नई दिल्ली: भारत के लिए आज बड़ा दिन है। चंद्रयान-3 का लैंडर शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला है। देशवासियों के साथ-साथ पूरी दुनिया इस इवेंट को टकटकी लगाए देखती रहेगी। रूस का यान पिछले दिनों क्रैश हो गया था, ऐसे में दुनिया को इसरो से काफी उम्मीदें हैं। खासबात यह है कि चंद्रयान की लैंडिंग में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) भी इसरो की मदद कर रहे हैं। जी हां, धरती से 3.84 लाख किमी के चांद के सफर के दौरान अपने यान की ट्रैकिंग में दोनों एजेंसियां भारत को सहयोग कर रही हैं। आज भी लैंडर से संपर्क साधने के दौरान नासा भारत की महत्वपूर्ण मदद करेगा।दरअसल नासा के पास अपना विशाल स्पेस नेटवर्क है। उसने दुनिया के अलग-अलग कोनों में बड़े रेडियो एंटीना लगा रखे हैं। ESA के पास अपना इंटरनेशनल सैटलाइट ट्रैकिंग नेटवर्क है, जिसे एस्ट्रैक कहा जाता है। एस्ट्रैक ग्राउंड स्टेशनों की एक वैश्विक प्रणाली है जो कक्षा में उपग्रहों और यूरोपीय अंतरिक्ष संचालन केंद्र डार्मस्टैड, जर्मनी के बीच संपर्क प्रदान करती है। कोर एस्ट्रैक नेटवर्क में सात देशों में सात स्टेशन शामिल हैं।चंद्रयान-3 की लैंडिंग और रोवर ऑपरेशन के बारे में ईएसए ने कहा, ‘चंद्रमा की सतह के पूरे ऑपरेशन के दौरान लैंडर का सपोर्ट किया जाएगा, जिससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि रोवर से मिल रहा डेटा भारत में इसरो के साथ सुरक्षित रूप से पहुंचे।’ इसरो का कर्नाटक के एक गांव ब्यालालू में अंतरिक्ष ट्रैकिंग स्टेशन है। लोगों को इसके बारे में कम जानकारी है। यहां से इसरो अपने दूर के अंतरिक्ष यान से कनेक्टेड रहता है। इसकी मदद से वैज्ञानिक डेटा का पता लगाने, ट्रैक करने, कमांड करने और जानकारी हासिल की जाती है। दूसरी अंतरिक्ष एजेंसियों से सहयोग तब काम आता है जब इसरो के ऑपरेटरों को अंतरिक्ष यान को ट्रैक करने या कमांड करने की आवश्यकता होती है जब वह इस एंटीना के कवरेज क्षेत्र से बाहर होता है।चंद्रयान-2 मिशन में रूस ने दिया था भारत को ‘धोखा’, ISRO को 7 साल का करना पड़ा था इंतजार, पूरी कहानीदुनियाभर में नए विशाल एंटीना और नियंत्रण स्टेशनों का निर्माण बहुत महंगा है इसलिए, दुनियाभर की कई अंतरिक्ष एजेंसियों और वाणिज्यिक कंपनियों की तरह, इसरो भी हर समय चंद्रयान-3 से जुड़े रहने के लिए नासा और ईएसए का सहयोग चाहता है।