रंजीत कुमार
जब भी भारत और चीन की भागीदारी वाली कोई बहुपक्षीय शिखर बैठक होती है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच औपचारिक द्विपक्षीय बैठक की अटकलें तेज हो जाती हैं। दोनों पक्षों के आला अधिकारी औपचारिक द्विपक्षीय बैठक के लिए मान्य जमीनी आधार तय करने में जुट जाते हैं। इस साल भी जोहान्सबर्ग में ब्रिक्स शिखर बैठक (22-24 अगस्त) के पहले मोदी-शी मुलाकात की गहन तैयारी की गई थी।
दोनों पक्षों के बीच सहमति बनाने के लिए ही जल्दी में 19 अगस्त को सैन्य कमांडरों की बैठक रखी गई।
सीमांत इलाकों में विश्वास निर्माण के नए उपायों पर बातचीत के लिए पहली बार मेजर जनरल स्तर के अधिकारियों की भी बैठक करवाई गई।
सैन्य बैठकों के पहले दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश मंत्रियों के बीच भी बातचीत हुई थी।
लेकिन फिर भी शिखर बैठक से अलग दोनों नेताओं के बीच हाथ मिलाने और संक्षिप्त चर्चा के अलावा कोई ठोस बातचीत नहीं हुई।
द्विपक्षीय बातचीत का आग्रह
चीन की ओर से द्विपक्षीय बातचीत का आग्रह मिला था ,जिसे अहमियत न देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिखर नेताओं के लिए बने लाउंज में ही बैठकर बातचीत कर ली। इसे चलताऊ बातचीत ही कहा जा सकता है। असल में चीनी पक्ष ने कोई संकेत नहीं दिया था कि राष्ट्रपति शी कोई ठोस और भारत को मान्य पेशकश करेंगे। भारतीय पक्ष के मुताबिक, चीन सेना पीछे हटाने यानी डिसइंगेजमेंट के लिए तो तैयार है, लेकिन वह नहीं बता रहा है कि चीनी सेना कहां तक पीछे हटेगी।
दोनों शीर्ष नेताओं के बीच कोई सार्थक औपचारिक मुलाकात न होने से सामरिक हलकों में निराशा है। पिछले नवंबर में इंडोनेशिया में हुई G-20 शिखर बैठक के दौरान भी मोदी और शी के बीच कोई औपचारिक बैठक नहीं हो सकी थी। पल भर के लिए डिनर पर दोनों नेता मिले तो उसे भारतीय पक्ष ने तवज्जो नहीं दी, लेकिन कुछ महीनों बाद चीन ने इस बात का खुलासा किया कि मोदी और शी आपसी रिश्तों में स्थिरता लाने को लेकर सहमत हुए हैं। भारतीय पक्ष के मुताबिक, इसके लिए चीन को ही वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अप्रैल, 2020 वाली स्थिति बहाल करनी होगी और सेनाओं को पूरी तरह वहां से हटाना होगा। लेकिन चीन इस पर आनाकानी ही कर रहा है।
अप्रैल 2020 में चीनी सेना ने पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाकों- पैंगोंग झील-कैलाश चोटियां, गलवान, गोगरा-हॉटस्प्रिंग में गंभीर अतिक्रमण किया था।
इस वजह से दोनों देशों के सीमांत इलाकों में बड़े पैमाने पर सैन्य तैनाती चौथे साल में भी चल रही है, जिसे समाप्त करने के लिए दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर सैन्य के साथ राजनयिक दबाव भी बढ़ा दिया है।
चीनी घुसपैठ को वापस लेने के लिए दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच 19 दौर की बातचीत हो चुकी है। इसका आंशिक नतीजा यह निकला है कि चीन ने गलवान घाटी, पैंगोंग झील – कैलाश रेंज और गोगरा- हॉटस्प्रिंग्स के इलाके में अपनी सेनाएं अप्रैल, 2020 की यथास्थिति पर वापस कर ली है। लेकिन भारत को उस रेखा तक नहीं आने दिया, जिससे दोनों ओर से संपूर्ण यथास्थिति बहाल हो जाती।
चीन की इस शर्त को भारत ने मान लिया कि चीन की सेना अप्रैल, 2020 की स्थिति के अनुरूप जहां तक लौटी है उसके पीछे एक बफर जोन यानी तटस्थ इलाका बनाया जाए।
यह बफर जोन चूंकि वास्तविक नियंत्रण रेखा से पीछे भारतीय इलाके में ही बना, इसलिए इस इलाके पर भारत ने नियंत्रण खो दिया है। भारतीय सैनिक इस बफर जोन में कदम भी नहीं रख सकते। वहां भारतीय चरवाहे भी नहीं जा सकते।
देपसांग और डेमचाक में घुसपैठ के जो बाकी के इलाके बचे हैं, चीन उन्हें विरासत के मसले बता कर उन पर बातचीत करने से बच रहा है।
देपसांग का मैदानी इलाका दौलत बेग ओल्डी राजमार्ग के काफी निकट है जहां तक भारतीय सैनिक निरंतर गश्त करते रहे हैं। लेकिन चीनी सेना ने भारतीय सेना को गश्त के दौरान आगे बढ़ने से रोक दिया जिससे दोनों पक्षों में तनाव की स्थिति बनी हुई है।
समझौते के तौर पर सामरिक रूप से अहमियत रखने वाले भारतीय भूभाग देपसांग में भी बफर जोन बनाने की मांग चीन कर रहा है, जिससे भारत को काफी बड़े इलाके से अपना हक छोड़ना होगा।
भारत की शर्त है कि न केवल चीन की सेना भारतीय सैनिकों को वास्तविक नियंत्रण रेखा के इलाके में चौकसी करने दे, बल्कि डिसइंगेजमेंट यानी सेना पीछे हटाने की जो प्रक्रिया शुरू हुई थी, उसे पूरे पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाकों में बहाल करे।
भारत ने यह भी कहा है कि वह डिसइंगेजमेंट से ही संतुष्ट नहीं होगा। वह चाहता है कि सैन्य तैनाती में भी कमी लाई जाए, ताकि इसके बाद घुसपैठ वाले इलाकों को दोनों देशों की सेनाएं पूरी तरह खाली कर दें।
चीन इन शर्तों पर ध्यान नहीं देकर घुसपैठ के इलाके में 60 हजार से अधिक सैनिक इसलिए तैनात रखे हुए है कि मजबूरन भारत को भी अपने इलाकों की रक्षा के लिए इतने ही सैनिक और साजोसामान तैनात रखने पड़ें।
इन हालात में भारत चीन की यह बात कतई नहीं मान सकता कि सीमा पर मौजूदा हालात के बने रहते हुए संबंधों को सामान्य कहा जाए। भारत पर बंदूक ताने हुए चीन मीठी बातें करते रहना चाहता है। उसकी अपेक्षा है कि भारत चीनी सेना के दबाव में कराहते हुए भी उससे गले मिलता रहे।
अड़ियल रवैया
माना जा रहा था कि ब्रिक्स शिखर बैठक के मद्देनजर चीन राजनयिक दबाव महसूस करेगा और विश्व मंचों पर अपनी आक्रामक छवि मजबूत होने देने के बजाय भारत के साथ मसलों को सुलझा लेगा। लेकिन बहुपक्षीय शिखर बैठक के दौरान आमने-सामने होने के बावजूद राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अपना आक्रामक तेवर बनाए रखा। नतीजा यह कि जोहान्सबर्ग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके साथ औपचारिक बैठक टाल दी।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं