नई दिल्ली: राजस्थान की राजधानी जयपुर में आयोजित ब्राह्मण महापंचायत (Brahman Mahapanchayat) में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त (Free Temple) किए जाने का आह्वान हुआ। इस महापंचायत में केंद्रीय मंत्री अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) भी शामिल हुए। रेल मंत्री ने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने के अभियान को मजबूत करने की अपील की। देश में मंदिर मुक्ति की मांग दशकों से हो रही है, लेकिन सरकार इस मांग के उलट ज्यादा से ज्यादा मंदिरों को अपने कब्जे में ले रही है। इसे धर्म के आधार पर सरकारी भेदभाव की संज्ञा देकर संविधान की मूल भावना का उल्लंघन बताया जाता है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका के जरिए मंदिर मुक्ति की मांगइसी दलील पर सुप्रीम कोर्ट में भी एक के बाद एक, कई याचिकाएं दायर हो चुकी हैं। कुछ याचिकाओं में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करके हिंदुओं के साथ धार्मिक भेदभाव को खत्म करने की अपील की गई है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में दो विकल्प रखे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार तुरंत मंदिरों से अपना नियंत्रण छोड़े या फिर मस्जिदों, दरगाहों और गिरिजाघरों पर भी अपना कब्जा जमाए। सामाजिक महत्व के कई प्रमुख विषयों पर याचिकाएं दाखिल करने वाले अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि इन दोनों ही स्थिति में धार्मिक आधार पर हो रहा भेदभाव खत्म हो जाएगा। उपाध्याय सामाजिक महत्व के विभिन्न विषयों पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करते रहते हैं। देश में मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण का इतिहास अंग्रेजों के जमाने से जाकर जुड़ता है। यह परंपरा आजादी के बाद भी जारी रही और बकायदा कानून बनाकर मंदिरों पर नियंत्रण जारी रखा। तमिलनाडु में अभी हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ दान बंदोबस्त कानून (HR&CE Act), 1959 के तहत करीब 45 हजार मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में संचालित किया जा रहा है। इनमें 17 जैन मंदिर भी शामिल हैं। इसके खिलाफ साधु-संतों से लेकर सामाजिक-धार्मिक संगठन तक आवाज उठाते रहे हैं। दशकों पुराने मंदिर मुक्ति अभियान के तहत सामाजिक स्तर पर चौतरफा काम हो रहा है। विश्व हिंदू परिषद से लेकर संतों के कई संगठन इस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं।धर्म बचाइए, मंदिरों को सरकार के कब्जे से मुक्त कराइए… रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की ब्राह्मण महापंचायत में अपीलबीजेपी को भी घेरा लेकिन मजे की बात है कि हिंदुओं की हिमायती होने का दंभ भरने वाली बीजेपी की सरकारें भी मंदिरों को नियंत्रण मुक्त करना तो दूर, उल्टे इसका दायरा और बढ़ाती रहीं। उत्तराखंड में तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार ने चारधाम एक्ट लाकर और मनोहर लाल खट्टर की हरियाणा सरकार ने चंडीदेवी समेत कई प्रमुख मंदिरों को अपने नियंत्रण में लेकर इसका सटीक उदाहरण पेश किया। लेकिन तमिलनाडु और कर्नाटक के चुनावों में यही बीजेपी मंदिरों को मुक्त करवाने के वादे करती है। बीजेपी के सिवा बाकी सभी दल तो मंदिर मुक्ति पर विचार तक करने को राजी नहीं हैं। मंदिरों पर नियंत्रण की दलीलें तो देखिएमंदिरों पर सरकारी नियंत्रण के पक्ष में कई दलीलें दी जाती हैं। सरकार मंदिरों के उचित प्रबंधन और विकास का हवाला देती है। साथ ही, यह भी कहा जाता है कि सरकार का नियंत्रण होने से मंदिरों के जरिए सामाजिक न्याय को भी मजबूती दी जाती है। सरकार मंदिर प्रबंधन समितियों में सभी वर्गों और जातियों को शामिल किया जाता है ताकि हिंदू समाज में ऊंच-नीच के भेद खत्म हो सके। ये दावे बहुत हद तक सही हैं, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि मंदिरों के ट्रस्ट सत्ताधारी दलों के अपने लोगों को सेट करने का भी साधन बन गए हैं। पार्टी के लिए काम कर रहे लोग जब मंदिर ट्रस्ट में आते हैं तो उनका ध्यान धर्मार्थ कार्यों या मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा बढ़ाने पर न होकर अपनी जेबें भरने पर होती हैं। इस कारण से मंदिर के धन की लूट-पाट होती है। हालांकि, मंदिर मुक्ति के विरोध में सबसे बड़ी दलील भी यही है कि दान में मिलने वाले धन का पंडों-पुजारियों में बंदरबांट करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।UP के मंदिर और शक्तिपीठों में रामायण और दुर्गा सप्तशती का पाठ… Yogi सरकार ने जिलों को दिया निर्देश, समझिए वजह4 लाख मंदिरों पर सरकार का नियंत्रणदेश में 9 लाख मंदिर हैं जिनमें करीब 4 लाख पर सरकार की नियंत्रण है। सुप्रीम कोर्ट भी हिंदू मंदिरों पर सरकारी कब्जे को कई बार अनुचित ठहरा चुका है। सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस एसए बोबडे ने 2019 में पुरी के जगन्नाथ मंदिर मामले में कहा था, ‘मैं नहीं समझ पाता कि सरकारी अफसरों को क्यों मंदिर का संचालन करना चाहिए?’ उन्होंने अपनी टिप्पणी में तमिलनाडु का उदाहरण देते हुए कहा कि सरकारी नियंत्रण के दौरान वहां अनमोल मूर्तियों की चोरी की अनेक घटनाएं होती रही हैं। जस्टिस बोबडे ने तब साफ कहा था कि ऐसी स्थितियों का कारण भक्तों के पास अपने मंदिरों के संचालन का अधिकार न होना है। इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने 2014 में तमिलनाडु के प्रसिद्ध नटराज मंदिर पर सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का आदेश दिया था।धर्मनिरपेक्षता पर गंभीर सवालहिंदू संगठनों का यह भी दावा है कि मंदिरों में हिंदुओं के दान के पैसे मुसलमानों और इसाइयों को धार्मिक स्थलों का विकास किया जाता है जो हिंदुओं का धर्मांतरण अभियान चलाते रहते हैं। चूंकि मुसलमानों और इसाइयों को उनके धर्मस्थलों के जरिए होने वाली आमदनी उन्हीं के पास रहती है, इस कारण वो इस धन का इस्तेमाल गरीब हिंदुओं को लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाने में करते हैं। उनका आरोप है कि तमिलनाडु में डीएमके जैसे दल की सरकार तो इस अधिकार की इस्तेमाल हिंदू समाज में फूट डालने के लिए भी करती हैं। एमके स्टालिन ने मुख्यमंत्री बनते ही तमिलनाडु के मंदिरों में गैर-ब्राह्मणों को पुजारी नियुक्त करने का आदेश जारी किया। इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सामाजिक न्याय के नजरिए से मंदिरों में दलितों को पुजारी नियुक्त करना अच्छी बात है, लेकिन इसके पीछे सरकार की मंशा साफ नहीं होती है। वो इस फैसले के जरिए मुख्य रूप से हिंदुओं में अगड़े बनाम पिछड़े की राजनीति साधती है।