हाइलाइट्स:देश में वैक्सीन लगाने वाले व्यस्कों की अनुमानित आबादी 86.3 करोड़ अब तक 30 करोड़ से अधिक कोरोना वैक्सीन की डोज दी जा चुकी हैचीन में 104 करोड़, अमेरिका में 31.8 करोड़ लोगों को लग चुकी है वैक्सीनतापस परीदा और शांभवी शर्माकोरोना की दूसरी लहर के मंद पड़ने और तीसरी लहर की आशंका के बीच वैक्सीनेशन काफी अहम है। महामारी से बचाव में कोरोना वैक्सीन को ही अहम हथियार माना जा रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश में अब तक कोविड-19 रोधी टीके की 30 करोड़ से अधिक खुराक दी जा चुकी हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कब तक पूरे देश की व्यस्क आबादी को कोरोना वैक्सीन लग पाएगी। सरकार ने इस साल के अंत तक सभी को कोरोना वैक्सीन लगाने की बात कही है। आइए जानते हैं देश में कोरोना वैक्सीनेशन की स्थिति और इससे जुड़े अहम सवालों के बारे में…सवाल : भारत की पूरी वयस्क आबादी के वैक्सीनेशन करने के लिए विभिन्न परिदृश्य क्या हैं?जवाब : अभी से भारत को पूरी तरह से वैक्सीन कवरेज के लिए 143 करोड़ वैक्सीन शॉट्स की जरूरत है – यानी, सभी के लिए दो शॉट। देश में वैक्सीन लगाने वाले व्यस्कों की अनुमानित आबादी 86.3 करोड़ है। यदि हम सप्ताह के हर दिन टीकाकरण करते हैं, और यहां से प्रतिदिन 80 लाख लोग को वैक्सीन लगाई जाती है तो, दिसंबर 2021 तक पूरी वयस्क आबादी को कवर किया जा सकता है। यदि प्रति दिन 50 लाख वैक्सीन लगाई जाए तो पूरी तरह से वैक्सीन कवरेज मार्च 2022 तक पूरा हो सकेगा। यदि इस साल अक्टूबर तक पूरी आबादी को वैक्सीन लगानी है तो रोजाना 1 करोड़ लोगों का वैक्सीनेशन करना होगा।सवाल : वैक्सीन की उपलब्धता के बारे में क्या स्थिति है?जवाब : सरकार के अनुसार स्वदेशी टीकों की कुल अनुमानित उत्पादन उपलब्धता भारत की वयस्क आबादी के टीकाकरण के लिए आवश्यक खुराक का 91% है। नवीनतम अनुमान बताते हैं कि अभी भी राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों के पास 1.92 करोड़ से अधिक कोविड वैक्सीन डोज उपलब्ध हैं। लगभग 39,07,310 वैक्सीन खुराक पाइपलाइन में हैं।सवाल : हर्ड इम्युनिटी तक पहुंचने में कितना समय लगेगा? विभिन्न देशों के अनुभव के आधार पर क्या यह कहा जा सकता है कि कुछ में पहले ही हर्ड इम्यूनिटी पहुंच चुकी हैं?जवाब : हर्ड इम्युनिटी संक्रामक बीमारी से एक प्रकार की अप्रत्यक्ष सुरक्षा है। यह लोगों में या तो वैक्सीनेशन या पिछले संक्रमण के माध्यम से होती है। खसरा और पोलियो जैसी बीमारियों के लिए हर्ड इम्युनिटी क्रमशः 95% और 80% हासिल हुई थी। कोरोनवायरस को लेकर कई एक्सपर्ट इस बात से सहमत हैं कि 70% आबादी तथाकथित हर्ड इम्युनिटी विकसित होने से पहले या तो वैक्सीन लगवा चुकी होगी या संक्रमित हो चुकी होगी। माल्टा यूरोपीय यूनियन का पहला ऐसा देश था जहां 70% वयस्क आबादी कम से कम एक शॉट के साथ हर्ड इम्युनिटी हासिल हो गई थी। यदि देश में रोजाना 50 लाख वैक्सीन लगे तो भी भारत सितंबर के मध्य तक कम से कम एक खुराक के साथ अपनी 70% वयस्क आबादी का वैक्सीनेशन कर सकता है।सवाल : दुनिया के अन्य देशों में वैक्सीनेशन का क्या ट्रेंड है?जवाब : भारत में विश्व की जनसंख्या का 17% आबादी है। भारत के 10 प्रमुख राज्य विश्व की जनसंख्या का 12% हैं। टीकाकरण के मामले में छोटे और अमीर देशों ने निश्चित रूप से बेहतर प्रदर्शन किया है। इसकी वजह है कि उन्हें अपने पर्याप्त संसाधनों को एक छोटी आबादी के बीच वितरित करना था। हालांकि, अगर हम मैक्रो डेटा को देखें, तो भारत पहले से ही कुल टीकाकरण के मामले में दुनिया के शीर्ष तीन देशों में शामिल है। 22 जून, 2021 तक चीन में कुल टीकाकरण 104.9 करोड़ था, जबकि अमेरिका के लिए यह 31.8 करोड़ और भारत के लिए 29.4 करोड़ था।सवाल : कोरोना की तीसरी लहर कब आएगी?जवाब : इसकी भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल है। अंतर्राष्ट्रीय अनुभव बताते हैं कि तीसरी लहर आमतौर पर कम घातक होती है, लेकिन मामलों की संख्या अभी भी अधिक हो सकती है। क्रॉस-कंट्री डेटा के आधार पर, तीसरी लहर दूसरी लहर के निम्नतम स्तर से औसतन 40 दिनों में शुरू होती है। तीसरी लहर की अवधि लगभग 90 दिनों की होती है। हालांकि, अगर हम प्रति दिन 50 लाख वैक्सीन की स्पीड से भी वैक्सीनेशन करने में सक्षम हैं, तो हम संभावित तीसरी लहर के प्रकोप से भी बच सकते हैं।सवाल : भारत फिर कब पूरी तरह से अनलॉक हो सकता है?जवाब : कोरोना से बचाव में वैक्सीनेशन काफी अहम है। इसके अलावा, सार्वजनिक सेवा घोषणाओं के माध्यम से कोविड-उपयुक्त व्यवहार को मजबूत करने की सरकार की रणनीति कमजोर नहीं होनी चाहिए। लोगों के दिमाग में कोरोना के रिस्क को जिंदा रखना बेहद जरूरी होगा, ताकि आगे चलकर अर्थव्यवस्था खुली रहे। लॉकडाउन पहले ही लंबे समय से चल रहा है।सवाल : बच्चों के बारे में क्या है?जवाब : बच्चों के लिए वैक्सीन का ट्रायल पहले से ही चल रहा है। अच्छी खबर यह है कि सीरोलॉजिकल सर्वेक्षण बताते हैं कि वयस्कों और बच्चों के बीच सेरोपोसिटिविटी काफी अलग नहीं है। ऐसे में बच्चों पर इसका ज्यादा असर होने की संभावना नहीं है।