Date and Timing of Chandrayaan-3 soft landing on Moon Surface

नई दिल्ली: हमारा चंद्रयान-3 दो दिन बाद चंद्रमा की सतह पर उतरकर इतिहास रचने वाला है। इससे पहले रूस को इसी प्रयास में मायूसी हाथ लगी है। रूस का ताजा अंतरिक्ष यान लूना-25 चांद पर लैंड करते ही क्रैश हो गया। रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस ने रविवार को यह जानकारी दी। उसने कहा कि अंतरिक्ष यान को चंद्रमा पर उतारने का उसका पहला आधुनिक प्रयास विफल रहा है और अंतरिक्ष यान चंद्रमा की सतह पर हादसे का शिकार हो गया है। इस विफलता से एक बार फिर चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान की सॉफ्ट लैंडिंग में शामिल जोखिम उजागर हुआ है। हालांकि चंद्रमा पर 20 से अधिक बार अंतरिक्ष यान की सफल लैंडिंग हुई है। छह बार तो इंसानों ने भी चंद्रमा पर कदम रखा है, लेकिन अब तक मून मिशन की फूलप्रुफ तकनीक हासिल नहीं हो सकी है। पिछले 10 वर्षों में चीन को मिली तीन बार मिली सफलता को छोड़कर चंद्रमा पर सभी सफल लैंडिंग 1966 और 1976 के दशक के भीतर हुए थे।15 मिनट का वो आतंक2019 में चंद्रयान 2 मिशन से पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के तत्कालीन अध्यक्ष के सिवन ने लैंडिंग के अंतिम चरण को ’15 मिनट का आतंक’ कहा था। चंद्रमा की कक्षा से चंद्रमा की सतह तक उतरने तक का सफर कितना कठिन है, सिवन की यह टिप्पणी से समझा जा सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि यह मून मिशन का सबसे कठिन हिस्सा है। पिछले चार वर्षों में चार देशों- भारत, इजराइल, जापान और अब रूस के सरकारी और निजी अंतरिक्ष एजेंसियों ने अपने अंतरिक्ष यान को चंद्रमा पर उतारने की कोशिश की है और सभी असफल रही हैं। इनमें से प्रत्येक मिशन को अंतिम चरण में लैंडिंग प्रोसेस के दौरान समस्याएं हुईं और सभी यान चंद्रमा की सतह पर दुर्घटना के शिकार हुए।फेल हो गया रूस का लूना-25, कहां हुई रोबोट से गलती जो चांद पर हो गई टक्‍कर, जानें मिशन के बारे में सबकुछअसफल देशों में सिर्फ भारत ने जारी रखे प्रयासलूना 25 को लैंड करने में क्या समस्या हुई, इसकी सटीक जानकारी अभी सामने नहीं है। हालांकि रोस्कोस्मोस के बयान में कहा गया है कि प्री-लैंडिंग ऑर्बिट में जाते समय अंतरिक्ष यान की गति में बदलाव अपेक्षा के मुताबिक नहीं था। इसरो के चंद्रयान-2, इजरायल के बेरेशीत और जापान के हकुतो आर भी अलग-अलग खराबी के कारण उचित गति हासिल नहीं कर सके थे। चीन इस मामले में एकमात्र अपवाद रहा है, जिसने 2013 में चांग’ई-3 के साथ अपनी पहली ही कोशिश में सफलतापूर्वक लैंडिंग की थी। इसने 2019 में चांग’ई-4 और 2020 में सैंपल रिटर्न मिशन चांग’ई-5 के साथ इस उपलब्धि को दोहराया है। चांद पर यान उतारने की कोशिश में असफल रहे देशों में भारत एकमात्र ऐसा देश है जो दूसरे प्रयास के लिए तैयार है। अपनी पिछली विफलता से सीखते हुए इसरो ने चंद्रयान 3 में कई सुरक्षा सुविधाएं जोड़ी हैं।