संकट के समय क्या है तैयारी24 अगस्त यानी कल इसरो लैंडिंग के लिए दूसरा प्रयास करेगा।लैंडिंग के लिए आगे विकल्प मध्य-सितंबर का भी है जब अगली बार चंद्रमा पर सूर्योदय होगा।इस दौरान लैंडर मौजूदा ऑर्बिट 25 किमी x 134 किमी में घूमता रहेगा।हाल में इसरो के अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के डायरेक्टर नीलेश देसाई ने कहा था कि 23 अगस्त को लैंडर मॉड्यूल में कोई असामान्यता पाई जाती है तो इसकी लैंडिंग 27 अगस्त तक के लिए टाली जा सकती है। आज का अपडेट यह है कि सभी मापदंडों की जांच करने और लैंडिंग का फैसला करने के बाद इसरो बेंगलुरु के पास के बयालालू में अपने स्पेस नेटवर्क से कुछ घंटे पहले सभी आवश्यक कमांड एलएम पर अपलोड करेगा।इसरो ने बताया है कि लैंडिंग के लिए करीब 30 किमी की ऊंचाई पर लैंडर पावर ब्रेकिंग स्टेज में प्रवेश करेगा। उसके चार थ्रस्टर इंजन को ‘रेट्रो फायर’ करके स्पीड को धीरे-धीरे कम करके चंद्रमा की सतह तक पहुंचना शुरू करेगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि लैंडर क्रैश न हो क्योंकि इसमें चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण भी काम करता है। लगभग 6.8 किमी की ऊंचाई पर पहुंचने पर, केवल दो इंजन का इस्तेमाल किया जाएगा। बाकी दो को बंद कर दिया जाएगा, जिसका उद्देश्य लैंडर को ‘रिवर्स थ्रस्ट’ देना होता है। 100 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचने पर लैंडर अपने सेंसर और कैमरों से चांद की सतह को स्कैन करेगा जिससे जांच जा सके कि कोई दिक्कत तो नहीं है। इसके बाद वह सॉफ्ट-लैंडिंग करने के लिए नीचे उतरना शुरू करेगा।इसरो अध्यक्ष सोमनाथ ने हाल में कहा कि लैंडिंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा लैंडर के वेग को 30 किमी की ऊंचाई से अंतिम लैंडिंग तक कम करने की प्रक्रिया और यान को क्षैतिज से लंबवत करने की क्षमता होगी। सोमनाथ ने कहा है कि जब तक सूरज चमकता रहेगा तब तक सभी प्रणालियां काम करती रहेंगी। जिस क्षण सूर्य डूबेगा, घोर अंधकार होगा, तापमान शून्य से 180 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाएगा, तो प्रणाली का बने रहना संभव नहीं है। अगर आगे भी वह बना रहता है तो हमें खुश होना चाहिए। तब हम एक बार फिर सिस्टम पर काम कर पाएंगे। हम आशा करते हैं कि ऐसा ही होगा।