Atal Bihar Vajpayee vs Narendra Modi achievements in road and railway infrastructure

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 अगस्त को ‘अमृत भारत स्टेशन योजना’ लॉन्च की। इसके तहत पूरे देश में 508 रेलवे स्टेशनों का पुनरुद्धार किया जाना है। इस योजना के ऐलान रेलवे के प्रति मोदी सरकार और खासकर खुद पीएम मोदी का नजरिया स्पष्ट होता है कि रेल यात्रा को सुगम और सुखद बनाया जाए। बात रेलवे के इलेक्ट्रिफिकेशन की हो या वंदे भारत जैसी आधुनिक ट्रेनों को तेजी से पटरी पर उतारने की, मोदी सरकार रेल यात्रा के अनुभवों में आमूल-चूल बदलाव लाने को तत्पर दिखती है। रेलवे बोर्ड के मौजूदा और पूर्व सदस्यों के अनुसार, मोदी सरकार के आते ही यह स्पष्ट हो गया था। वो बताते हैं कि मोदी ने पीएम पद संभालते ही रेलवे में बदलाव का खाका खींचना शुरू कर दिया था। 2014 में पहली बार पीएम बनने के बाद ही मोदी के सामने बोर्ड को रेलवे के मौजूदा हालात और भविष्य की योजनाओं को 10 स्लाइडों में बताना था। यह थोड़ी देर का काम था, लेकिन प्रजेंटेशन दो घंटे तक खिंच गया क्योंकि पीएम मोदी ने सवालों की झड़ी लगा दी। उन्होंने रेलवे में बदलाव के कई सुझाव दिए।पीएम बनते ही मोदी का रेलवे पर जोररेलवे बोर्ड के एक पूर्व सदस्य ने उस प्रजेंटेशन को याद करते हुए कहा, ‘उन्होंने स्टेशनों के विकास, एक रेलवे विश्वविद्यालय, साफ-सफाई, ट्रेनों की गति में वृद्धि, नई तकनीकों के अपनाने आदि पर बात की।’ उन्होंने कहा कि एक धीमी शुरुआत के बाद मोदी की रेलवे विश्वविद्यालय परियोजना जमीन पर उतर गई। वर्ष 2018 में गुजरात के वडोदरा में ‘गति शक्ति विश्वविद्यालय’ की स्थापना हो गई।यूपी से बिहार और छत्तीसगढ़ तक रेल की सुपरफास्ट रफ्तार, प्रदेश की दो परियोजनाओं को मोदी कैबिनेट से मिली मंजूरीवाजपेयी की स्वर्णिम चतुर्भुज योजना और मोदी का रेल पुनरुद्धारनरेंद्र मोदी सरकार का रेलवे के बुनियादी ढांचे पर जोर दिए जाने की तुलना अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की सड़क मार्ग के लिए लाई अभूतपूर्व योजनाओं से की जाने लगी है। वाजपेयी सरकार की स्वर्णिम चतुर्भुज योजना स्वतंत्रता के बाद का सबसे भव्य सड़क निर्माण कार्यक्रम था, जिसने चार प्रमुख महानगरों को राजमार्गों के नेटवर्क से जोड़ा था। 60 हजार करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 5,846 किलोमीटर लंबा सड़क मार्ग तैयार किया गया। उसी तरह, मोदी सरकार ने रेलवे में सुधार के लिए अपनी तिजोरी खोल दी है। यूपीए सरकार ने 2009 से 14 के दौरान अपने दूसरे कार्यकाल में रेलवे के लिए नए संसाधनों के निर्माण के लिए हर साल लगभग 45,980 करोड़ रुपये का निवेश किया। मोदी सरकार ने हर साल उस राशि के करीब तीन गुना खर्च किया है। उसका नौ वर्षों में कुल पूंजीगत व्यय 11.95 लाख करोड़ रुपये है। ये पैसे नई लाइनें, ट्रैक की क्षमता में वृद्धि और नई और तेज ट्रेनों पर खर्चे हुए हैं।