Luna 25 Russia: रूस के लूना-25 अंतरिक्ष यान को ये क्या हुआ? चंद्रमा पर लैंडिंग के ठीक पहले दे दी बड़ी टेंशनपहले की लैंडिंग के सबकयह अजीब लग सकता है कि आधी सदी पहले की तकनीकी क्षमता आज भी कुछ सबसे उन्नत अंतरिक्ष एजेंसियों को परेशान रही है। हालांकि, तब भी लैंडिंग तकनीक पूरी तरह से हासिल नहीं हुई थी। 1963 और 1976 के बीच लैंडिंग के 42 प्रयासों में से केवल 21 सफल हुए यानी 50 प्रतिशत प्रयासों को ही सफलता मिली। उस समय चंद्रमा पर जाने के मकसद बहुत अलग थे। तब मुख्य रूप से शीत युद्ध की प्रतिद्वंद्विता और जियो-पॉलिटिक्स का फायदा उठाने की इच्छा हुआ करती थी। इन्हीं वजहों से अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ (यूएसएसआर) के बीच मून मिशन भेजने की होड़ लगी थी। ये खतरनाक, बेहद महंगे और ऊर्जा खपत के लिहाज से बहुत अनुपयुक्त थे। लेकिन इनमें से कुछ बहुत सफल रहे। कुछ ने ऐसे कारनामे कर दिखाए जो कुछ साल पहले तक वैज्ञानिक कल्पनाएं ही हुआ करती थीं। चंद्रयान-1 के पीछे के एक प्रमुख व्यक्ति मलयस्वामी अन्नादुरई ने कहा, ‘उन चंद्र मिशनों को भेजने में जिस तरह का जोखिम लिया गया था, अब बिल्कुल नहीं लिया जा सकता। उन मिशनों पर किए गए खर्च को भी अब सही नहीं ठहराया जा सकता है।’लूना-25 क्रैश के बाद भी रूस ने नहीं छोड़ी उम्‍मीद, सात साल में लॉन्‍च होंगे 3 मिशन, एक में साथी बनेगा चीनआधुनिक तकनीक के बावजूद मायूसी?मौजूदा चंद्र मिशनों के लिए उपयोग किए जा रहे तकनीक भी बहुत अलग हैं। वे सुरक्षित हैं, सस्ते हैं और अधिक ईंधन कुशल (Energy Efficient) हैं। हालांकि, इसका मतलब यह भी है कि इन्हें 1960 और 1970 के दशक में उपयोग किए जाने वाले उपकरणों से नहीं जोड़ा जा सकता है और इनका परीक्षण अब भी चल रहा है। यही कारण है कि चंद्रमा पर छह मानवयुक्त मिशनों को उतारने वाले अमेरिका ने ऑर्बिटर्स को भेजकर मौजूदा चंद्र मिशनों में लगभग शून्य से शुरुआत की है। इसका आर्टेमिस प्रोग्राम भी मानव को भेजकर शुरू नहीं हुआ है। चालक दल का मिशन आर्टेमिस-3 मिशन पर जाएगा।लूना-25 क्रैश के बाद दुनिया को चंद्रयान से उम्मीदें, चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा तो स्पेस में सुपर पावर बन जाएगा भारतलूना मिशनों का भविष्यलूना 25 से स्पष्ट है कि रूस की चंद्रमा में रुचि फिर से जगी है। 50 साल पहले तत्कालीन सोवियत संघ ने चंद्रमा तक पहुंचने के लिए जो लूना मिशन शुरू किया था, वही सिलसिला जारी रखने के लिए ताजातरीन मिशन को लून 25 नाम दिया गया। 1976 में लॉन्च किया गया लूना 24 चंद्रमा की सतह पर उतरने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। फिर रूस का मून मिशन अचानक रुक गया और लगभग दो दशकों तक इस दिशा में कोई हलचल नहीं हुई। रूस ने पहले ही घोषणा कर दी है कि लूना 25 के बाद और भी चंद्र मिशन होंगे। इसी दशक में लूना सीरीज में कम-से-कम तीन अंतरिक्ष यान चांद पर भेजे जाने की योजना है।