अखिलेश नकली अंबेडकरवादी, यादव ही नहीं कर रहे उनको वोट… मतदान कर BSP सुप्रीमो मायावती ने बोला हमलाSubscribe नोएडा : बिहार और उत्तर प्रदेश में कहावत है। हवा रातोंरात बदल जाती है। चर्चा चुनाव की हो रही है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election) 70 प्रतिशत लड़ा जा चुका है। 292 सीटों का फैसला ईवीएम में कैद है। यूपी चुनाव (UP Chunav Phase 6) के छठे और सातवें चरण की लड़ाई बची है। कुल सीटें 111 हैं। कल यानी तीन मार्च को दस जिलों की 57 सीटों पर वोट पड़ेंगे। सात मार्च को आखिरी फैसला नौ जिलों की 54 सीटों पर होगा। दोनों चरणों में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath Gorakhpur Seat) की सीट ही नहीं उनके प्रभाव की भी परीक्षा हो रही है। पर हवा किस तरफ चल रही है, इसका अंदाजा नहीं लग पा रहा। बहुमत लायक डबल सेंचुरी का दावा तो पांचवें चरण की शाम ठोक दिया गया। समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janata Party) दोनों ने। पर बेचैन दोनों में हैं। जाट लैंड, यादव लैंड, रूहेलखंड, बुंदेलखंड और अवध में हवा बदली-बदली सी दिखी। पूरब में पछुआ ही बहेगा कहना मुश्किल है। पूर्वांचल की तरफ हवा का प्रवाह बदलने के लिए दोनों पार्टियां बेचैन हैं। बेचैनी मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने बढ़ाई है।माना जा रहा है कि छठे और सातवें फेज में हवा का रुख बदलने की पहली कोशिश भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने की है। 23 फरवरी को एक इंटरव्यू के जरिए। इसमें उन्होंने कहा कि मायावती मजबूती से चुनाव लड़ रही हैं। जाटव के अलावा मुसलमान वोट भी मायावती के साथ ही जा रहे हैं। पांचवें फेज में अपना वोट डालने के बाद जब बसपा सुप्रीमो से पूछा गया तो उन्होंने इसे अमित शाह की महानता बताया। शुरुआती लड़ाई में शिथिल बसपा अचानक हवा बदलने की मशीन जैसी बन गई है। शुरुआती चरणों में दो बातें स्पष्ट थीं। बसपा लड़ाई में नहीं है। दूसरी, यूपी का मुसलमान पहली बार एकमुश्त वोट समाजवादी पार्टी को कर रहा है। बुंदेलखंड से कुछ ऐसी खबरें आईं कि बसपाा का कोर जाटव वोट उनके साथ है। अब बची हुई लड़ाई निर्णायक लग रही है। सपा-भाजपा खुद ही इसे साबित कर रही हैं। डबल सेंचुरी का दावा तो समर्थकों में भरोसा बनाए रखने भर के लिए है।UP Sixth Phase Election: ‘पुत्री धर्म’ या बगावत की राह पर स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा, क्या होगा अगला कदम?अब सवाल उठता है कि बसपा से सपा और भाजपा दोनों को उम्मीदें क्यों हैं? या फिर क्या मायावती मोहरा बन रही है? अखिलेश यादव संकेतों में और पार्टी के कई नेता खुलकर बोल चुके हैं कि कई सीटों पर बसपा के वोट भाजपा में ट्रांसफर कराए जा रहे हैं। इसका मकसद ये हो सकता है कि मुसलमान वोट को सातवें चरण की अंतिम लड़ाई तक सपा के पक्ष में एकजुट रखा जाए ताकि यादव-मुसलमान मिलकार 30 प्रतिशत में बट्टा न लगे। बाकी भरोसा पंचफोड़ना पर है- राष्ट्रीय लोक दल, महान दल, जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट), अपना दल (कमेरावादी) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी। पंचफोड़ना का जरा सा इस्तेमाल किया जाए तो जायके का मजा दोगुना हो जाता है।जिन सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी तैयारी कर रहे थे उन्हें टिकट नहीं दिया क्योंकि सपा की कार्यशैली से सभी वाकिफ हैं। वह मेरी फिक्र छोड़ दें यादव समाज का वोट उन्हें (समाजवादी पार्टी) मिल रहा है या नहीं मिल रहा है। इसकी फिक्र करें।