हाइलाइट्स:बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी दो धड़ों में बंट गईपशुपति पारस ने पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत कीनीतीश कुमार की नजर 6 फीसदी पासवान वोटरों परचिराग की वजह से नीतीश की LJP से रिश्ते खराब हुएराकेश मोहन चतुर्वेदी, ET ब्यूरो2013 में जब से नरेंद्र मोदी ने बीजेपी की बागडोर संभाली है, तब से नीतीश कुमार के साथ प्रेम-घृणा का रिश्ता रहा है। मोदी की नेतृत्व वाली भाजपा के साथ संबंध बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का केवल राजनीतिक मजबूरियों की वजह से हैं। 2020 विधानसभा चुनाव रिजल्ट के बाद से ही नीतीश कुमार अपनी पुरानी ताकत को हासिल करने की लगातार कोशिशें कर रहे हैं। क्योंकि गठबंधन में संख्या के लिहाज से नीतीश कुमार बीजेपी के जूनियर बन गए हैं। चिराग के कारण पासवान परिवार से नीतीश के रिश्ते खराब हुएऐसी खबरें आई कि लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) में तख्तापलट का नीतीश कुमार और उनकी पार्टी का आशीर्वाद हासिल है। नीतीश कुमार और लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान ने आपस में सियासी सम्मान का रिश्ता रखा था। दोनों एक-दूसरे के वोट-बेस की आवश्यकता को समझते रहे। हालांकि, रामविलास पासवान के बेटे चिराग ने 2020 के चुनावों में नीतीश कुमार की खुले तौर पर आलोचना की थी और दोनों पार्टियां चुनाव में एक-दूसरे के आमने-सामने थीं। जेडीयू नेताओं का कहना है कि चिराग पासवान की वजह से 2020 चुनावों में उनकी पार्टी को 46 सीटों का नुकसान हुआ। पार्टी यह भी मानती है कि चिराग को भाजपा नेताओं के एक खास वर्ग का समर्थन हासिल है। जिसकी वजह से जडीयू 71 (साल 2015 ) खिसक कर 43 (साल 2020) सीटों पर आ गई। वहीं बीजेपी 53 (साल 2015) सीटों से बढ़कर 74 (साल 2020) सीटों पर पहुंच गई। नीतीश की नजर LJP के बेस-वोट 6% पासवान वोटरों पर हैबिहार में 6 प्रतिशत पासवान (दुसाध) मतदाता हैं और एलजेपी के गठन के वक्त से ही वे रामविलास के प्रति वफादार हैं। नीतीश कुमार ने शुरू में पासवान को महादलित का दर्जा देने से इनकार कर दिया था। क्योंकि उनका मानना था कि ये लोग दलितों में सम्पन्न जाति है। हालांकि नीतीश कुमार ने अप्रैल 2018 में रामविलास पासवान के कहने पर पासवान को भी महादलित का दर्जा दे दिया। अब रामविलास पासवान के निधन पर नीतीश कुमार पासवान मतदताओं को अपनी तरफ करना चाहेंगे। लोजपा पर कब्जे की लड़ाई में फिलहाल आगे दिख रहे पशुपति पारस का भी झुकाव नीतीश कुमार की ओर है।LJP Crisis: बिहार के ‘बुझते’ चिराग में आखिर तेल क्यों डाल रही है लालू की पार्टी?नीतीश कुमार की बनाई हुई गैर-यादव ओबीसी और महादलित जेडीयू के वोट-बेस का बड़ा हिस्सा है। बीजेपी की नजर ओबीसी वोटों पर भी है, ऐसे में दोनों सहयोगियों के बीच तनातनी तय है। चूंकि बिहार में केवल 16% उच्च जाति के वोट हैं, इसलिए बीजेपी ने अपनी चुनावी संभावनाओं को मजबूत करने के लिए ओबीसी (हिन्दुत्व के नाम पर यादव सहित) मतदाताओं की ओर रुख किया है।बिहार में फिलहाल नीतीश कुमार की पार्टी JDU मजबूत स्थिति मेंकुल मतदाताओं में महादलित और पिछड़ी जातियों का हिस्सा लगभग 30% है, जबकि महादलित (पासवान को छोड़कर) 10% हैं। इसके अलावा नीतीश कुमार ने आरएलएसपी प्रमुख रहे उपेंद्र कुशवाहा को अपनी पार्टी में शामिल करके कोइरी-कुशवाहा वोटों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है। उन्होंने उमेश कुशवाहा को जेडीयू की बिहार इकाई का अध्यक्ष भी बनाया। केंद्रीय मंत्री पद के लिए पूर्णिया के सांसद और जेडीयू नेता संतोष कुशवाहा के नाम की चर्चा है। आरएलएसपी विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए से बाहर हो गई थी। ऐसे में बीजेपी और जेडीयू दोनों को 2020 में कुशवाहा मतदाताओं का समर्थन हासिल नहीं हो सका। LJP Crisis Latest Update: चाचा के लिए भतीजे को अध्यक्ष पद से हटाना आसान नहीं! चिराग चल चुके बड़ा दांवकुल मिलाकर नीतीश कुमार ने 2020 के विधानसभा चुनाव में झटका खाने के बाद से अपनी स्थिति मजबूत कर ली है, जो भाजपा के लिए चिंता का विषय भी होगा। विधानसभा चुनावों के दौरान तेजस्वी यादव के एक मजबूत नेता के रूप में उभरने के पीछे 11% यादव वोटों का अहम योगदान रहा। जबकि सीपीआई (एमएल) और अन्य वाम दलों के साथ राजद का गठबंधन दलित वोटों को अपने पक्ष में करने में मददगार साबित हुआ।बिहार की महिला वोटरों पर नीतीश कुमार की पकड़ मजबूतशराबबंदी और लड़कियों के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के कारण जेडीयू को महिला मतदाताओं का समर्थन मिलता है। इसकी वजह से मोदी की केंद्रीय योजनाओं के आधार पर भाजपा को महिलाओं का समर्थन मिलने की उम्मीदों पर पानी फिर जाता है। जैसे दूसरे राज्यों में बीजेपी महिला मतदाताओं का वोट हासिल करती है, वैसे बिहार में महिलाएं बीजेपी की बजाए नीतीश कुमार को वोट देती हैं। Bihar Politics: लोजपा सांसद चंदन सिंह का बड़ा हमला- ‘चिराग पासवान को राजनीति में क, ख, ग का भी ज्ञान नहीं’ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि पासवान के 6% वोट किस तरफ झुकते हैं। चिराग और पारस दोनों ने कहा है कि वे एनडीए के साथ रहेंगे। दोनों को रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद से खाली पड़े सीट पर मंत्री बनने की उम्मीद है। हालांकि इसमें पारस की दावेदारी ज्यादा मजबूत है क्योंकि उनको नीतीश कुमार का समर्थन हासिल है।