beware of fake images and videos of chandrayaan 3 lander vikrant and rover pragyan

चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम के सफल मून लैंडिंग के बाद फर्जी खबरों और तस्वीरें की बाढ़ आने लगी। ‘फर्जीवाड़े की फैक्ट्री’ से एक-से-बढ़कर एक झूठे दावों की खबरें आने लगीं। इसरो के वैज्ञानिक लैंडर विक्रम से रोवर प्रज्ञान को उतारने के लिए सही समय का इंतजार कर ही रहे थे कि इंटरनेट प चंद्रमा की सतह पर दो पेलोड की तस्वीरें साझा की जाने लगीं। उनमें से एक को तो बड़ी मेहनत से तैयार किया गया था। इस तस्वीर में सोने का चमचमाता विक्रम चंद्रमा पर शान से बैठा है और उसके पीछे नीली पृथ्वी उदयमान है। तस्वीर के कैप्शन में लिखा है कि तस्वीर को अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने शेयर किया है।
एक ने तो उससे भी बढ़कर फर्जीवाड़ा किया। उसने चंद्रमा पर लैंड करते हुए विक्रम का वीडियो शेयर किया। इस वीडियो में अंतरिक्ष यान के एक हिस्से के साथ-साथ लॉन्ग शॉट में चंद्रमा पर धूल उड़ती दिख रही है। कहा गया कि विक्रम के उतरने से धूल उड़ी है। लोगों को यकीन दिलाने के लिए चंद्रमा की सतह पर भारत का राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ और इसरो का लोगो भी दिखाया गया। कहा गया कि रोवर प्रज्ञान के टायर से ये निशान पड़े हैं। हालांकि, इसरो ने भी ऐसे निशान छोड़ने की योजना बनाई है, लेकिन हाई-रेजॉल्युशन की तस्वीर देखकर लोगों ने मान लिया कि ऐसा हो चुका है। सोशल मीडिया पर यहां तक तर्क दिए जाने लगे कि अब चांद पर ये निशान हमेशा के लिए अंकित हो गए क्योंकि वहां हवा नहीं जिस कारण इन निशानियों को मिटने का सवाल ही नहीं है।
फर्जीवाड़े में आनंद लेने वालों ने वैज्ञानिकों को भी नहीं बख्शा। इसरो के वैज्ञानिकऔ चंद्रयान-1 के प्रॉजेक्ट डायरेक्टर मलयस्वामी अन्नादुरई कहते हैं, ‘लैंडिंग से पहले ही मेरे पास चांद पर प्रज्ञान की तस्वीर आ गई।’ उन्होंने कहा, ‘बहुत से टूल हैं जिनसे लोग मनमर्जी की तस्वीर बना देते हैं। ये तो स्कूल स्टूडेंट्स भी कर रहे हैं। रचनात्मकता सही है, लेकिन इस तरह फर्जी तस्वीरें बनाना गलत है। भविष्य में इन फर्जी तस्वीरों की असलियत जानना भी मुश्किल हो सकता है। इस कारण अंतरिक्ष अभियानों का मूल मकसद पर ही ग्रहण लग जाएगा। आखिर ऐसे अभियानों का एक बड़ा लक्ष्य तो युवाओं में वैज्ञानिक समझ पैदा करना ही है।’
एआई फर्म क्लाउडसेक के सीईओ राहुल सासी कहते हैं, ‘पूरी तरह सच्ची दिखने वाली तस्वीरें बनाना दिन-ब-दिन आसान होता जा रहा है। कई वेबसाइट्स से आप फर्जी तस्वीरें बना सकते हैं, लेकिन इससे जो नुकसान होता है, उसकी भरपाई के लिए घंटों काम करना पड़ सकता है। चिंता की बात यह है कि सिर्फ मशीन ही बता सकती है कि कोई तस्वीर या वीडियो असली है या नकली।’ साइबर फॉरेंसिक स्पेशलिस्ट के. जयशंकर ने डीपट्रेस की रिपोर्ट का हवाला देकर कहा कि 2018 से 2019 के बीच फर्जी वीडियोज की संख्या बढ़कर दोगुनी हो गई। उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 में 14,678 फर्जी वीडियो बने।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं