है, उन्होंने कहा कि शुरुआत से ही राष्ट्रपति द्वारा जारी किए गए सभी संवैधानिक आदेशों में ‘संविधान सभा’ और ‘विधान सभा’ शब्द का परस्पर उपयोग किया गया था।