BRICS 2023: भारत पर क्यों नजरें? चीन क्यों बेचैन? जानें हर सवाल का जवाब – brics summit 2023 pm modi why world is looking at india what to expect 10 points

जयशंकर ने साफ कहा था, ऐसा कोई प्‍लान नहीं3 जुलाई को विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफ कह दिया था कि ब्रिक्स की नई करंसी को लेकर कोई योजना नहीं है। भारत का फोकस रुपये को मजबूत करने पर है। जिस वक्त जयशंकर ऐसा कह रहे थे। उसी दौरान केन्या में रूसी दूतावास के बयान ने करंसी को लेकर ग्रुप की गंभीरता की झलक दे दी। रूसी एंबेसी के बयान में कहा गया था कि ब्रिक्स देश जो करंसी शुरू करने वाले हैं वह ‘गोल्ड बैक्ड’ होगी। ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा और रूसी विदेश मंत्री सरगई लावरोव ने ब्रिक्स की साझा करंसी के समर्थन में बयान भी दिए हैं। चीन और रूस जैसे देश इसे डी-डॉलरीकरण की दिशा में बड़ा कदम मानते हैं। राष्ट्रपति लूला ने तो अप्रैल में इसे लेकर कहा भी था कि ब्रिक्स के अंदर व्यापार के लिए हमें यूरो जैसी करंसी बनानी चाहिए।समूह के विस्तार पर भारत की ओर क्यों हैं निगाहें?साफ है कि आज से शुरू हो रही ब्रिक्स समिट में जो सबसे अहम मसला होगा, वह है ब्रिक्स का विस्तार। दरअसल यह ऐसा मसला है, जिस पर सदस्य देशों के बीच सबसे ज्यादा माथापच्ची होने की आशंका है। यह सही है कि भारत को ब्रिक्स के विस्तार पर कोई ऐतराज नहीं है और यह बात भारत ने कई बार साफ की है। लेकिन यह भी सच है कि चीन ऐसे देशों की एंट्री के लिए पूरा जोर लगाएगा जो या तो उसके पाले के हैं या फिर उसके पाले में आ सकते हैं। इसे लेकर मीडिया के एक खेमे में आशंका भी जताई गई, जिसके बाद चीनी मीडिया ग्लोबल टाइम्स में चीन की ओर से भारत को लेकर नर्म रुख अपनाया गया और यह भी कहा गया कि पश्चिम नहीं चाहता कि ब्रिक्स मजबूत ग्रुप बनकर उभरे। दरअसल रूस इस वक्त अपनी उलझनों में फंसा है। ऐसे में दुनिया की निगाहें भारत की ओर लगी हैं कि समिट में वह अपनी आवाज को साफ तौर पर रख पाता है।किन अन्य देशों ने BRICS से जुड़ने में रुचि दिखाई?इस संगठन का सदस्य बनने के आवेदन पर सदस्य देश आपसी सहमति से फैसला लेते हैं। साल 2020 तक नए सदस्यों को इस समूह से जोड़ने के प्रस्ताव पर खास ध्यान नहीं दिया जाता था, लेकिन इसके बाद इस समूह को विस्तार देने पर चर्चा शुरू हुई। फिलहाल अल्जीरिया, अर्जेंटीना, बहरीन, इजिप्ट, इंडोनेशिया, ईरान, सऊदी अरब और यूएई ने इस समूह से जुड़ने के लिए आवेदन दिए हैं। अफगानिस्तान, बांग्लादेश, बेलारूस, कजाकिस्तान, मेक्सिको, निकारागुआ, नाइजीरिया, पाकिस्तान, सेनेगल, सूडान, सीरिया, थाइलैंड, ट्यूनीशिया, तुर्किये, उरुग्वे, वेनेजुएला और जिंबाब्वे ने भी इसकी सदस्यता में रुचि दिखाई है।इस समूह से क्यों जुड़ना चाहते हैं देश?विदेश मामलों के जानकार बताते हैं कि दर्जनों देशों को BRICS से जुड़ने में रुचि दिखाना इस बात का सबूत है कि अभी तक पश्चिमी देश जिस अर्थव्यवस्था के मॉडल को चला रहे हैं, वह अब पसंद नहीं किया जा रहा है। पूरे विश्व में ऐसे संगठनों की मांग बढ़ी है, जो किसी एक प्रमुख शक्ति या बड़े गुट के गुलाम न हों। दुनिया की ज्यादातर अर्थव्यवस्थाएं वैश्वीकरण को बढ़ावा देना चाहती हैं, लेकिन इसके लिए वे अपनी राजनीतिक प्रणाली, संस्कृति, घरेलू नीतियों, विदेशी नीति से समझौता नहीं करना चाहते। ब्रिक्स भी इसी राह पर चलता है। साथ ही, यह एक करंसी में कारोबार के खिलाफ है, जो लोगों को पसंद आ रहा है।चीन क्यों चाहता है विस्तार, भारत को क्या है डर?ब्रिक्स के विस्तार में चीन ज्यादा पैरवी कर रहा है। दरअसल, वह चाहता है कि ब्रिक्स को पश्चिमी प्रभुत्व को टक्कर देने वाले गुट के तौर पर देखा जाए। इन प्रयासों में चीन को रूस का भी समर्थन है, जो फिलहाल यूक्रेन की वजह से कूटनीतिक मोर्चे पर अलग-थलग महसूस कर रहा है। एक चीनी अधिकारी के हवाले से फाइनैंशनल टाइम्स ने बताया कि चीन का मानना है कि अगर हम ब्रिक्स में इतने देश शामिल करें, जिनकी कुल जीडीपी विकसित देशों के संगठन G7 जितनी हो तो दुनिया में ब्रिक्स की आवाज और मजबूत होगी। माना जाता है कि भारत नहीं चाहता कि यह समूह चीन केंद्रित गुट में बदले या इसकी पहचान अमेरिका विरोधी संगठन के तौर पर हो।