लेखकः मुकुल व्यासवैज्ञानिकों का कहना है कि तमाम देशों को कोविड-19 से सबक लेकर सार्वजनिक भवनों की प्लानिंग में वेंटिलेशन पर मुख्य जोर देना होगा और सरकारों को इस संबंध में बनने वाले नियमों को सख्ती से लागू करना पड़ेगा। वैज्ञानिकों ने 19वीं सदी में लंदन में फैले हैजे की महामारी का उदाहरण दिया।
लंदन में बार-बार हैजा फैलने के कारणों का पता लगाने के लिए एडविन चैडविक नाम के एक युवा वकील और समाज सुधारक ने लंदन की सफाई व्यवस्था की विस्तृत छानबीन की। चैडविक ने 1842 में अपनी ऐतिहासिक रिपोर्ट में लंदन की सफाई व्यवस्था में कई सुधार की सिफारिश की और सरकार से आग्रह किया कि वह शहर को साफ पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करे, निकासी व्यवस्था में सुधार करे और घरों-सड़कों के कचरा उठाने का जिम्मा स्थानीय निकायों को सौंपे। इन तीन सिफारिशों ने दुनिया भर के शहरों को साफ-सफाई के नियम बनाने के लिए प्रेरित किया।

साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में 39 वैज्ञानिकों ने कहा है कि दुनिया में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जितने भी नियम बनाए गए हैं, उनमें सबसे ज्यादा जोर सैनिटेशन, पेयजल और खाद्य सुरक्षा के मानकों पर दिया गया है। मगर इनमें भवनों के भीतर हवा में मौजूद रोगाणुओं से मानव स्वास्थ्य को होने वाले खतरों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स में एनवायरन्मेंटल इंजीनियरिंग फॉर बिल्डिंग्स की प्रफेसर कैथ नोक्स ने कहा कि लोग अक्सर भवनों के अंदर फ्लू या कोविड की चपेट में आ जाते हैं। अगर भवन निर्माण के नियमों में संक्रामक रोगों के प्रसार की भूमिका को महत्व दिया जाए, तो हम सभी प्रकार के संक्रामक रोगों से अपने स्वास्थ्य का बचाव कर सकते हैं।
हार्वर्ड में हेल्दी बिल्डिंग प्रोग्राम के निदेशक जोसेफ एलन ने अपनी पुस्तक ‘हेल्दी बिल्डिंग्स’ में लिखा है कि अमेरिका और यूरोप के लोग अपना 90 प्रतिशत वक्त घरों में ही व्यतीत करते हैं। इसके बावजूद घरों के भीतर हवा की क्वॉलिटी का कोई ऐसा मानक नहीं है जो अंतरराष्ट्रीय रूप से स्वीकार्य हो। एलन ने कहा कि अमेरिका के ऑक्यूपेशनल हेल्थ सेफ्टी एडमिनिस्ट्रेशन ने घरों के भीतर प्रदूषक तत्वों से बचाव के बारे में कुछ नियम जरूर बनाए थे, लेकिन ये पुराने हो चुके हैं और लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए अपर्याप्त हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वेंटिलेशन के लिए जो रोडमैप बनाया है, उसमें भी हवा के जरिए फैलने वाले सांस के संक्रमण के खतरों को रेखांकित नहीं किया है। कोविड पैंडेमिक के दौरान हमने देखा है कि सांस से निकलने वाले रोगाणु अस्पतालों, स्कूलों और रेस्तरांओं जैसी सार्वजनिक इमारतों में तेजी से फैलते हैं। इससे जाहिर है कि जिस तरह से इन इमारतों को डिजाइन करके बनाया जाता है, उससे रोग का प्रसार प्रभावित होता है।
वायरस का फैलाव रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनने के साथ समुचित वेंटिलेशन भी एक कारगर उपाय है। लेकिन वेंटिलेशन संबंधी उपायों को लागू करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण होगा। सिर्फ वेंटिलेशन सुधारने के निर्देश देने से काम नहीं चलेगा, लोगों का उचित मार्गदर्शन भी करना होगा। इसके लिए हर इमारत के डिजाइन नियम बदलने की जरूरत नहीं है। हमें उन भवनों की पहचान करनी पड़ेगी, जहां रोगाणुओं के प्रसार का खतरा सबसे ज्यादा है। मसलन जिम जैसी जगहों पर लोग सांस के जरिए ज्यादा वायरस छोड़ सकते हैं या ग्रहण कर सकते हैं। ऐसी जगहों पर वेंटिलेशन व्यवस्था को सुधारना पड़ेगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि वेंटिलेशन सिस्टम की लागत को आसानी से वहन किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भवन के अंदर प्रत्येक स्थान को ‘जैव-सुरक्षित क्षेत्र’ बनाने की जरूरत नहीं है।
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वेंटिलेशन व्यवस्था में सुधार करने से सार्वजनिक भवनों के निर्माण की लागत में एक प्रतिशत से भी कम की वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि उपलब्ध प्रमाण यह कहते हैं कि हवा से फैलने वाले संक्रमणों को नियंत्रित करने की लागत बीमारी से निपटने पर होने वाले खर्च से कम बैठेगी। संक्रमण को रोकने में वेंटिलेशन की भूमिका को समझते हुए भारत सरकार ने भी कोविड के बारे में अपनी नई अडवाइजरी में घरों और ऑफिसों में स्वच्छ हवा की आवाजाही बढ़ाने पर जोर दिया है।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं