Chandrayaan 3 : जल गई लैंडर विक्रम के दिमाग की बत्ती! आगे कैसे काम करना है, कहां उतरना है, खुद तय करेगा – chandrayaan 3 lander vikram is now in automatic mode and it will decide what to do based on its own intelligence

नई दिल्ली : चंद्रयान 3 का लैंडर विक्रम (Chandrayaan 3 Lander Vikram) अब चांद के काफी नजदीक चक्कर लगा रहा है। शुक्रवार को शाम 4 बजे उसकी रफ्तार को कम करने की ‘डिबूस्टिंग’ प्रक्रिया कामयाब रही। एक दिन पहले ही लैंडर अपने प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग हुआ था। अभी लैंडर विक्रम चांद की जिस कक्षा में है वह उसकी सतह से सबसे नजदीक होने पर 113 किलोमीटर और सबसे दूर रहने पर 157 किलोमीटर की दूरी पर होगा। सबसे खास बात ये है कि अब लैंडर ऑटोमेटेड मोड में है। दूसरे शब्दों में कहें तो उसके दिमाग की बत्ती जल चुकी है। अब वह डेटा और अपने इंटेलिजेंस के आधार पर खुद फैसला करेगा कि उसे कैसे काम करना है, कहां उतरना है, कैसे उतरना है। इसमें उसे अब ग्राउंड स्टेशन से किसी भी तरह की मदद की दरकार नहीं होगी।इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के पूर्व चेयरमैन के. सिवन ने एनडीटीवी से बातचीत में बताया कि डिबूस्टिंग की प्रकिया के बाद लैंडर ‘ऑटोमैटिक मोड’ में होगा। उन्होंने कहा, ‘जमीन से किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं है।’ पूर्व इसरो चीफ ने कहा कि लैंडर में लगे सेंसर और दूसरे सिस्टम की मदद से वह अपने इंटेलिजेंस के मुताबिक काम करेगा। सिवन ने कहा कि चांद की सतह पर उतरते वक्त लैंडर की रफ्तार को 2 किलोमीटर प्रति सेकंड से घटाकर बिल्कुल शून्य करने की जरूरत होगी। उन्होंने कहा, ‘वह एक बहुत ही नाजुक और महत्वपूर्ण प्रक्रिया होगी।’लैंडर विक्रम की एक और आखिरी डिबूस्टिंग यानी गति कम करने प्रक्रिया 20 अगस्त को देर रात 2 बजे के करीब होनी है। तब ये अपनी कक्षा बदलेगा और चंद्रमा की सतह के काफी करीब पहुंच जाएगा। 23 अगस्त को उसके चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग की उम्मीद है।के. सिवन ने बताया कि चांद की सतह पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग के करीब 2 घंटे बाद जब वहां का धूल छंट जाएगा, तब विक्रम के भीतर से रोवर ‘प्रज्ञान’ बाहर निकलेगा। प्रज्ञान चांद की सतह पर घूमकर स्टडी करेगा और डेटा इकट्ठा करेगा। सिवन ने बताया कि चंद्रयान 2 मिशन की सभी गलतियों को इस बार दूर किया गया है और सिस्टम को अपग्रेड किया गया है। प्रोपल्शन, गाइडेंस और कंट्रोल सिस्टम को अपग्रेड किया गया है। कुछ नई चीजें जोड़ी गई हैं जो चंद्रयान 2 में नहीं थीं।चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को लॉन्च किया गया था। इसने 5 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया था। लैंडर विक्रम अब चांद के नजदीक की कक्षा में है। उसी के भीतर रोवर प्रज्ञान है। अभी लैंडर चांद की सतह के समानांतर चल रहा है यानी हॉरिजेंटल। लैंडिंग के लिए उसे सीधे चांद की सतह की तरफ बढ़ना होगा, लंबवत यानी ऊर्ध्वाधर दिशा में। 23 अगस्त को उसकी हॉरिजेंटल डायरेक्शन को वर्टिकल डायरेक्शन में बदला जाएगा। चंद्रयान 2 से भेजे लैंडर की लैंडिंग के वक्त इसी प्रक्रिया के दौरान समस्या हुई थी। यानी यह प्रक्रिया बहुत ही नाजुक और महत्वपूर्ण है।हाल ही में इसरो चीफ एस. सोमनाथ ने इस प्रक्रिया की अहमियत के बारे में बताया था। उन्होंने कहा था कि लैंडिंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा लैंडर को 30 किलोमीटर की ऊंचाई से अंतिम लैंडिंग तक लाने की प्रक्रिया है। इसरो चीफ के मुताबिक, यान को क्षैतिज से ऊर्ध्वाधर दिशा में स्थानांतरित करने की क्षमता वह ‘प्रक्रिया है जहां हमें अपनी काबिलियत दिखानी होगी।’इसरो अध्यक्ष सोमनाथ ने कहा था, ‘लैंडिंग प्रक्रिया की शुरुआत में गति तकरीबन 1.68 किलोमीटर प्रति सेकंड है, लेकिन यह गति चंद्रमा की सतह के क्षैतिज (हॉरिजेंटल या समानांतर ) है। यहां चंद्रयान-3 लगभग 90 डिग्री झुका हुआ है, इसे लंबवत (Verticle) करना होगा। क्षैतिज से ऊर्ध्वाधर दिशा में बदलने की यह पूरी प्रक्रिया गणितीय रूप से एक बहुत ही दिलचस्प गणना है। हमने कई बार इस प्रक्रिया को दोहराया है। यहीं पर हमें पिछली बार (चंद्रयान-2) समस्या हुई थी।’