हाइलाइट्सगुजरात हाईकोर्ट ने एक महिला पर लगाया 10,000 रुपये का जुर्माना महिला ने कोर्ट से बहू को सरकारी नौकरी से बर्खास्त करने का अनुरोध किया थायाचिका खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने वकीलों को दी विशेष सलाहगांधीनगरगुजरात हाईकोर्ट ने एक महिला पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। दरअसल महिला ने घरेलू विवाद के बाद कोर्ट से अपनी बहू को सरकारी नौकरी से बर्खास्त करने का अनुरोध किया था। उसकी याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने वकीलों को सलाह दी कि वे वादियों को ऐसी याचिकाओं को ट्रांसफर करने के लिए प्रोत्साहित न करें। हाईकोर्ट के जस्टिस ए.एस. सुपेहिया ने बुधवार को कहा कि इसमें निरर्थकता अपने चरम पर थी।अरावली जिले की रसिलाबेन खराडी ने अपनी बहू चेतना निनामा की सरकारी सेवा से बर्खास्तगी की मांग करते हुए याचिका दायर की थी क्योंकि उसने अपनी वैवाहिक स्थिति के बारे में झूठ बोला था और झूठी जानकारी दी थी। इसके बाद उसने गुजरात लोक सेवाओं आयोग (जीपीएससी) के माध्यम से सरकारी नौकरी हासिल की। इसलिए उनकी नियुक्ति रद्द की जानी चाहिए। खराड़ी के वकील ने हाईकोर्ट को प्रस्तुत किया कि निनामा ने खुद को अविवाहित बताकर सरकारी नौकरी प्राप्त की थी, जबकि उसकी तलाक की याचिका 2016 से लंबित है। बहू ने सरकारी नौकरी की जानकारी छिपाकर नौकरी हासिल की थी और इसलिए सेवा नियमों का उल्लंघन किया था। हालांकि, अदालत याचिका पर विचार करने के लिए एक वैध कारण खोजने में विफल रही। सुनवाई योग्य नहीं मिली याचिकाअदालत ने कहा कि सास की ओर से संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर प्रार्थना और याचिका में बहू की नियुक्ति के खिलाफ यह कहते हुए निर्देश देने की मांग की गई है कि यह तथ्यों को दबाकर गलत तरीके से प्राप्त किया गया था। यह उनके बीच एक विवाद है। यह बहुत ही असामान्य और अजीब है। कोर्ट यह समझने में विफल है कि जब याचिकाकर्ता ने अपने व्यक्तिगत खाते पर ऐसी प्रार्थना की थी तो यह याचिका कैसे सुनवाई योग्य है।गुजरात हाईकोर्ट ने आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 10% कोटा किया ख़ारिजयाचिका को लेकर हाईकोर्ट ने लगाई फटकार अदालत ने आगे कहा कि कोर्ट को यह देखकर दुख होता है कि वकील ने याचिकाकर्ता को किसी अन्य मंच के समक्ष उचित कार्यवाही करने की सलाह देने के बजाय इस तरह की मुकदमेबाजी को प्रोत्साहित किया है। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसी याचिका दायर करके याचिकाकर्ता अदालत का समय बर्बाद कर रहे हैं। अधिवक्ताओं को सलाह दी जाती है कि वे लोगों को ऐसी याचिका दायर करने के लिए प्रोत्साहित न करें। अदालत ने याचिकाकर्ता रसीलाबेन को आदेश की तारीख से 15 दिनों के भीतर रजिस्ट्री के साथ अपना समय बर्बाद करने के लिए 10,000 रुपये का जुर्माना जमा करने का आदेश दिया।