मायावतीमायावती को लड़ाई में क्यों ला रही भाजपादूसरी तरफ अमित शाह जैसे कद्दावर नेता अगर मायावती को लड़ाई में वापस ला रहे हैं तो इसका क्या मकसद हो सकता है। जाहिर है भाजपा पिछले पांचों फेज में रही कसर बचे हुए दो फेज में पूरी करना चाहती है। इसलिए दो निशाने हैं। अगर 22 प्रतिशत दलितों में बसपा का कोर वोटर जाटव मायावती के साथ ही रहे और मुसलमान का वोट सपा के साथ बसपा में भी चला जाए तो पूर्वांचल की लड़ाई आसान हो जाएगी। भाजपा को लगता है कि दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य और अपना दल (कमेरावादी) उसके गैर ओबीसी वोट बैंक में कुछ न कुछ सेंध लगा सकते हैं। ये स्थिति खतरनाक साबित हो सकती है। छठे चरण की 57 सीटों में से 2017 में भाजपा और अपना दल ने 47 सीटें जीती थीं।UP Election: BJP सरकार में मुस्लिम समाज के लोगों से सौतेला और पक्षपात वाला रवैया रहा: मायावतीअब मायावती पर आते हैं। चौथे चरण से ज्यादा सक्रिय हुईं बसपा सुप्रीमो ने अखिलेश यादव के नहले पर दहला फेंकते हुए कहा कि सपा ने मसुलमानों से गद्दारी की है। वो कहती हैं, जिन सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी तैयारी कर रहे थे उन्हें टिकट नहीं दिया क्योंकि सपा की कार्यशैली से सभी वाकिफ हैं। वह मेरी फिक्र छोड़ दें यादव समाज का वोट उन्हें (समाजवादी पार्टी) मिल रहा है या नहीं मिल रहा है। इसकी फिक्र करें।अब टिकट बंटवारे को देखें तो साफ लगता है कि मायावती ने अखिलेश की दुखती रग पर हाथ रख दिया है। इसकी शुरुआत तो बसपा ने पहले चरण से ही कर दी थी। जाटलैंड की कई सीटों पर टिकट के लिए सपा से आस लगाए नेताओं को उन्होंने टिकट थमा दिया। मायावती ने अवध और पूर्वांचल में भी ये रणनीति अपनाई है। अयोध्या की रूदौली से दो बार सपा विधायक रहे अब्बास अली रूश्दी इस बार बसपा से लड़े। टांडा से शबाना खातून भी पहले सपा की दावेदार थीं। मड़ियाहूं में श्रद्धा यादव को टिकट देकर मायावती ने यादव वोट काटने की कोशिश की है। वहीं फाजिलनगर से सपा के स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ बसपा ने इलियास अंसारी को टिकट थमा दिया है जो अखिलेश के करीबी रहे हैं। इस सीट पर क्या हवा चल रही है ये लगभग साफ है क्योंकि स्वामी की बेटी पर भाजपा की सांसद संघमित्रा गौतम ने अपनी ही पार्टी पर प्रहार करते हुए पिता को जिताने की भावुक अपील कर दी है। इसी तरह जहूराबाद में ओम प्रकाश राजभर के खिलाफ मायावती ने शादाब फातिमा को टिकट दे दिया जो सपा सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। इस समीकरण के साथ मायावती ने नया चोट अखिलेश यादव पर किया है। 28 फरवरी को आजमगढ़ की रैली में उन्होंने अखिलेश पर जमकर प्रहार किए। अखिलेश आजमगढ़ से ही सांसद हैं पर विधानसभा चुनाव करहल से लड़े। इस पर मायावती ने उन्हें भगोड़ा कह दिया। साथ ही दावा किया बसपा के सारे उम्मीदवार जमकर चुनाव मैदान में खड़े हैं लेकिन अखिलेश की पार्टी भाजपा की बी टीम बन गई है। मायावती ने दावा किया कि सपा के लोग ये बसपा को हराने के लिए अपने समर्थकों से भाजपा को वोट देने की अपील कर रहे हैं। हालांकि उनकी आवाज़ कितनी सुनी जा रही है कहना मुश्किल है। इस रैली में भी साउंड सिस्टम खराब हो जाने के कारण आधे समर्थक भाषण के दौरान ही निकल चुके थे।अब सवाल उठता है कि समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी में से कौन भाजपा को वोट ट्रांसफर कर रहा है। आरोप तो दोनों ही एक-दूसरे पर लगा रहे हैं। पर, यूपी की जनता सब जानती है। उसे लाउडस्पीकर जरूरत नहीं है।