अमृत भारत स्टेशन योजना का ऐलानपीएम मोदी ने 6 अगस्त, 2013 को 508 स्टेशन अपग्रेड प्रॉजेक्ट की आधारशिला रखते हुए सरकार की उपलब्धियां गिनाईं। उन्होंने कहा, ‘नौ वर्षों में भारत ने दक्षिण अफ्रीका, यूक्रेन, पोलैंड, यूके और स्वीडन जैसे देशों की तुलना में अधिक रेलवे ट्रैक बिछाए हैं… एक साल में भारत ने दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रिया जैसे देशों के पूरे नेटवर्क की तुलना में अधिक ट्रैक बनाए हैं।’देश में चलेंगी 10,000 नई ई-बसें, ग्रामीण लोगों के लिए विश्वकर्मा योजना, 7 रेलवे प्रोजेक्ट्स को भी मंजूरीरेल सुधार की दिशा में बड़े कदमरेलवे ने पिछले एक साल में 5,243 किलोमीटर नई लाइनें बिछाई हैं, जिसमें गेज परिवर्तन और दोहरीकरण शामिल है, जबकि नौ साल की अवधि में 25 हजार किलोमीटर रेलवे लाइनें बनाई गई हैं। इसमें 2,200 किलोमीटर डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर भी शामिल है, जो सुस्त नौकरशाही का शिकार है। रेल नेटवर्क अब किसी-न-किसी रूप में लगभग पूरे पूर्वोत्तर को कवर करता है। मोदी सरकार के रेलवे में सुधार के कुछ बड़े कदमों में रेल बजट को सामान्य बजट में मिलाना, रेलवे बोर्ड के आकार को कम करना, तेजी से अनुमोदन के लिए रैंक के नीचे वित्तीय शक्तियां देना और 100% ब्रॉड गेज ट्रैकों के विद्युतीकरण का लक्ष्य हासिल करना भी शामिल है।रेल हादसे भी हुए, लेकिन बहुत कमअमृत भारत स्टेशन योजना तब शुरू हुई जब स्टेशन की पुनर्विकास परियोजना के कई संस्करणों में निजी कंपनियों की भागीदारी नहीं हुई। इसके बाद, राष्ट्रीय रेल योजना 2030 है, जिसमें महत्वपूर्ण क्षेत्रों में रेलवे को अपग्रेड करने का लक्ष्य है, ताकि 2050 तक मांग में वृद्धि को पूरा किया जा सके। हालांकि, कुछ खामियां भी हैं। पिछले नौ वर्षों में भारत के इतिहास में कुछ सबसे भीषण रेल दुर्घटनाएं हुई हैं, जिसमें सैकड़ों यात्रियों की मौत हो गई है, भले ही ऐसी दुर्घटनाओं की संख्या कम हो गई हो। उदाहरण के तौर पर ओडिशा में कोरोमंडल एक्सप्रेस और बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस की जून 2023 की दुर्घटना हैं जिसमें 294 लोग मारे गए थे।Vande Bharat Express: टाटा-रांची-वाराणसी चल सकती है वंदे भारत एक्सप्रेस, रेलवे की ओर से शुरू की गई तैयारीरेल सुरक्षा के लिए अलग फंडसरकार ने 2016 में कानपुर में इंदौर-पटना एक्सप्रेस दुर्घटना में 150 लोगों के जान गंवाने के बाद रेलवे की सुरक्षा बढ़ाने के लिए 1 लाख करोड़ रुपये का राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष बनाया। यह राशि अगले पांच वर्षों में केवल महत्वपूर्ण सुरक्षा संपत्तियों के रिप्लेसमेंट, उनके रीन्यूअल या अपग्रेडेशन पर खर्च की जानी थी। आधिकारिक अनुमान के अनुसार, प्रति 10 लाख किलोमीटर में दुर्घटनाओं में कमी आई है। हालांकि, इस तरह की रेल दुर्घटनाओं के बाद की जांच में देरी का भी उदाहरण मिलता है। सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, 63% मामलों में जांच रिपोर्ट निर्धारित समय-सीमा के भीतर नहीं सौंपी जाती है और 49% मामलों में रिपोर्ट को स्वीकार करने में देरी होती है। मोदी सरकार ने ओडिशा दुर्घटना के बाद यह संदेश भी दिया है कि इसमें भी बदलाव आएगा। हाल के वर्षों में इस तरह की पहली कार्रवाई में सीबीआई ने दुर्घटना के संबंध में तीन रेलवे कर्मचारियों को गिरफ्तार किया है।